“शरणार्थियों को उस देश में वापस नहीं लौटाया जाना चाहिए जहाँ उन्हें उत्पीड़न अथवा मानवाधिकारों के उल्लंघन का सामना करना पड़ेगा।” खुले समाज और लोकतांत्रिक होने का दावा करने वाले किसी राष्ट्र के द्वारा नैतिक आयाम के उल्लंघन के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिए। (150 words) [UPSC 2021]
शरणार्थियों के अधिकार और नैतिक दायित्व
1. मानवाधिकारों की सुरक्षा
मानवाधिकारों की सुरक्षा प्रत्येक देश की जिम्मेदारी है, विशेष रूप से उन देशों की जो लोकतांत्रिक और खुले समाज का दावा करते हैं। शरणार्थियों को उत्पीड़न और मानवाधिकार उल्लंघन के खतरे में वापस भेजना, मानवाधिकारों का उल्लंघन है। उदाहरण के लिए, भारत और नेपाल के बीच शरणार्थियों के मुद्दे पर चर्चा हुई है, जिसमें यह चिंता जताई गई है कि कुछ शरणार्थी जिनके जीवन को खतरा हो सकता है, उन्हें सुरक्षित स्थान नहीं मिल पा रहा है।
2. अंतरराष्ट्रीय मानदंड
1951 के शरणार्थी संधि और 1950 के मानवाधिकार घोषणापत्र के तहत, शरणार्थियों को उत्पीड़न के खतरे से बचाना अनिवार्य है। तुर्की और यूरोपीय संघ के बीच समझौतों में देखा गया है कि शरणार्थियों को सही सुरक्षा देने के प्रयास किए गए हैं, जो अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप है।
3. नैतिक जिम्मेदारी
एक लोकतांत्रिक और खुले समाज के तहत, नैतिक जिम्मेदारी यह है कि किसी भी व्यक्ति को उत्पीड़न या मानवाधिकार उल्लंघन के खतरे में नहीं डाला जाए। जर्मनी ने सीरियाई शरणार्थियों को सुरक्षा प्रदान कर, यह जिम्मेदारी निभाई है, जो नैतिक और मानवतावादी दृष्टिकोण का उदाहरण है।
निष्कर्षतः, लोकतांत्रिक और खुले समाजों को शरणार्थियों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए और उन्हें उत्पीड़न से बचाने के लिए नैतिक रूप से जिम्मेदार रहना चाहिए।