चुप रहना उसके लिए नैतिक रूप से सही नहीं है यह दर्शाने के लिए आप क्या तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं ?
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चुप रहना नैतिक रूप से सही क्यों नहीं है: तर्क
**1. सामाजिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारी: चुप रहना उस सामाजिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारी को अनदेखा करना है जो प्रत्येक व्यक्ति की होती है। अत्यधिक विषाक्त अपशिष्ट का नदी में प्रवाह, स्थानीय ग्रामीणों की स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन रहा है। इस प्रकार की अनैतिक प्रथाओं को नजरअंदाज करना और चुप रहना, उन लोगों की भलाई की अनदेखी करना है जो इस नदी पर निर्भर हैं। उदाहरण के लिए, सबरिमला मंदिर मामला में, सुप्रीम कोर्ट ने धर्म और समानता के अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखा, यह दर्शाते हुए कि नैतिक जिम्मेदारी से परे जाकर किसी भी अनैतिक प्रथाओं को स्वीकार करना सही नहीं है।
**2. कानूनी दायित्व: किसी भी गैर-कानूनी गतिविधि, जैसे कि विषाक्त अपशिष्ट का अवैध रूप से प्रवाह, को अनदेखा करना कानूनी दायित्व का उल्लंघन है। भारत में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत, कंपनियों को विषाक्त अपशिष्ट को ठीक से प्रबंधित करने के लिए निर्देशित किया गया है। इस कानून की अनदेखी करने वाले कार्यों को चुप रहकर स्वीकृति देना कानूनी और नैतिक दोनों दृष्टियों से गलत है। यमुना नदी का प्रदूषण और इसके कानूनी मुद्दे इसके स्पष्ट उदाहरण हैं।
**3. नैतिक ईमानदारी और व्यक्तिगत आत्म-सम्मान: चुप रहना नैतिक ईमानदारी और व्यक्तिगत आत्म-सम्मान को प्रभावित करता है। अगर वह अपनी जानबूझकर मौनता के कारण दूसरों को नुकसान पहुँचते देखे, तो उसका खुद का नैतिक दायित्व और आत्म-सम्मान प्रभावित होगा। फ्रांसिस हौगेन, जिन्होंने फेसबुक के अनैतिक व्यवहार का खुलासा किया, के उदाहरण से पता चलता है कि नैतिक ईमानदारी की रक्षा करते हुए सही काम करने से व्यक्तिगत आत्म-सम्मान और नैतिक मूल्य बनाए रहते हैं।
**4. सकारात्मक बदलाव की संभावना: अधिकारियों और कंपनियों को सकारात्मक बदलाव लाने के लिए मुद्दे को उजागर करना आवश्यक है। यदि वह इस मुद्दे की रिपोर्ट करती है, तो इसे सही किया जा सकता है, जिससे स्थानीय समुदाय की स्वास्थ्य समस्याओं को हल किया जा सकता है और प्रदूषण को कम किया जा सकता है। वोल्क्सवैगन एमिशन स्कैंडल इसका एक प्रमुख उदाहरण है, जहां खुलासे के बाद महत्वपूर्ण सुधार और कंपनियों की जवाबदेही में वृद्धि हुई।
**5. विचारशीलता और जिम्मेदारी का पालन: विचारशीलता के साथ-साथ नैतिक जिम्मेदारी को बनाए रखना भी आवश्यक है। चुप रहना न केवल मौजूदा समस्याओं को अनदेखा करता है, बल्कि संभावित खतरों को भी बढ़ावा देता है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की कार्रवाई के बाद कई पर्यावरणीय मुद्दे हल किए गए हैं, जो दर्शाता है कि खुलेपन और रिपोर्टिंग से समाज को लाभ हो सकता है।
निष्कर्ष: चुप रहना नैतिक दृष्टिकोण से सही नहीं है क्योंकि यह सामाजिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारी की अनदेखी करता है, कानूनी दायित्वों का उल्लंघन करता है, व्यक्तिगत आत्म-सम्मान को प्रभावित करता है, और सकारात्मक बदलाव की संभावना को रोकता है। नैतिकता और जिम्मेदारी का पालन करते हुए सही कदम उठाना आवश्यक है।