“भारतीय राजनीतिक पार्टी प्रणाली परिवर्तन के ऐसे दौर से गुज़र रही है, जो अन्तर्विरोधों और विरोधाभासों से भरा प्रतीत होता है।” चर्चा कीजिए । (200 words) [UPSC 2016]
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भारतीय राजनीतिक पार्टी प्रणाली इस समय एक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है, जो विभिन्न अन्तर्विरोधों और विरोधाभासों से भरा हुआ है।
अन्तर्विरोध और विरोधाभास:
नई पार्टियों का उभार और स्थापित पार्टियों की प्रभुत्व: नई क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टियाँ, जैसे आम आदमी पार्टी और टीएमसी, पुरानी पार्टियों की चुनौती बन गई हैं। लेकिन इन नई पार्टियों द्वारा अपनाई गई रणनीतियाँ और नीतियाँ अक्सर पुरानी पार्टियों के समान होती हैं, जिससे पुराने और नए में निरंतरता दिखती है।
क्षेत्रीय पार्टियों की वृद्धि और राष्ट्रीय एकता: क्षेत्रीय पार्टियों का बढ़ता प्रभाव स्थानीय मुद्दों और पहचान पर ध्यान केंद्रित करता है, जो कभी-कभी राष्ट्रीय एकता को चुनौती दे सकता है। यह विरोधाभास दिखाता है कि स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के खिलाफ हो सकते हैं।
बढ़ती चुनावी भागीदारी और घटती विश्वास: चुनावी भागीदारी में वृद्धि के बावजूद, राजनीतिक संस्थानों और प्रतिनिधियों पर विश्वास में कमी देखी जा रही है। यह विरोधाभास दर्शाता है कि अधिक भागीदारी का मतलब हमेशा बेहतर संतोषजनक राजनीति नहीं होता।
गठबंधन राजनीति और मजबूत जनादेश: गठबंधन राजनीति का चलन बढ़ा है, जिससे अस्थिर और टुकड़ों में बंटी सरकारें बनती हैं। साथ ही, लोगों की मजबूत और निर्णायक नेतृत्व की चाहत बढ़ी है, जो मजबूत सरकार और गठबंधन राजनीति के बीच तनाव को दिखाता है.
विचारधारा में बदलाव और नीतिगत निरंतरता: राजनीतिक पार्टियाँ अक्सर अपने विचारधाराओं को चुनावी लाभ के लिए बदलती हैं, लेकिन नीतियों में लगातारता बनी रहती है। यह विरोधाभास विचारधारा और व्यवहार में भिन्नता को दर्शाता है.
निष्कर्ष:
भारतीय राजनीतिक पार्टी प्रणाली में परिवर्तन के दौर की जटिलताएँ पुरानी और नई ताकतों के बीच संघर्ष, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय मुद्दों की टकराहट, और विचारधारा व व्यवहार के बीच के अंतर को उजागर करती हैं। यह व्यवस्था दर्शाती है कि परिवर्तन और निरंतरता दोनों ही भारतीय राजनीति के मौजूदा परिदृश्य का हिस्सा हैं।