यद्यपि भारत में निर्धनता के अनेक विभिन्न प्राक्कलन किए गए हैं, तथापि सभी समय गुजरने के साथ निर्धनता स्तरों में कमी आने का संकेत देते हैं। क्या आप सहमत हैं? शहरी और ग्रामीण निर्धनता संकेतकों का उल्लेख के साथ समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए। (200 words) [UPSC 2015]
भारत में निर्धनता के प्राक्कलन और बदलाव: एक समालोचनात्मक परीक्षण
निर्धनता में कमी:
भारत में निर्धनता के विभिन्न प्राक्कलन, जैसे कि नैशनल सैंपल सर्वे (NSS) और सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) की रिपोर्टें, दिखाती हैं कि समय के साथ निर्धनता के स्तरों में कमी आई है। Planning Commission की रिपोर्ट के अनुसार, 2004-05 से 2011-12 के बीच ग्रामीण निर्धनता में 15 प्रतिशत की कमी आई है, जो सामाजिक-आर्थिक योजनाओं और विकास पहलों के प्रभाव को दर्शाता है।
शहरी निर्धनता:
शहरी निर्धनता में कमी की प्रवृत्ति उतनी स्पष्ट नहीं है। 2011 की जनगणना और NSSO के आंकड़ों के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में निर्धनता दर स्थिर या मामूली रूप से बढ़ी है। शहरी निर्धनता का प्रमुख कारण महंगी आवासीय कीमतें, स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए उच्च खर्च, और आधारभूत सुविधाओं की कमी हैं।
ग्रामीण निर्धनता:
ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता में कमी आई है, लेकिन यह विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है, जैसे कि नरेगा (NREGA) और प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) जैसी योजनाओं का कार्यान्वयन। हालांकि, भूखमरी और पोषण की कमी जैसे मुद्दे अभी भी बने हुए हैं, जो ग्रामीण निर्धनता के स्तर में स्थिरता को दर्शाते हैं।
निष्कर्ष:
समय के साथ भारत में निर्धनता के स्तरों में कमी के संकेत मिले हैं, लेकिन शहरी और ग्रामीण निर्धनता के संकेतक भिन्न हैं। शहरी निर्धनता की समस्या अधिक जटिल है और इसके समाधान के लिए व्यापक नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है। ग्रामीण निर्धनता में कमी की प्रवृत्ति सकारात्मक है, लेकिन इसके लिए सतत और समावेशी विकास की आवश्यकता है।