1930-34 के सविनय अवज्ञा आंदोलन को एक अद्वितीय विशेषता, क्षेत्रीय स्थानिक पैटर्न और लामबंदी के नए तरीकों को शामिल करने के लिए जाना जाता है। स्पष्ट कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
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1930-34 का सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण और बहुपरकारी चरण था। इस आंदोलन की अद्वितीय विशेषता उसकी व्यापकता, क्षेत्रीय विविधता और नवीन लामबंदी के तरीकों में निहित है।
अद्वितीय विशेषता: इस आंदोलन की मुख्य विशेषता इसका शांतिपूर्ण प्रतिरोध था, जिसमें ब्रिटिश शासन की अवैध नीतियों के खिलाफ सीधी अवज्ञा की गई। महात्मा गांधी ने इस आंदोलन के अंतर्गत ब्रिटिश शासित कानूनों और नियमों को जानबूझकर न मानने की नीति अपनाई, जो आम लोगों को प्रेरित करने और जन जागरूकता बढ़ाने के लिए एक शक्तिशाली साधन साबित हुई।
क्षेत्रीय स्थानिक पैटर्न: इस आंदोलन ने पूरे भारत में विविध क्षेत्रीय विशेषताओं को उजागर किया। उदाहरण के लिए, गांधीजी ने 1930 में दांडी यात्रा की, जो नमक कानून का उल्लंघन करने का प्रतीकात्मक विरोध था और इसने समूचे देश में सविनय अवज्ञा की लहर को जन्म दिया। इसी प्रकार, कर्नाटका, बंगाल, और पंजाब में भी स्थानीय नेतृत्व और संघर्षों ने आंदोलन को एक व्यापक पैमाने पर फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
लामबंदी के नए तरीके: सविनय अवज्ञा आंदोलन में गांधीजी ने नए और प्रभावी लामबंदी के तरीके अपनाए। जनसहयोग और सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया। आंदोलन में स्थानीय नेतृत्व को बढ़ावा दिया गया और नागरिकों को स्थानीय स्तर पर समस्याओं के समाधान में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया गया। इसके अलावा, महिलाओं और किसानों को भी आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए लामबंद किया गया।
इन विशेषताओं के माध्यम से, सविनय अवज्ञा आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष को नई दिशा दी और सामूहिक आंदोलन की शक्ति को सिद्ध किया। यह आंदोलन न केवल ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ जन आंदोलन का एक प्रेरणादायक उदाहरण था, बल्कि इसने भारतीय समाज को राजनीतिक सक्रियता और सामाजिक न्याय की दिशा में भी जागरूक किया।