हाल ही में, घोषित सिविल सेवा परीक्षा परिणाम में लगातार दूसरे वर्ष महिला उम्मीदवार ने शीर्ष रैंक हासिल की है। समग्र रूप से, कुल 933 सफल उम्मीदवारों में से 320 महिलाएं हैं। यह किसी भी वर्ष चयनित महिला अभ्यर्थियों का सर्वाधिक प्रतिशत है। लेकिन यह संख्या, जनसंख्या में महिलाओं के अनुपात से काफी कम है। नौकरशाही पदानुक्रम में भी, पुरुषों की तुलना में महिलाएं शायद ही कभी शीर्ष पदों पर होती हैं।चिकित्सा क्षेत्र में, भारत में पुरुषों की तुलना में औसतन अधिक महिलाएं मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश लेती हैं। लेकिन स्नातकोत्तरऔर डॉक्टोरल स्तर पर, महिला डॉक्टरों का प्रतिशत पुरुष डॉक्टरों का लगभग एक तिहाई है। यह भी देखा गया है कि अकादमिक और प्रशासन में अग्रणी पदों पर अभी भी मुख्य रूप से पुरुषों का कब्जा है।इसके अतिरिक्त, राजनीति के क्षेत्र में नेतृत्व वाले पदों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व अपेक्षाकृत कम है। लोक सभा में महिलाओं को केवल 14% सीटें प्राप्त हैं। राज्य विधान-मंडलों में, महिलाओं का प्रतिनिधित्व अलग-अलग है, कुछ राज्यों में अन्य की तुलना में यह प्रतिशत अधिक है। हालांकि, राजनीतिक प्रतिनिधित्व में लैंगिक समानता हासिल करने के लिए अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना शेष है।
इस संदर्भ में, निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(a) वे कौन-सी प्रमुख बाधाएं और चुनौतियां हैं जो महिलाओं द्वारा अपने संबंधित क्षेत्रों में नेतृत्वकर्ता की भूमिका प्राप्त करने की उनकी यात्रा में बाधा डालती हैं?
(b) भारत में सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंड महिलाओं के रोजगार को कैसे प्रभावित करते हैं?
(c) चर्चा कीजिए कि भारत में महिलाओं के लिए रोजगार के अवसरों एवं करियर के विकास में लैंगिक समानता कैसे सुनिश्चित की जाए।
(250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
(a) महिलाओं के नेतृत्व में बाधाएं और चुनौतियां
सामाजिक मानदंड और पूर्वाग्रह: पारंपरिक सामाजिक मान्यताएँ अक्सर महिलाओं को कमजोर और पारंपरिक भूमिकाओं तक सीमित मानती हैं। इससे महिलाओं की नेतृत्व की भूमिकाओं में प्रवेश बाधित होता है।
शिक्षा और प्रशिक्षण का अभाव: महिलाओं को उच्च शिक्षा और पेशेवर प्रशिक्षण तक समान पहुंच नहीं मिलती, विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में, जिससे उनके करियर में वृद्धि की संभावनाएं सीमित हो जाती हैं।
पारिवारिक जिम्मेदारियां: पारिवारिक जिम्मेदारियां, जैसे कि बच्चों की देखभाल और घरेलू काम, महिलाओं के पेशेवर जीवन को प्रभावित करती हैं और नेतृत्व की भूमिकाओं में प्रवेश को कठिन बना देती हैं।
संरचनात्मक असमानताएं: कार्यस्थल पर पुरुष प्रधान संरचनाएं और नेटवर्किंग के अवसरों की कमी महिलाओं के करियर में अवरोध उत्पन्न करती हैं।
भेदभाव और असमान अवसर: महिलाओं को आमतौर पर समान काम के लिए समान वेतन और पदोन्नति के अवसर नहीं मिलते, जिससे उनकी नेतृत्व की भूमिकाओं में वृद्धि रुक जाती है।
(b) सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंडों का प्रभाव
लिंग आधारित भेदभाव: भारत में सांस्कृतिक मानदंड अक्सर महिलाओं को घर की जिम्मेदारियों तक सीमित करते हैं, जिससे उनकी पेशेवर जीवन की वृद्धि और नेतृत्व की भूमिकाओं में भागीदारी प्रभावित होती है।
शिक्षा और करियर की प्राथमिकताएं: समाज में महिलाओं की शिक्षा और करियर को पुरुषों की तुलना में कम महत्व दिया जाता है। इससे महिलाओं की पेशेवर स्थिति और विकास सीमित हो जाता है।
सांस्कृतिक रूढ़ियां: कुछ सांस्कृतिक रूढ़ियां महिलाओं की कार्यक्षमता और नेतृत्व की क्षमताओं को मान्यता नहीं देतीं, जिससे उन्हें उच्च पदों पर पहुँचने में कठिनाई होती है।
(c) लैंगिक समानता सुनिश्चित करने के उपाय
शिक्षा और प्रशिक्षण में सुधार: महिलाओं को उच्च शिक्षा और पेशेवर प्रशिक्षण में समान अवसर प्रदान किए जाएं। विशेषकर STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित) क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई जाए।
कार्यस्थल पर नीतियों का सुधार: कार्यस्थलों पर समान वेतन, पदोन्नति के अवसर, और लचीले काम के घंटे जैसी नीतियाँ लागू की जाएं, जो महिलाओं को समान अवसर प्रदान करें और कार्य-जीवन संतुलन को बढ़ावा दें।
सांस्कृतिक परिवर्तनों को बढ़ावा देना: लिंग भेदभाव और सांस्कृतिक रूढ़ियों को चुनौती देने वाले जन जागरूकता अभियान चलाए जाएं। समाज में महिलाओं के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण और स्वीकार्यता को प्रोत्साहित किया जाए।
संरचनात्मक परिवर्तन: राजनीतिक और प्रशासनिक क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए विशेष योजनाएं और नीतियां बनाई जाएं। महिलाओं के लिए नेतृत्व प्रशिक्षण और नेटवर्किंग के अवसर प्रदान किए जाएं।
इन उपायों को लागू करने से भारत में महिलाओं के रोजगार के अवसरों और करियर विकास में लैंगिक समानता सुनिश्चित की जा सकती है, जिससे वे समाज और अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावी भूमिका निभा सकेंगी।