(i) भारतीय अर्थव्यवस्था विकास की ओर उन्मुख है
(ii) भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रमः चुनौतियाँ और संभावनाएँ
(iii) विश्व में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
(iv) भारतीय लोकतंत्र का वर्तमान परिप्रेक्ष्य
(v) संयुक्त राष्ट्र संघ एवं अंतर्राष्ट्रीय शांति [उत्तर सीमा: 700 शब्द, अंक: 75] [UKPSC 2012]
भारतीय अर्थव्यवस्था: विकास की ओर उन्मुख है
भारतीय अर्थव्यवस्था, जो दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, पिछले कुछ वर्षों में कई चुनौतियों और परिवर्तनों का सामना करते हुए विकास की ओर उन्मुख हुई है। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से लेकर अब तक, भारत ने कई आर्थिक नीतियों और सुधारों के माध्यम से अपने विकास को गति दी है। इस निबंध में हम भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास, इसके सामने आने वाली चुनौतियों और संभावनाओं का विश्लेषण करेंगे।
विकास के संकेत
भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर ने पिछले दो दशकों में काफी तेजी पकड़ी है। 1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद, भारत ने विदेशी निवेश को आकर्षित करने में सफलता प्राप्त की। आज, भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में सेवा क्षेत्र का योगदान सबसे अधिक है, जो लगभग 55% है। आईटी, टेलीकोम, और वित्तीय सेवाओं जैसे क्षेत्रों ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत की स्थिति को मजबूत किया है। इसके अलावा, भारत सरकार की “मेक इन इंडिया” और “डिजिटल इंडिया” जैसी पहलों ने उत्पादन और तकनीकी क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा दिया है।
कृषि और ग्रामीण विकास
भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कृषि है, जो बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार प्रदान करती है। हालांकि, कृषि क्षेत्र में आधुनिक तकनीक का उपयोग और बुनियादी ढांचे का विकास आवश्यक है। “प्रधानमंत्री कृषि संपदा योजना” और “कृषि इनफ्रास्ट्रक्चर फंड” जैसी योजनाएँ किसानों की आय बढ़ाने और कृषि को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। ग्रामीण विकास के लिए भी सरकार ने कई योजनाएँ लागू की हैं, जैसे “महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम” (MGNREGA), जो ग्रामीण इलाकों में रोजगार के अवसर प्रदान करता है।
चुनौतियाँ
हालांकि, भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के रास्ते में कई चुनौतियाँ भी हैं। बेरोजगारी, महंगाई, और गरीबियों की समस्या अभी भी गंभीर मुद्दे हैं। युवाओं के लिए रोजगार सृजन एक महत्वपूर्ण चुनौती है, खासकर जब भारत की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा युवा है। इसके अलावा, भूमि अधिग्रहण और पर्यावरणीय मुद्दे भी विकास में बाधा डाल सकते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि उत्पादकता पर असर पड़ रहा है, जिससे खाद्य सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो सकता है।
वैश्विक आर्थिक परिवेश
वैश्विक अर्थव्यवस्था में हो रहे परिवर्तनों का भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है। कोविड-19 महामारी के बाद, दुनिया भर में supply chain में बदलाव देखने को मिले हैं। भारत को इन परिवर्तनों के साथ तालमेल बैठाते हुए अपनी उत्पादन क्षमताओं को बढ़ाना होगा। अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए भारत का कूटनीतिक दृष्टिकोण भी महत्वपूर्ण है, जिससे निर्यात बढ़ाने और विदेशी निवेश को आकर्षित करने में मदद मिलेगी।
संभावनाएँ
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए संभावनाएँ भी असीमित हैं। भारत की विशाल जनसंख्या एक बड़ा उपभोक्ता बाजार है, जो वैश्विक कंपनियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। भारत की युवा जनसंख्या तकनीकी नवाचार और स्टार्टअप्स में भी वृद्धि कर रही है। “स्टार्टअप इंडिया” जैसी योजनाएँ उद्यमिता को बढ़ावा देती हैं, जो नए व्यवसायों को प्रेरित करती हैं। इसके साथ ही, डिजिटल भुगतान और ई-कॉमर्स में वृद्धि ने आर्थिक गतिविधियों को और गति दी है।
निष्कर्ष
भारत की अर्थव्यवस्था विकास की ओर उन्मुख है, लेकिन इसे अपने सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करते हुए संतुलित और सतत विकास की दिशा में आगे बढ़ना होगा। नीति निर्माताओं, उद्योग जगत और समाज के सभी हिस्सों को मिलकर काम करना होगा ताकि समग्र विकास को सुनिश्चित किया जा सके। शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में सुधार करना भी आवश्यक है, जिससे प्रत्येक नागरिक का विकास हो सके। अंततः, भारतीय अर्थव्यवस्था एक उज्ज्वल भविष्य की ओर अग्रसर है, बशर्ते हम सभी मिलकर इसे सही दिशा में ले जाने का प्रयास करें।