जीवन, कार्य, अन्य व्यक्तियों एवं समाज के प्रति हमारी अभिवृत्तियाँ आमतौर पर अनजाने में परिवार एवं उस सामाजिक परिवेश के द्वारा रूपित हो जाती हैं, जिसमें हम बड़े होते हैं। अनजाने में प्राप्त इनमें से कुछ अभिवृत्तियाँ एवं मूल्य अक्सर आधुनिक लोकतांत्रिक एवं समतावादी समाज के नागरिकों के लिए अवांछनीय होते हैं।
आपने एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है। वास्तव में, हमारे परिवार और सामाजिक परिवेश का हमारी सोच, अभिवृत्तियों और मूल्यों पर गहरा असर पड़ता है। जब हम किसी विशेष सामाजिक परिवेश में बड़े होते हैं, तो उसकी सांस्कृतिक मान्यताएँ और आदतें हमें बिना सोचे-समझे प्रभावित कर देती हैं। इन प्रभावों के कारण हमें कभी-कभी आधुनिक लोकतांत्रिक और समतावादी समाज के मूल्यों के साथ टकराव का सामना करना पड़ता है।
उदाहरण के लिए, यदि कोई परिवार या समाज जातिवाद, लिंग भेदभाव, या अन्य प्रकार की असमानताओं को सामान्य मानता है, तो वे मान्यताएँ हमें स्वाभाविक रूप से प्रभावित कर सकती हैं, भले ही हम बड़े होकर एक समानता आधारित समाज में जीना चाहें। इस स्थिति में, हमें अपने पूर्वाग्रहों और पुरानी आदतों को पहचानकर उनके खिलाफ सजग रहना पड़ता है, ताकि हम एक समतावादी दृष्टिकोण अपना सकें।
समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझना और सकारात्मक बदलाव के लिए प्रयासरत रहना भी जरूरी है। इसके लिए शिक्षा, संवाद, और आत्मचिंतन महत्वपूर्ण उपकरण हो सकते हैं। क्या आप इस विषय पर और कुछ जानना चाहेंगे या किसी विशेष पहलू पर चर्चा करना चाहेंगे?