बहु-सांस्कृतिक भारतीय समाज को समझने में क्या जाति की प्रासंगिकता समाप्त हो गई है ? उदाहरणों सहित विस्तृत उत्तर दीजिए। (150 words)[UPSC 2020]
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परिचय
भारत एक बहु-सांस्कृतिक समाज है, जिसमें जाति प्राचीन काल से सामाजिक संरचना का एक प्रमुख हिस्सा रही है। हालांकि आधुनिक युग में लोकतंत्र और संवैधानिक सुधारों के बाद जातिगत भेदभाव पर कानूनी प्रतिबंध लगाए गए हैं, लेकिन जाति की प्रासंगिकता अब भी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर बनी हुई है।
जाति की प्रासंगिकता
आज के समय में जाति आधारित असमानताएं और भेदभाव कम होने के बावजूद पूरी तरह समाप्त नहीं हुए हैं। उदाहरण के लिए, शिक्षा और रोजगार में अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने की नीति जाति की प्रासंगिकता को दर्शाती है। इसके अलावा, राजनीति में जाति आधारित वोट बैंक का भी प्रभाव बना हुआ है, जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में जातिगत समीकरणों का चुनावी परिणामों पर सीधा प्रभाव देखा जा सकता है।
समाप्ति की ओर कदम
हालांकि शहरीकरण और शिक्षा के विस्तार के साथ जातिगत पहचान कम होती दिख रही है, परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में जाति अभी भी सामाजिक संबंधों और विवाह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अलावा, दलित अत्याचार के मामले अब भी सामने आते हैं, जो जाति की प्रासंगिकता को दर्शाते हैं।
निष्कर्ष
इस प्रकार, भले ही भारतीय समाज में जातिगत भेदभाव समाप्त करने की दिशा में प्रयास जारी हैं, लेकिन जाति की प्रासंगिकता अभी भी बहु-सांस्कृतिक समाज के सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने में निहित है।