यह एक राज्य है जिसमें शराबबंदी लागू है। अभी-अभी आपको इस राज्य के एक ऐसे जिले में पुलिस अधीक्षक नियुक्त किया गया है जो अवैध शराब बनाने के लिए कुख्यात है। अवैध शराब से बहुत मौतें हो जाती हैं, कुछ रिपोर्ट की जाती हैं और कुछ नहीं, जिससे जिला अधिकारियों को बड़ी समस्या होती है। अभी तक इसे क़ानून और व्यवस्था की समस्या के दृष्टिकोण से देखा जाता रहा है और उसी तरह इसका सामना किया जाता रहा है। छापे, गिरफ्तारियाँ, पुलिस के मुक़दमे, आपराधिक मुक़दमे इन सभी का केवल सीमित प्रभाव रहा है। समस्या हमेशा की तरह अभी भी गंभीर बनी हुई है। आपके निरीक्षणों से पता चलता है कि जिले के जिन क्षेत्रों में शराब बनाने का कार्य फल-फूल रहा है, वे आर्थिक, औद्योगिक तथा शैक्षणिक रूप से पिछड़े हैं। अपर्याप्त सिंचाई सुविधाओं का कृषि पर बुरा प्रभाव पड़ता है। विभिन्न समुदायों में बार-बार होने वाले टकराव अवैध शराब निर्माण को बढ़ावा देते हैं। अतीत में लोगों के हालात में सुधार लाने के लिए न तो सरकार के द्वारा और न ही सामाजिक संगठनों के द्वारा कोई महत्त्वपूर्ण पहलें की गई हैं। समस्या को नियंत्रित करने के लिए आप कौन-सा नया उपागम अपनाएँगे ? (250 words) [UPSC 2018]
अवैध शराब समस्या के समाधान के लिए नए दृष्टिकोण का अपनाना
1. समस्या की जड़ को समझना
आर्थिक और सामाजिक कारण: अवैध शराब समस्या की जड़ जिले की आर्थिक, औद्योगिक और शैक्षणिक पिछड़ापन में निहित है। अपर्याप्त सिंचाई, आर्थिक तंगी और सामुदायिक टकराव जैसी समस्याएं इस संकट को बढ़ावा देती हैं। समस्या को समग्र दृष्टिकोण से हल करना आवश्यक है।
2. समग्र रणनीति
a. सामुदायिक सहभागिता और जागरूकता:
b. आर्थिक और सामाजिक विकास:
c. कानून प्रवर्तन और कानूनी उपाय:
3. हाल के उदाहरण
तमिलनाडु में “पूर्ण शराबबंदी” नीति को चुनौती का सामना करना पड़ा, लेकिन ग्रामीण विकास कार्यक्रमों और सख्त प्रवर्तन के संयोजन से अवैध शराब गतिविधियों में कमी आई।
मध्य प्रदेश में भी, अवैध शराब पर काबू पाने के प्रयासों में सामुदायिक पुलिसिंग और स्थानीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देने से प्रगति हुई।
4. निगरानी और मूल्यांकन
लगातार मूल्यांकन: लागू की गई रणनीतियों की प्रभावशीलता का नियमित रूप से मूल्यांकन करें। सामुदायिक फीडबैक इकट्ठा करें और बदलती परिस्थितियों के अनुसार रणनीतियों में आवश्यक संशोधन करें।
निष्कर्ष
शराबबंदी वाले राज्य में अवैध शराब की समस्या का समाधान पारंपरिक कानून प्रवर्तन से परे है। आर्थिक विकास, सामुदायिक सहभागिता और सुधारात्मक प्रवर्तन के संयोजन से इस समस्या को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे एक स्वस्थ और स्थिर समुदाय का निर्माण हो सके।