भारत में स्थानीय निकायों की सुदृढ़ता एवं संपोषिता ‘प्रकार्य, कार्यकर्ता व कोष’ की अपनी रचनात्मक प्रावस्था से ‘प्रकार्यात्मकता’ की समकालिक अवस्था की ओर स्थानान्तरित हुई हाल के समय में प्रकार्यात्मकता की दृष्टि से स्थानीय निकायों द्वारा सामना की जा रही अहम् चुनौतियों को आलोकित कीजिए। (250 words) [UPSC 2020]
भारत में स्थानीय निकायों की सुदृढ़ता और संपोषिता को सुनिश्चित करने के लिए ‘प्रकार्य, कार्यकर्ता व कोष’ की रचनात्मक व्यवस्था से ‘प्रकार्यात्मकता’ की ओर स्थानांतरित किया गया है। हालांकि, इस प्रक्रिया के दौरान स्थानीय निकायों को कई महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
मुख्य चुनौतियाँ:
आर्थिक संसाधनों की कमी: स्थानीय निकायों को स्थिर और पर्याप्त कोष की कमी का सामना करना पड़ता है। निधियों की अपर्याप्तता और वित्तीय प्रबंधन की कमी के कारण वे आवश्यक बुनियादी ढांचे और सेवाओं को प्रभावी ढंग से संचालित नहीं कर पाते हैं।
प्रबंधन और प्रशिक्षण:कर्मचारी स्थानीय निकायों में कर्मचारी की कमी और प्रशिक्षण की कमी से कार्यप्रणाली प्रभावित होती है। कर्मचारियों की अपर्याप्त संख्या और क्षमता की कमी के कारण काम की गुणवत्ता में गिरावट आती है।
सक्षम अधिकार और स्वायत्तता: स्थानीय निकायों को अपनी योजनाओं और कार्यों को स्वतंत्र रूप से लागू करने में कठिनाई होती है, क्योंकि कई बार राज्य और केंद्र सरकार की नीतियाँ और निर्देश स्थानीय निकायों की स्वायत्तता को प्रभावित करते हैं।
सामाजिक समावेशिता: स्थानीय निकायों को समुदायों की विविधता को समावेशी तरीके से संबोधित करने में कठिनाई होती है। विभिन्न जातियों, धर्मों, और सामाजिक वर्गों के बीच समान वितरण और प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण होता है।
भ्रष्टाचार और पारदर्शिता: भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी स्थानीय निकायों की कार्यप्रणाली को प्रभावित करती है। संसाधनों का दुरुपयोग और प्रशासनिक विफलता से विकास योजनाओं की सफलता बाधित होती है।
इन चुनौतियों को संबोधित करने के लिए, स्थानीय निकायों को वित्तीय प्रबंधन में सुधार, कर्मचारियों के प्रशिक्षण और विकास, और अधिक स्वायत्तता प्राप्त करने के लिए प्रयास करना होगा। इसके साथ ही, नागरिक भागीदारी और पारदर्शिता को बढ़ावा देने से स्थानीय प्रशासन की क्षमता और प्रभावशीलता में सुधार किया जा सकता है।