शीत युद्ध के दौरान प्रतिस्पर्धात्मक हथियारों की दौड़ ने किस प्रकार वैश्विक सुरक्षा को प्रभावित किया? इसके दीर्घकालिक परिणामों पर चर्चा करें।
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शीत युद्ध के दौरान प्रतिस्पर्धात्मक हथियारों की दौड़ और वैश्विक सुरक्षा पर इसका प्रभाव
1. हथियारों की दौड़ का संदर्भ:
शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ के बीच प्रतिस्पर्धात्मक हथियारों की दौड़ ने वैश्विक सुरक्षा पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। यह दौड़ मुख्यतः परमाणु हथियारों और रणनीतिक मिसाइलों की होड़ पर केंद्रित थी। दोनों देशों ने एक दूसरे को रणनीतिक और टैक्टिकल हथियारों में हराने के लिए अनगिनत संसाधन खर्च किए।
2. वैश्विक सुरक्षा में अस्थिरता:
परमाणु हथियारों की होड़ ने वैश्विक सुरक्षा स्थिति में गंभीर अस्थिरता उत्पन्न की। 1959 में क्यूबा मिसाइल संकट इसका प्रमुख उदाहरण है, जिसमें सोवियत संघ ने क्यूबा में मिसाइल तैनात किए, जिससे अमेरिका और सोवियत संघ के बीच एक परमाणु युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई। यह संकट वैश्विक सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा था और इसके परिणामस्वरूप हॉटलाइन स्थापित की गई ताकि संकट के समय त्वरित संवाद किया जा सके।
3. हथियारों की दौड़ और क्षेत्रीय संघर्ष:
हथियारों की दौड़ ने क्षेत्रीय संघर्षों को भी बढ़ावा दिया। अमेरिका और सोवियत संघ ने स्थानीय युद्धों में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए विभिन्न गुटों को समर्थन दिया। वियतनाम युद्ध और अंगोला संघर्ष जैसे संघर्षों में दोनों महाशक्तियों ने अपने हथियारों और सैन्य सहायता का उपयोग किया, जिससे संघर्षों की तीव्रता और अवधि बढ़ी।
4. दीर्घकालिक परिणाम:
5. समापन:
हथियारों की दौड़ ने वैश्विक सुरक्षा पर गहरा प्रभाव डाला, जिससे अस्थिरता और संघर्षों में वृद्धि हुई। इसके दीर्घकालिक परिणाम आज भी वैश्विक राजनीति में महसूस किए जा रहे हैं, जिसमें परमाणु प्रसार और अंतर्राष्ट्रीय संधियों के कार्यान्वयन की चुनौतियाँ शामिल हैं। इस संदर्भ में, विस्तृत और प्रभावी वैश्विक नीति की आवश्यकता है जो मौजूदा चुनौतियों से निपट सके और वैश्विक सुरक्षा को सुनिश्चित कर सके।