भारत में सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीकरण, विकास एवं उत्पादन पर प्रकाश डालिये। [उत्तर सीमा: 250 शब्द] [UKPSC 2012]
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भारत में सूती वस्त्र उद्योग एक प्राचीन और महत्वपूर्ण उद्योग है, जिसका स्थानीकरण, विकास और उत्पादन कई कारकों से प्रभावित हुआ है।
स्थानीकरण:
भारत में सूती वस्त्र उद्योग का स्थानीकरण मुख्यतः गंगा और यमुना घाटियों के आसपास हुआ, जहां कपास की खेती पारंपरिक रूप से की जाती थी। ब्रिटिश शासन के दौरान, इस उद्योग को औपनिवेशिक नीतियों के तहत संगठित किया गया। प्रमुख केंद्र जैसे अहमदाबाद, मुंबई, कोलकाता और सूरत ने उद्योग के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
विकास:
सूती वस्त्र उद्योग का विकास कई कारणों से हुआ है:
कपास की उपलब्धता: भारत विश्व का सबसे बड़ा कपास उत्पादक है, जिससे कच्चे माल की निरंतर आपूर्ति होती है।
कौशल श्रम: इस क्षेत्र में कारीगरों और श्रमिकों का एक बड़ा समूह उपलब्ध है, जो उच्च गुणवत्ता के उत्पाद तैयार करने में सक्षम है।
तकनीकी प्रगति: 20वीं सदी के मध्य में मशीनों और प्रौद्योगिकी में सुधार ने उत्पादन क्षमता बढ़ाई।
उत्पादन:
भारत में सूती वस्त्र उद्योग का उत्पादन विभिन्न प्रकार के वस्त्रों में होता है, जैसे सूती कपड़े, साड़ी, टॉप्स, और अन्य परिधान। भारत का सूती वस्त्र उद्योग निर्यात में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है, जो वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी है।
हालांकि, इस उद्योग को चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है, जैसे कि पानी की कमी, बिजली की समस्या और आधुनिक तकनीक का अभाव। लेकिन सही नीतियों और निवेश के माध्यम से इसे और विकसित किया जा सकता है।
इस प्रकार, सूती वस्त्र उद्योग भारत की आर्थिक संरचना में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।