ईमानदारी और सच्चाई एक सिविल सेवक के प्रमाणक हैं। इन गुणों से युक्त सिविल सेवक किसी भी सुदृढ़ संगठन के मेरुदंड माने जाते हैं। कर्त्तव्य निर्वहन के दौरान, वे विभिन्न निर्णय लेते हैं। कभी-कभी इनमें से कुछ निर्णय सद्भाविक भूल बन जाते हैं। जब तक ऐसे निर्णय जानबूझ कर नहीं लिए जाते हैं और व्यक्तिगत लाभ प्रदान नहीं करते, तब तक अधिकारी को दोषी नहीं कहा जा सकता है। यद्यपि कभी-कभी ऐसे निर्णयों के दीर्घावधि में अप्रत्याशित प्रतिकूल परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं। अभी हाल में कुछ ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जिन में सिविल सेवकों को सद्भाविक भूलों के लिए आलिप्त किया गया है। उन्हें अकसर अभियोजित और बंदित भी किया गया है। इन प्रकरणों के कारण सिविल सेवकों की नैतिक रचना को अत्यधिक क्षति पहुँची है। यह प्रवृत्ति लोक सेवाओं के कार्य निष्पादन को किस तरह प्रभावित कर रही है ? यह सुनिश्चित करने के लिए कि ईमानदार सिविल सेवक सद्भाविक भूलों के लिए आलिप्त नहीं किए जाएं, क्या उपाय किए जा सकते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए । (250 words) [UPSC 2019]
ईमानदार सिविल सेवकों के प्रति सख्त दंड की प्रवृत्ति और इसके प्रभाव
1. नैतिकता पर प्रभाव
सिविल सेवकों के सच्चाई और ईमानदारी के बावजूद सद्भाविक भूलों के लिए अभियोजन की प्रवृत्ति उनके नैतिक साहस को कमजोर कर रही है। जब अधिकारी यह महसूस करते हैं कि उनकी गलतियों के लिए उन्हें कानूनी दंड का सामना करना पड़ सकता है, तो वे निर्णय लेने में सावधानी बरतते हैं। इससे वे आवश्यक सुधारात्मक और नवाचारात्मक कदम उठाने में संकोच करते हैं। उदाहरण के लिए, आईएएस अधिकारी अशोक खेड़ा के केस ने दिखाया कि किस प्रकार की कानूनी समस्याएं अधिकारी को सरकारी कामकाज में निष्क्रिय कर सकती हैं।
2. प्रशासनिक प्रभाव
यह प्रवृत्ति प्रशासनिक प्रभावशीलता को भी प्रभावित करती है। अधिकारी परंपरागत तरीके अपनाने के लिए प्रेरित होते हैं और जोखिम उठाने से बचते हैं। इससे गवर्नेंस की गति धीमी हो सकती है और अवसरों की हानि हो सकती है। उदाहरण के लिए, आईएएस अधिकारी पी.आई.सी.ए. वर्मा का मामला दर्शाता है कि कैसे कानूनी जोखिम के डर से अधिकारी नई नीतियों को लागू करने से पीछे हट सकते हैं।
3. उपाय
निष्कर्ष
इन उपायों को अपनाकर हम सिविल सेवकों के नैतिक साहस को बनाए रख सकते हैं और प्रशासनिक दक्षता को सुनिश्चित कर सकते हैं। यह एक मजबूत और प्रभावी सार्वजनिक सेवा तंत्र को बढ़ावा देगा।