हाल के समय में भारत और यू.के, की न्यायिक व्यवस्थाएं अभिसरणीय एवं अपसरणीय होती प्रतीत हो रही हैं। दोनों राष्ट्रों की न्यायिक कार्यप्रणालियों के आलोक में अभिसरण तथा अपसरण के मुख्य बिदुओं को आलोकित कीजिये ।(150 words) [UPSC 2020]
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भारत और यू.के. की न्यायिक व्यवस्थाओं में ऐतिहासिक रूप से गहरा संबंध रहा है, क्योंकि भारत की न्यायिक प्रणाली ब्रिटिश कानूनी परंपराओं पर आधारित है। हाल के समय में, दोनों देशों की न्यायिक प्रणालियों में अभिसरण (convergence) और अपसरण (divergence) दोनों देखे जा सकते हैं।
अभिसरण:
विधि की सर्वोच्चता: दोनों देशों में विधि का शासन (Rule of Law) महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जो न्यायपालिका को कार्यपालिका और विधायिका से स्वतंत्र बनाता है।
न्यायिक समीक्षा: भारत और यू.के. दोनों में न्यायालयों को संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों की समीक्षा करने और असंवैधानिक विधानों को निरस्त करने का अधिकार है।
अपसरण:
संविधानिक संरचना: यू.के. का कोई लिखित संविधान नहीं है, जबकि भारत का एक विस्तृत लिखित संविधान है, जो न्यायालयों को व्यापक अधिकार प्रदान करता है।
न्यायिक सक्रियता: भारत में न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) अधिक है, जहां अदालतें सामाजिक और आर्थिक मुद्दों में भी हस्तक्षेप करती हैं, जबकि यू.के. में न्यायालय आमतौर पर विधायिका के फैसलों का सम्मान करते हैं और सीमित हस्तक्षेप करते हैं।
मानवाधिकार: यू.के. में यूरोपीय मानवाधिकार अधिनियम 1998 के तहत न्यायालय मानवाधिकार मामलों में फैसले लेते हैं, जबकि भारत में संविधान के मौलिक अधिकारों के तहत न्यायालय मानवाधिकार की रक्षा करते हैं।
इन अभिसरण और अपसरण के बिंदुओं ने दोनों न्यायिक प्रणालियों को समय के साथ अनोखा और गतिशील बनाया है।