ऋतुराज बसन्त के आगमन से ही शीत का भयंकर प्रकोप भाग गया। पतझड़ में पश्चिम पवन ने जीर्ण-शीर्ण पत्तों को गिराकर लताकुंजों, पेड़-पौधों को स्वच्छ और निर्मल बना दिया। वृक्षों और लताओं के अंग में नूतन पत्तियों के प्रस्फुटन से यौवन की मादकता छा गयी। कनेर, मदार, पाटल इत्यादि पुष्यों की सुधि दिग्दिगन्त में अपनी मादकता का संचार करने लगी। न शीत की कठोरता, न ग्रीष्म का ताप। समशीतोष्ण वातावरण में प्रत्येक प्राणी की नस नस में उत्फुल्लता और उमंग की लहरें उठ रही हैं। पत्तों के अधरों पर सोया हुआ संगीत मुखर हो गया है। पलाश-वन अपनी अरूणिमा में फूला नहीं समाता। ऋतुराज बसन्त के सुशासन और सुव्यवस्था की छटा हर ओर दिखायी पड़ती है। कलियों के यौवन की अंगड़ाई भ्रमरों को आमन्त्रण दे रही है। अशोक के अग्नि वर्ण के कोमल एवं नवीन पत्ते वायु के स्पर्श से तरंगित हो रहे हैं। शीतकाल के ठिठुरे अंगों में नयी स्फूर्ति उमड़ रही है। बसन्त के आगमन के साथ ही जैसे जीर्णता और पुरातन का प्रभाव तिरोहित हो गया है। प्रकृति ने बसन्त के आगमन पर अपने रूप को इतना सँवारा है, अंग-अंग को इतना सजाया है और रचा है कि उसकी शोभा का वर्णन असम्भव है। उसकी उपमा नहीं दी जा सकती।
( क) ऊपर लिखे गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिये।
(ख) उपर्युक्त गद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिये।
(ग) उपर्युक्त गद्यांश के रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिये। [उत्तर सीमा: 125 शब्द, अंक: 10] [UKPSC 2012]
(क) शीर्षक: बसन्त का आगमन
(ख) भावार्थ:
गद्यांश में ऋतुराज बसन्त के आगमन का वर्णन किया गया है, जो शीत के प्रकोप को समाप्त कर देता है। पतझड़ के बाद पश्चिमी पवन ने पेड़-पौधों को स्वच्छ किया और नए पत्तों के उगने से जीवन में नवोदित यौवन का अनुभव होता है। विभिन्न फूलों जैसे कनेर और मदार की सुगंध चारों ओर फैलने लगती है। शीत की कठोरता और ग्रीष्म का ताप समाप्त हो जाता है, जिससे समशीतोष्ण वातावरण में सभी प्राणियों में उत्साह और उमंग की लहरें उठती हैं। प्रकृति ने अपने रूप को इस तरह सँवारा है कि उसकी सुंदरता का वर्णन करना कठिन है। बसन्त का आगमन एक नई स्फूर्ति और जीवन का संचार करता है, जो जीर्णता को मिटा देता है।
(ग) रेखांकित अंशों की व्याख्या:
इन अंशों में बसन्त ऋतु की महिमा और उसके प्रभाव का गहरा अर्थ निहित है, जो जीवन में नवोन्मेष लाता है।