अध्यादेशों का आश्रय लेने ने हमेशा ही शक्तियों के पृथक्करण सिद्धांत की भावना के उल्लंघन पर चिंता जागृत की है। अध्यादेशों को लागू करने की शक्ति के तर्काधार को नोट करते हुए विश्लेषण कीजिए कि क्या इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय के विनिश्चयों ने इस शक्ति का आश्रय लेने को और सुगम बना दिया है। क्या अध्यादेशों को लागू करने की शक्ति का निरसन कर दिया जाना चाहिए? (200 words) [UPSC 2015]
अध्यादेशों का उपयोग, विशेषकर भारतीय संविधान के तहत, शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के उल्लंघन के रूप में देखा जा सकता है। अध्यादेशों का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 123 और 213 के तहत है, जो राष्ट्रपति और राज्यपाल को विशेष परिस्थितियों में तत्काल कानून बनाने की शक्ति प्रदान करता है। यह शक्ति आपातकालीन परिस्थितियों में आवश्यक होती है, लेकिन इसके दुरुपयोग की आशंका रहती है।
उच्चतम न्यायालय ने कई बार इस शक्ति के दुरुपयोग को लेकर चिंता व्यक्त की है। कोर्ट ने तय किया है कि अध्यादेशों का उपयोग तब किया जा सकता है जब वास्तव में तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता हो और जब विधायिका का सत्र न हो। न्यायालय ने यह भी कहा है कि अध्यादेशों का दुरुपयोग केवल असाधारण परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए, और उनका उद्देश्य न केवल तात्कालिक कानून बनाना बल्कि स्थायी कानूनों को लागू करना भी नहीं होना चाहिए।
इसलिए, अध्यादेशों की शक्ति का निरसन नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह एक आवश्यक संवैधानिक प्रावधान है। लेकिन, इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए कड़ी निगरानी और कानूनी ढांचे में सुधार की आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इसका उपयोग संविधान की भावना के अनुसार ही हो।