नगरीय अर्थतंत्र के सहायक श्रमिक बल के रूप में मूक रह कर सेवा प्रदान करते हुए, प्रवासी श्रमिक सदैव हमारे समाज के सामाजिक-आर्थिक हाशिये पर रहे हैं। महामारी ने उन्हें राष्ट्रीय केंद्रबिंदु पर ला दिया है। देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा से, प्रवासी श्रमिकों की एक बड़ी संख्या ने अपने रोजगार के स्थानों से अपने मूल गाँवों को लौटने का निर्णय लिया। आवागमन की अनुपलब्धता ने अपनी समस्याएँ खड़ी कर दीं। इसके अलावा अपने परिवारों की भुखमरी और असुविधा का डर भी उन्हें सता रहा था। इनके चलते प्रवासी श्रमिकों ने अपने गाँवों को लौटने के लिए मजदूरी और आवागमन की सुविधाएँ माँगीं। उनकी मानसिक व्यथा बहु कारणों से और भी बढ़ गई जैसे आजीविका का आकस्मिक नुकसान, भोजन के अभाव की संभावना और समय पर घर नहीं पहुँच पाने से रवि की फसल की कटाई में मदद नहीं करने की असमर्थता। उनकी आशंकाएँ ऐसी खबरों से और भी बढ़ गईं जिनमें रास्ते में कुछ जिलों में रहने और खाने के अपर्याप्त प्रबन्ध के बारे में बताया गया था। जब आपको अपने ज़िले के ज़िला आपदा मोचन बल की कार्यवाही का संचालन करने की जिम्मेदारी दी गई थी तो इस परिस्थिति से आपने अनेक सबक हासिल किए। आपके मतानुसार सामयिक प्रवासी संकट में क्या नीतिपरक मुद्दे उभर कर आए ? एक नीतिपरक सेवा प्रदाता राज्य से आप क्या समझते हैं ? समान परिस्थितियों में प्रवासियों की पीड़ाओं को कम करने में सभ्य समाज क्या सहायता प्रदान कर सकता है ? (250 words) [UPSC 2020]
नीतिपरक मुद्दे और समाधान के उपाय
**1. नीतिपरक मुद्दे
a. अव्यवस्थित आपातकालीन प्रबंधन:
लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों के लिए अपर्याप्त आवागमन और आश्रय की सुविधाएँ प्रमुख समस्याएं थीं। इसके कारण कई श्रमिकों को यात्रा में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और उन्हें भोजन और सुरक्षा की कमी का सामना करना पड़ा।
b. शोषण और असंवेदनशीलता:
प्रवासी श्रमिकों के शोषण और उनके अधिकारों की अनदेखी की गई। उन्हें मजदूरी और आवागमन की सुविधाओं की मांग करनी पड़ी, जो उनकी मौलिक आवश्यकताओं की अनदेखी दर्शाता है।
c. मानसिक और शारीरिक पीड़ा:
आजीविका के नुकसान, भोजन की कमी, और घर पहुँचने में असमर्थता ने प्रवासी श्रमिकों की मानसिक और शारीरिक स्थिति को गंभीर रूप से प्रभावित किया। इस संकट ने उनकी स्थिति को और भी बदतर बना दिया।
**2. नीतिपरक सेवा प्रदाता राज्य
एक नीतिपरक सेवा प्रदाता राज्य वह है जो:
**3. सभ्य समाज की सहायता
a. आपातकालीन सहायता और राहत:
सभ्य समाज को आपातकालीन स्थितियों में तुरंत सहायता प्रदान करनी चाहिए। उदाहरण के लिए, COVID-19 महामारी के दौरान, कई एनजीओ और स्वैच्छिक संगठन जैसे ‘गुंज’ और ‘अक्षय पात्र’ ने राहत सामग्री वितरित की।
b. जागरूकता और समर्थन:
जन जागरूकता अभियान चलाना और प्रवासी श्रमिकों की स्थिति पर ध्यान आकर्षित करना महत्वपूर्ण है। मीडिया और सोशल मीडिया पर जागरूकता अभियान से समाज में संवेदनशीलता बढ़ाई जा सकती है।
c. स्वयंसेवी प्रयास और धनसंग्रह:
स्वयंसेवी संगठन और व्यक्ति राहत कार्यों में सहयोग कर सकते हैं और धनसंग्रह के माध्यम से आवश्यक संसाधन जुटा सकते हैं। ‘फीड माय स्टार्विंग चिल्ड्रन’ जैसे प्रयासों ने इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
d. नीति सिफारिशें:
प्रवासी श्रमिकों के लिए बेहतर नीतिगत उपायों की सिफारिश करना, जैसे कि बेहतर श्रम कानून और आपातकालीन प्रतिक्रिया योजनाएं, सुनिश्चित करने के लिए सरकार और नीति निर्माताओं के साथ समन्वय करना।
निष्कर्ष:
प्रवासी श्रमिकों की स्थिति ने स्पष्ट किया कि आपातकालीन प्रबंधन और मानवाधिकारों की अनदेखी गंभीर नैतिक समस्याएं पैदा कर सकती हैं। एक नीतिपरक सेवा प्रदाता राज्य की भूमिका इन समस्याओं को हल करने में महत्वपूर्ण है। सभ्य समाज की सक्रिय भूमिका, जैसे कि आपातकालीन सहायता, जागरूकता और नीति सुधार, प्रवासी श्रमिकों की पीड़ाओं को कम करने में सहायक हो सकती है।