आप ‘वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य’ संकल्पना से क्या समझते हैं? क्या इसकी परिधि में घृणा वाक् भी आता है ? भारत में फिल्में अभिव्यक्ति के अन्य रूपों से तनिक भिन्न स्तर पर क्यों हैं ? चर्चा कीजिये। (200 words) [UPSC 2014]
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वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य
एक मौलिक अधिकार है, जो व्यक्ति को अपने विचारों को स्वतंत्रता से व्यक्त करने की अनुमति देता है। यह लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विकास में योगदान करता है। हालांकि, इस स्वतंत्रता की सीमाएँ भी होती हैं।
घृणा वाक्
इस परिधि में आता है, क्योंकि यह न केवल अन्य व्यक्तियों के अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि समाज में हिंसा और असहमति को भी बढ़ावा देता है। भारत में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात को स्पष्ट किया है कि घृणा वाक् को अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य का हिस्सा नहीं माना जा सकता।
भारत में फिल्में अभिव्यक्ति के अन्य रूपों से भिन्न स्तर पर हैं क्योंकि फिल्में सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक संवेदनाओं को दर्शाती हैं। भारतीय सिनेमा में सेंसरशिप और सामाजिक मानदंडों का प्रभाव अधिक होता है, जो कलाकारों को अपनी अभिव्यक्ति में सीमित करता है। इसके अलावा, व्यावसायिक लाभ और दर्शकों की संवेदनाएँ भी फिल्म निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जिससे कुछ विषयों पर प्रतिबंध या आत्म-नियमन हो सकता है।
इसलिए, वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य का सही उपयोग समाज में सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जबकि घृणा वाक् का त्याग आवश्यक है।
वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य की संकल्पना: वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य का तात्पर्य व्यक्ति को अपनी राय, विचार, और विश्वास को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने के अधिकार से है। यह लोकतंत्र का एक मौलिक तत्व है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत यह अधिकार प्रदान किया गया है।
घृणा वाक् की परिधि: हालांकि वाक् स्वातंत्र्य महत्वपूर्ण है, लेकिन इसकी सीमाएं भी हैं। अनुच्छेद 19(2) के तहत, राज्य को सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता, नैतिकता, और भारत की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा के लिए इस अधिकार पर उचित प्रतिबंध लगाने का अधिकार है। घृणा वाक्, जो किसी समुदाय या व्यक्ति के प्रति हिंसा, विद्वेष, या द्वेष को प्रोत्साहित करता है, इन सीमाओं के अंतर्गत आता है और इसे वाक् स्वातंत्र्य का हिस्सा नहीं माना जा सकता। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने घृणा वाक् पर सख्ती से कार्रवाई की बात की है, जिससे इसका महत्व और बढ़ गया है।
फिल्में और अभिव्यक्ति के अन्य रूपों में अंतर: भारत में फिल्में अभिव्यक्ति के अन्य रूपों से अलग स्तर पर हैं क्योंकि फिल्मों का सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव अधिक व्यापक होता है। उदाहरण के लिए, ‘पठान’ और ‘द केरला स्टोरी’ जैसी फिल्मों पर विवाद और सेंसरशिप को लेकर हाल ही में चर्चाएं हुईं, जो दर्शाती हैं कि फिल्मों का समाज पर गहरा प्रभाव है। फिल्में एक सामूहिक माध्यम हैं जो व्यापक दर्शकों तक पहुंचती हैं, इसलिए उन पर अक्सर सेंसरशिप या विवाद की स्थिति बनती है।
निष्कर्ष: वाक् और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य लोकतंत्र का एक अभिन्न अंग है, लेकिन इसकी सीमाएं भी हैं, विशेष रूप से घृणा वाक् के संदर्भ में। फिल्में, अपने व्यापक प्रभाव के कारण, अभिव्यक्ति के अन्य रूपों से अलग स्तर पर देखी जाती हैं।