मरुस्थलीकरण के प्रक्रम की जलवायविक सीमाएँ नहीं होती हैं। उदाहरणों सहित औचित्य सिद्ध कीजिए । (150 words)[UPSC 2020]
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मरुस्थलीकरण के प्रक्रम की जलवायवीय सीमाएँ नहीं होती हैं
**1. विविध जलवायु क्षेत्रों में मरुस्थलीकरण: मरुस्थलीकरण केवल शुष्क जलवायु क्षेत्रों तक सीमित नहीं है; यह अर्द्ध-शुष्क और उप-आर्द्र क्षेत्रों में भी हो सकता है। उदाहरण के लिए, थार मरुस्थल में अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों के आस-पास के इलाके भी मरुस्थलीकरण के शिकार हुए हैं, जहां अत्यधिक चराई और वनों की कटाई ने भूमि के विघटन को बढ़ावा दिया।
**2. मानव गतिविधियों का प्रभाव: मानव गतिविधियाँ जैसे कि वन कटाई, अत्यधिक चराई और असमर्थ कृषि प्रथाएँ, अपेक्षाकृत संतुलित जलवायु वाले क्षेत्रों में भी मरुस्थलीकरण का कारण बनती हैं। मध्य प्रदेश में वनों की कटाई और असतत कृषि ने पहले उपजाऊ भूमि को मरुस्थलीकरण की ओर धकेल दिया है।
**3. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव: जलवायु परिवर्तन द्वारा वर्षा पैटर्न और तापमान में बदलाव मरुस्थलीकरण को बढ़ावा देता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिणी हिस्से जैसे न्यू मैक्सिको में बदलते जलवायु पैटर्न ने मरुस्थलीकरण को बढ़ावा दिया है, भले ही ये क्षेत्र पारंपरिक मरुस्थल के रूप में नहीं माने जाते।
**4. वैश्विक उदाहरण: सहेल क्षेत्र, अफ्रीका में मरुस्थलीकरण ने अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में भी प्रभाव डाला है, जहां घटती वर्षा और बढ़ते तापमान ने मरुस्थल जैसी परिस्थितियों को फैला दिया है।
ये उदाहरण दर्शाते हैं कि मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया जलवायवीय सीमाओं को पार करती है, जो प्राकृतिक और मानव जनित कारणों से विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों को प्रभावित करती है।