उन संवैधानिक प्रावधानों को समझाइए जिनके अंतर्गत विधान परिषदें स्थापित होती हैं। उपयुक्त उदाहरणों के साथ विधान परिषदों के कार्य और वर्तमान स्थिति का मूल्यांकन कीजिए।
Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link and will create a new password via email.
Please briefly explain why you feel this question should be reported.
Please briefly explain why you feel this answer should be reported.
Please briefly explain why you feel this user should be reported.
संविधानिक प्रावधान:
अनुच्छेद 169:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 169 के तहत, किसी भी राज्य में विधान परिषद (Legislative Council) की स्थापना की जा सकती है। इसके अनुसार:
स्थापना की प्रक्रिया: विधान परिषद की स्थापना के लिए, राज्य की विधानसभा द्वारा एक प्रस्ताव पारित किया जाना चाहिए। इस प्रस्ताव को संसद में भी मंजूरी प्राप्त करनी होती है।
संगठन और संरचना: विधान परिषद की संरचना और सदस्य संख्या राज्य के संविधान द्वारा निर्धारित की जाती है, और इसमें विभिन्न श्रेणियों के सदस्य होते हैं जैसे कि शिक्षाविद, विधायकों, और पेशेवर।
विधान परिषदों के कार्य:
विधायिका का समर्थन:
विधान परिषद का मुख्य कार्य राज्य विधान सभा की सहायता करना होता है। यह विधायिका के सदस्य बनते हैं और विधायी कार्यों में अनुभव और विशेषज्ञता प्रदान करते हैं।
विधायी प्रक्रिया में सुधार:
विधान परिषद विधेयकों पर विचार करने, संशोधन करने और समीक्षा करने का काम करती है। यह विधान सभा के निर्णयों को अधिक सुसंगत और संतुलित बनाती है।
विशेषज्ञता और सलाह:
इसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ सदस्य होते हैं जो विधायिका को सलाह और सुझाव प्रदान करते हैं, जिससे कानूनों की गुणवत्ता में सुधार होता है।
उदाहरण:
बिहार विधान परिषद:
बिहार में विधान परिषद 1952 में स्थापित की गई थी और यह राज्य की विधायिका का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ सदस्य होते हैं जो विधायिका को समर्थन और सलाह प्रदान करते हैं।
कर्नाटक विधान परिषद:
कर्नाटक में विधान परिषद 1986 में पुनः स्थापित की गई थी। इसका काम राज्य की विधायिका के लिए महत्वपूर्ण सुझाव और निरीक्षण प्रदान करना है।
वर्तमान स्थिति और मूल्यांकन:
लाभ:
संतुलन और नियंत्रण:
विधान परिषद विधान सभा के कार्यों की समीक्षा करती है और इसमें शामिल विशेषज्ञता विधायिका को बेहतर निर्णय लेने में मदद करती है।
विधायिका की गुणवत्ता:
परिषद में अनुभवी और पेशेवर सदस्य होते हैं, जो विधायी प्रक्रिया में सुधार और अधिक पारदर्शिता लाने में सहायक होते हैं।
सीमाएँ:
अर्थशास्त्र:
कई लोगों का मानना है कि विधान परिषदें अनावश्यक और खर्चीली हैं, और इनकी उपस्थिति राज्य सरकार के संसाधनों पर बोझ डालती है।
राजनीतिक नियुक्तियाँ:
विधान परिषद में कई बार राजनीतिक नियुक्तियाँ होती हैं, जिससे इसकी निष्पक्षता और प्रभावशीलता पर सवाल उठते हैं।
वर्तमान स्थिति:
कुछ राज्यों में विधान परिषदें प्रभावी ढंग से कार्य कर रही हैं, जबकि अन्य में इसे समाप्त करने की माँग उठ रही है। विधान परिषद की उपयोगिता और संरचना पर विचार राज्य की प्रशासनिक प्राथमिकताओं और राजनीतिक परिदृश्य पर निर्भर करती है।
इस प्रकार, संविधानिक प्रावधानों के अंतर्गत स्थापित विधान परिषदें विधायिका को सहारा प्रदान करती हैं और विधायी प्रक्रिया को अधिक संतुलित और गुणवत्ता युक्त बनाने में सहायक होती हैं।