संघ और राज्यों के लेखाओं के सम्बन्ध में, नियंत्रक और महालेखापरीक्षक की शक्तियों का प्रयोग भारतीय संविधान के अनुच्छेद 149 से व्युत्पन्न है। चर्चा कीजिए कि क्या सरकार की नीति कार्यान्वयन की लेखापरीक्षा करना अपने स्वयं (नियंत्रक और महालेखापरीक्षक) की अधिकारिता का अतिक्रमण करना होगा या कि नहीं । (200 words) [UPSC 2016]
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 149 के तहत, नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG) को संघ और राज्यों के लेखाओं की लेखापरीक्षा करने की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। CAG की मुख्य जिम्मेदारी सार्वजनिक धन के उपयोग की पारदर्शिता और अनुपालन को सुनिश्चित करना है। यह प्रश्न कि सरकार की नीति कार्यान्वयन की लेखापरीक्षा करना CAG की अधिकारिता का अतिक्रमण हो सकता है या नहीं, इसे समझने के लिए हमें CAG के कर्तव्यों और अधिकारिता की सीमाओं को देखना होगा।
अधिकारिता और कर्तव्य:
लेखापरीक्षा की सीमा: CAG की भूमिका मुख्य रूप से संघ और राज्य सरकारों के लेखों की लेखापरीक्षा करने तक सीमित है। इसमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि सार्वजनिक धन सही तरीके से और कानून के अनुसार उपयोग किया गया है।
नीति कार्यान्वयन का लेखा परीक्षण: नीति कार्यान्वयन की लेखापरीक्षा करते समय, CAG का ध्यान मुख्यतः यह देखना होता है कि निर्धारित बजट और संसाधनों का उपयोग उचित रूप से किया गया है या नहीं। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वित्तीय प्रबंधन और संसाधनों की अनुपालन में कोई चूक न हो।
अतिक्रमण की संभावनाएँ: यदि CAG की लेखापरीक्षा नीति के कार्यान्वयन के परिणामों या नीति के प्रभाव पर केंद्रित हो जाती है, तो यह उसके मूल कर्तव्यों के बाहर हो सकता है। CAG को नीति की गुणवत्ता या प्रभावशीलता पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं होता, बल्कि उसे केवल वित्तीय प्रबंधन की जांच करनी चाहिए।
निष्कर्ष:
CAG की जिम्मेदारी का मूल उद्देश्य वित्तीय पारदर्शिता और अनुपालन सुनिश्चित करना है। नीति कार्यान्वयन की लेखापरीक्षा करते समय, अगर यह वित्तीय प्रबंधन और संसाधन उपयोग की जांच पर केंद्रित रहती है, तो यह उसकी अधिकारिता के भीतर रहेगा। परंतु, यदि यह नीति के प्रभाव या गुणवत्ता की समीक्षा में प्रवेश करती है, तो यह अधिकारिता का अतिक्रमण हो सकता है। उचित संतुलन बनाए रखना आवश्यक है ताकि CAG अपनी परिधि के भीतर रहकर प्रभावी लेखापरीक्षा कर सके।