ऐसे तर्क दिए गए हैं कि पुरानी वैश्विक बहुपक्षीय व्यवस्था बढ़ती चुनौतियों का प्रबंधन करने में विफल रही है, जबकि मुद्दे- आधारित गठबंधन लोकप्रियता प्राप्त कर रहे हैं और कार्यात्मक सहयोग के क्षेत्र बन गए हैं। चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
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वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में, पुरानी वैश्विक बहुपक्षीय व्यवस्था—जैसे कि संयुक्त राष्ट्र और विश्व व्यापार संगठन—बढ़ती चुनौतियों के प्रबंधन में विफल रही है। इसके विपरीत, मुद्दे-आधारित गठबंधन और कार्यात्मक सहयोग के क्षेत्र लोकप्रियता प्राप्त कर रहे हैं। यह बदलाव वैश्विक राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए महत्वपूर्ण संकेतक हैं।
पुरानी बहुपक्षीय व्यवस्था की चुनौतियाँ: पारंपरिक बहुपक्षीय संस्थाएँ अक्सर जटिल निर्णय प्रक्रिया, सदस्य देशों के विविध हितों, और प्रबंधकीय अक्षमताओं के कारण प्रभावी कार्रवाई में असफल होती हैं। उदाहरण के लिए, जलवायु परिवर्तन, वैश्विक स्वास्थ्य संकट, और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद जैसे वैश्विक मुद्दों पर पुरानी संस्थाओं की प्रतिक्रिया अक्सर धीमी और असंगठित रही है। निर्णय प्रक्रिया में असहमति और सुधार के लिए आवश्यक समर्थन की कमी ने इन संस्थाओं की कार्यक्षमता को सीमित किया है।
मुद्दे-आधारित गठबंधन: इसके विपरीत, मुद्दे-आधारित गठबंधन जैसे कि जी-20, पेरिस जलवायु समझौता, और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी गठबंधन ने विशेष मुद्दों पर लक्षित और प्रभावी कार्रवाई की है। ये गठबंधन सामान्य हितों और लक्ष्यों पर आधारित होते हैं, जिससे निर्णय प्रक्रिया तेज और अधिक प्रभावी होती है। उदाहरण के लिए, पेरिस जलवायु समझौते ने वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए स्पष्ट और सुसंगत लक्ष्यों को स्थापित किया और विभिन्न देशों को एक साझा एजेंडा के तहत संगठित किया।
कार्यात्मक सहयोग: कार्यात्मक सहयोग के क्षेत्र जैसे कि स्वास्थ्य, विज्ञान, और ऊर्जा में भी तेजी से वृद्धि देखी गई है। ये क्षेत्र विशिष्ट समस्याओं के समाधान पर ध्यान केंद्रित करते हैं और तेजी से प्रतिक्रिया देने में सक्षम होते हैं। महामारी के दौरान, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के बजाय, देशों ने बायोटेक कंपनियों और वैश्विक स्वास्थ्य नेटवर्क्स के साथ मिलकर त्वरित समाधान खोजे।
निष्कर्ष: पुरानी वैश्विक बहुपक्षीय व्यवस्था की सीमाओं और चुनौतियों ने मुद्दे-आधारित गठबंधनों और कार्यात्मक सहयोग के क्षेत्र को प्राथमिकता देने के लिए प्रेरित किया है। यह नया परिदृश्य दर्शाता है कि विशिष्ट समस्याओं पर लक्षित और लचीले दृष्टिकोण वैश्विक समस्याओं के समाधान में अधिक प्रभावी हो सकते हैं। यह बदलाव अंतरराष्ट्रीय सहयोग की नई दिशा और रणनीतियों की आवश्यकता को स्पष्ट करता है, जिसमें अधिक लचीलापन और प्राथमिकता आधारित निर्णय लेने की प्रक्रिया शामिल है।