भारत में जैव-चिकित्सा अपशिष्ट (BMW) प्रबंधन में विद्यमान चुनौतियों की विवेचना कीजिए। साथ ही, इस संदर्भ में जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2018 की मुख्य विशेषताओं को रेखांकित कीजिए।
(उत्तर 250 शब्दों में दें)
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भारत में जैव-चिकित्सा अपशिष्ट (BMW) प्रबंधन में चुनौतियाँ:
अवसंरचना की कमी: कई स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों में जैव-चिकित्सा अपशिष्ट के सही संग्रहण, पृथक्करण और निपटान के लिए आवश्यक अवसंरचना और सुविधाओं की कमी है। अपशिष्ट प्रबंधन उपकरण और सुविधाएं अक्सर अपर्याप्त होती हैं।
पृथक्करण की कमी: जैव-चिकित्सा अपशिष्ट को अन्य सामान्य कचरे से पृथक रूप से संग्रहित नहीं किया जाता, जिससे संदूषण का खतरा बढ़ जाता है और प्रभावी निपटान में कठिनाई होती है।
प्रशिक्षण की कमी: स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों और अन्य संबंधित व्यक्तियों को जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन के सही तरीके के बारे में पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं मिलता, जो प्रबंधन की दक्षता को प्रभावित करता है।
विधानिक अनुपालन की कमी: कई संस्थानों में नियमों और मानकों का पालन नहीं होता, जिससे अपशिष्ट प्रबंधन के मानक पूरे नहीं हो पाते।
जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2018 की मुख्य विशेषताएँ:
क्लासिफिकेशन और रूटीन अपडेट: अपशिष्ट के प्रकार और प्रबंधन के लिए अद्यतन वर्गीकरण प्रदान करता है, और अपशिष्ट की प्रबंधन प्रक्रिया में सुधार के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहित करता है।
ऑनलाइन रिपोर्टिंग और ट्रैकिंग: नियमों के तहत, स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों को अपशिष्ट प्रबंधन की गतिविधियों की ऑनलाइन रिपोर्टिंग और ट्रैकिंग करने की आवश्यकता होती है। यह पारदर्शिता और निगरानी में सुधार करता है।
स्वच्छता मानक और प्रशिक्षण: अपशिष्ट प्रबंधन के लिए नए स्वच्छता मानक निर्धारित किए गए हैं और स्वास्थ्य कर्मियों के लिए प्रशिक्षण प्रोटोकॉल को अनिवार्य किया गया है।
निपटान प्रक्रियाओं में सुधार: अपशिष्ट निपटान के लिए स्वीकृत प्रक्रियाओं को मजबूत किया गया है, जिसमें जलाने, ठोस अपशिष्ट के लिए सुरक्षित निपटान और पुनः उपयोग की विधियाँ शामिल हैं।
इन नियमों का उद्देश्य जैव-चिकित्सा अपशिष्ट के सुरक्षित प्रबंधन को सुनिश्चित करना और स्वास्थ्य जोखिमों को कम करना है, जिससे पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को संरक्षित किया जा सके।