भारतीय संविधान के लागू होने के बाद से मूल अधिकारों और राज्य की नीति के निदेशक तत्वों (DPSPs) में संवैधानिक रूप से सामंजस्य स्थापित करना एक कठिन कार्य रहा है। प्रासंगिक न्यायिक निर्णयों की सहायता से चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
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भारतीय संविधान में मूल अधिकारों और राज्य की नीति के निदेशक तत्वों (DPSPs) के बीच सामंजस्य स्थापित करना चुनौतीपूर्ण रहा है। मूल अधिकार नागरिकों के व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा करते हैं, जबकि DPSPs सरकार को सामाजिक और आर्थिक सुधारों को लागू करने के लिए मार्गदर्शन करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के Kesavananda Bharati (1973) मामले में, कोर्ट ने तय किया कि संविधान के मूल ढांचे को संरक्षित रखते हुए DPSPs को लागू किया जा सकता है। इस निर्णय में यह भी कहा गया कि यदि DPSPs का कार्यान्वयन मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो मूल अधिकारों की प्राथमिकता होगी।
Minerva Mills (1980) केस में, कोर्ट ने DPSPs और मूल अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखने पर जोर दिया, यह मानते हुए कि संविधान के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए दोनों की समान महत्वपूर्ण भूमिका है। इन निर्णयों ने भारतीय संविधान के मूल अधिकारों और DPSPs के बीच संतुलन स्थापित किया है।