क्या भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने एक परिसंघीय संविधान निर्धारित कर दिया था ? चर्चा कीजिए । (200 words) [UPSC 2016]
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भारत सरकार अधिनियम, 1935, एक महत्वपूर्ण विधायी ढाँचा था जिसने ब्रिटिश भारत के शासन के लिए एक संरचना प्रदान की। हालांकि इस अधिनियम ने कुछ परिसंघीय विशेषताएँ पेश कीं, यह एक पूर्ण परिसंघीय संविधान नहीं था।
परिसंघीय विशेषताएँ:
संघीय संरचना: इस अधिनियम ने संघीय संरचना का निर्माण किया, जिसमें केंद्रीय और प्रांतीय सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया। इसमें केंद्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं का गठन हुआ और शक्तियों को संघीय सूची, प्रांतीय सूची, और सहवर्ती सूची में विभाजित किया गया।
संघीय न्यायालय: अधिनियम ने एक संघीय न्यायालय की स्थापना की, जो केंद्रीय और प्रांतीय सरकारों के बीच विवादों को निपटाने के लिए जिम्मेदार था, जिससे संघीय संरचना को कानूनी मान्यता मिली।
सीमाएँ:
केंद्रीय प्रभुत्व: हालांकि अधिनियम ने संघीय विशेषताएँ पेश कीं, केंद्रीय सरकार के पास काफी अधिकार थे। गवर्नर-जनरल और गवर्नरों को प्रांतीय विधानसभाओं को भंग करने और विधेयकों पर वीटो लगाने की शक्ति प्राप्त थी, जिससे प्रांतीय स्वायत्तता सीमित हो गई।
प्रिंसली राज्य: अधिनियम ने प्रिंसली राज्यों को केवल ढांचे में शामिल किया, लेकिन वे असल में संघीय प्रणाली में पूरी तरह से नहीं जुड़े थे। उनके पास काफी स्वायत्तता थी और वे केंद्रीय प्रणाली के तहत नहीं आते थे।
संघीय संतुलन की कमी: केंद्रीय सरकार की शक्तियाँ इतनी व्यापक थीं कि यह संघीय संतुलन को प्रभावित करती थीं। प्रांतीय विधानसभाओं की स्वायत्तता को सीमित किया गया था।
निष्कर्ष:
भारत सरकार अधिनियम, 1935 ने संघीय सिद्धांतों को पेश किया, लेकिन यह पूर्ण रूप से परिसंघीय संविधान नहीं था। यह एक मिश्रित प्रणाली थी जिसमें केंद्रीय नियंत्रण अधिक था और प्रांतीय स्वायत्तता सीमित थी। सच्चे परिसंघीय सिद्धांत भारत में 1950 में भारतीय संविधान के साथ स्थापित किए गए, जिसने राज्यों को अधिक स्वायत्तता प्रदान की और एक अधिक संतुलित संघीय ढाँचा निर्मित किया।