इंजीनियरी की एक नई स्नातक (ग्रेजुएट) को एक प्रतिष्ठावान रासायनिक उद्योग में नौकरी मिली है। वह कार्य को पसन्द करती है। वेतन भी अच्छा है। फिर भी, कुछ महीनों के पश्चात् इत्तफ़ाक़ से उसने पाया कि उच्च विषाक्त अपशेष को गोपनीय तरीके से नज़दीकी नदी में प्रवाहित किया जा रहा है। यह अनुप्रवाह में रहने वाले ग्रामीणों, जो पानी की आवश्यकता के लिए नदी पर निर्भर हैं, के स्वास्थ्य की समस्याओं का कारण बनता जा रहा है। वह विचलित है और वह अपनी चिन्ता सहकर्मियों को प्रकट करती है, जो लम्बे समय से कम्पनी के साथ रहे हैं। वे उसे चुप रहने की सलाह देते हैं क्योंकि जो भी इस विषय का उल्लेख करता है, उसको नौकरी से निकाल दिया जाता है । वह अपनी नौकरी खोने का ख़तरा नहीं ले सकती, क्योंकि वह अपने परिवार की एकमात्र जीविका चलाने वाली है तथा उसे अपने बीमार माता-पिता एवं भाई-बहनों का भरण-पोषण करना होता है । प्रथमतः वह सोचती है यदि उसके वरिष्ठ चुप हैं, तो वह ही क्यों अपनी गर्दन बाहर निकाले । परन्तु उसका अन्तःकरण नदी को एवं नदी पर निर्भर रहने वाले लोगों को बचाने के लिए कुछ करने की प्रेरणा देता है। अन्तःकरण से वह महसूस करती है कि उसके मित्रों द्वारा चुप रहने का दिया गया परामर्श उचित नहीं है, यद्यपि वह उसके कारण नहीं बता सकती है। वह सोचती है कि आप एक बुद्धिमान व्यक्ति हैं तथा वह आपका परामर्श पूछती है ।
a. चुप रहना उसके लिए नैतिक रूप से सही नहीं है यह दर्शाने के लिए आप क्या तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं ?
b.आप उसे कौन-सा रास्ता अपनाने की सलाह देंगे और क्यों देंगे ? (250 words) [UPSC 2016]
चुप रहना नैतिक दृष्टिकोण से सही क्यों नहीं है
**1. नैतिक जिम्मेदारी: एक पेशेवर के रूप में, आपकी नैतिक जिम्मेदारी है कि आप ऐसे कार्यों का विरोध करें जो समाज और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हैं। उच्च विषाक्त अपशिष्ट का नदी में प्रवाह, जो स्थानीय ग्रामीणों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है, एक गंभीर नैतिक उल्लंघन है। ऐसा करना उन लोगों की भलाई की अनदेखी करना है जिनकी जीवन शैली और स्वास्थ्य आपके कार्यों से प्रभावित हो रहे हैं। उदाहरण के लिए, साबरमती नदी के प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर कदम उठाए हैं, जो दिखाता है कि प्रशासनिक और कानूनी मानदंड कितने महत्वपूर्ण हैं।
**2. कानूनी दायित्व: भारत में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 जैसे कानून विषाक्त अपशिष्ट प्रबंधन के लिए सख्त दिशानिर्देश प्रदान करते हैं। कंपनी के द्वारा ऐसा गैर-कानूनी कार्य करना न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि कानूनी दृष्टिकोण से भी गंभीर अपराध है। इसका उदाहरण यमुना नदी का प्रदूषण है, जिसके लिए अदालतें और पर्यावरणीय संस्थाएँ लगातार कार्रवाई कर रही हैं।
**3. सामाजिक प्रभाव: आपके चुप रहने से स्थानीय लोगों की स्वास्थ्य समस्याएँ और आर्थिक समस्याएँ बढ़ सकती हैं। यह नैतिक रूप से सही नहीं है कि आप केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए सार्वजनिक भलाई की अनदेखी करें। गंगा नदी के संरक्षण में भी सार्वजनिक जागरूकता और न्यायिक हस्तक्षेप ने बहुत सकारात्मक प्रभाव डाला है।
उसे कौन-सा रास्ता अपनाने की सलाह देंगे
**1. विधिक सलाह और सुरक्षा: सबसे पहले, उसे विधिक सलाह प्राप्त करनी चाहिए और विज्ञापन सुरक्षा के विकल्पों को समझना चाहिए। कई देशों में, जैसे कि भारत में, विषयक भ्रष्टाचार और गैर-कानूनी प्रथाओं के खिलाफ संरक्षण के लिए विधिक प्रावधान होते हैं, जो उसे बिना किसी प्रतिशोध के रिपोर्ट करने में मदद कर सकते हैं।
**2. आवश्यक प्राधिकरण से संपर्क: उसे कंपनी के आवश्यक प्राधिकरण (जैसे पर्यावरण विभाग) या शासनात्मक निकायों से संपर्क करना चाहिए। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) को ऐसी समस्याओं की रिपोर्ट की जा सकती है। यह उसे सरकारी तंत्र के माध्यम से समस्या को उठाने की सुविधा देगा।
**3. पर्यावरणीय संगठनों की सहायता: पर्यावरणीय संगठनों जैसे ग्रीनपीस या सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (CSE) से सहायता प्राप्त कर सकती है। ये संगठन उसे इस मुद्दे को सही ढंग से प्रस्तुत करने और कानूनी और सामाजिक समर्थन प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं।
**4. आंतरिक रिपोर्टिंग चैनल: अगर कंपनी में आंतरिक रिपोर्टिंग चैनल है, तो वह उस मार्ग से भी रिपोर्ट कर सकती है। इसके लिए, उसे अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक प्रावधानों की जानकारी प्राप्त करनी होगी।
निष्कर्ष: चुप रहना नैतिक और कानूनी दृष्टिकोण से सही नहीं है। उचित कानूनी सलाह, सरकारी प्राधिकरण से संपर्क, और पर्यावरणीय संगठनों की सहायता प्राप्त करना उसके लिए उचित कदम होंगे, ताकि वह बिना व्यक्तिगत खतरे के इस मुद्दे को सुलझा सके और समाज के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी निभा सके।