खनन, बाँध एवं अन्य बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिए आवश्यक भूमि अधिकांशतः आदिवासियों, पहाड़ी निवासियों एवं ग्रामीण समुदायों से अर्जित की जाती है। विस्थापित व्यक्तियों को कानूनी प्रावधानों के अनुरूप मौद्रिक मुआवज़ा दिया जाता है। फिर भी, भुगतान प्रायः धीमी गति से होता है। किसी भी हालत में विस्थापित परिवार लम्बे समय तक जीवनयापन नहीं कर पाते। इन लोगों के पास बाज़ार की आवश्यकतानुसार किसी दूसरे धंधे में लगने का कौशल भी नहीं होता है । वे आखिरकार कम मज़दूरी वाले आवर्जिक (प्रवासी) श्रमिक बन जाते हैं। इसके अलावा, उनके सामुदायिक जीवन के परम्परागत तरीके अधिकांशतः समाप्त हो जाते हैं। अतः विकास के लाभ उद्योगों, उद्योगपतियों एवं नगरीय समुदायों को चले जाते हैं, जबकि विकास की लागत इन ग़रीब असहाय लोगों पर डाल दी जाती है। लागतों एवं लाभों का यह अनुचित वितरण अनैतिक है ।
खनन, बाँध और बड़े पैमाने की परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण और विस्थापन: एक समालोचनात्मक विश्लेषण
भूमि अधिग्रहण और विस्थापन
भारत में खनन, बाँध और अन्य बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिए आवश्यक भूमि अक्सर आदिवासियों, पहाड़ी निवासियों, और ग्रामीण समुदायों से अर्जित की जाती है। इन परियोजनाओं के कारण इन लोगों को विस्थापित किया जाता है, और कानूनी प्रावधानों के अनुसार उन्हें मौद्रिक मुआवज़ा दिया जाता है।
मुआवज़े की धीमी प्रक्रिया
विस्थापित व्यक्तियों को मौद्रिक मुआवज़ा मिलने की प्रक्रिया अक्सर धीमी और जटिल होती है। उदाहरण के लिए, सरदार सरोवर बाँध परियोजना में विस्थापित परिवारों को मुआवज़े के वितरण में लंबी देरी हुई, जिससे उनके पुनर्वास की स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
आजीविका और कौशल की कमी
विस्थापित परिवारों को अक्सर नई आजीविका के लिए कौशल की कमी होती है। इन लोगों को बाज़ार की आवश्यकताओं के अनुसार उपयुक्त कौशल प्रशिक्षण नहीं मिलता, जिससे वे कम मज़दूरी वाले प्रवासी श्रमिक बन जाते हैं। उदाहरण के लिए, झारखंड और छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में खनन परियोजनाओं के कारण विस्थापन के बाद कई परिवारों को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
सामुदायिक जीवन का विनाश
विस्थापन से इन समुदायों के सामुदायिक जीवन के परंपरागत तरीके अक्सर समाप्त हो जाते हैं। परियोजनाओं के कारण सांस्कृतिक और सामाजिक ताना-बाना बिखर जाता है, और इन लोगों की पारंपरिक जीवनशैली को नुकसान पहुँचता है।
विकास के लाभ और लागत का असमान वितरण
विकास की परियोजनाओं से उद्योगपतियों और नगरीय समुदायों को लाभ होता है, जबकि विस्थापित और गरीब समुदायों पर इसके लागत का भार डाल दिया जाता है। यह अनैतिक है क्योंकि विकास की लागत और लाभ का वितरण असमान होता है, और गरीबों को उनके अधिकार और संसाधनों से वंचित किया जाता है।
निष्कर्ष
खनन, बाँध और अन्य बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण और विस्थापन की प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता है। सामाजिक न्याय और विस्थापित समुदायों की समुचित देखभाल सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी नीतियों और पुनर्वास योजनाओं को लागू करना अनिवार्य है। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि विकास के लाभ सभी हिस्सेदारों में समान रूप से वितरित हों और विस्थापित व्यक्तियों के जीवन में सुधार हो।