गुप्तकाल को प्राचीन भारतीय इतिहास का ‘स्वर्ण युग’ क्यों कहा जाता है ? (200 Words) [UPPSC 2022]
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प्राचीन भारतीय इतिहास में गुप्तकाल (320 ई. से 550 ई.) को ‘स्वर्ण युग’ कहा जाता है, क्योंकि:
राजनीतिक स्थिरता
गुप्त साम्राज्य प्राचीन भारत का सबसे बड़ा और सबसे स्थिर साम्राज्य था। वे राजनीतिक एकता बनाए रखने और उपमहाद्वीप भर में सापेक्षतः दीर्घकालीन शांति और समृद्धि सुनिश्चित करने में सक्षम थे, जैसा कि मौर्य साम्राज्य के दौरान देखा गया था।
आर्थिक समृद्धि
गुप्तकाल में व्यापार, वाणिज्य और कृषि का विकास हुआ, जिससे आर्थिक समृद्धि और शहरी केंद्रों का विकास हुआ, जैसा कि दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य के दौरान देखा गया था।
सांस्कृतिक पुनर्जागरण
गुप्तकाल को कला, साहित्य, विज्ञान और दर्शन में उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए जाना जाता है। इस युग में कामसूत्र, कालिदास के नाटक और आर्यभट्ट के गणितीय अविष्कार जैसे भारत के सबसे प्रसिद्ध कार्य प्रकाशित हुए, जैसा कि विजयनगर साम्राज्य के दौरान देखा गया था।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रगति
गुप्तकाल में खगोल, गणित, चिकित्सा और धातुकर्म जैसे विभिन्न विज्ञान क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई, जैसा कि अकबर के शासनकाल में मुगल साम्राज्य के दौरान देखा गया था।
धार्मिक सद्भाव
गुप्त शासकों ने हिंदूवाद, बौद्धवाद और जैनवाद जैसी विभिन्न धार्मिक परंपराओं का समर्थन किया, जो सांस्कृतिक समृद्धि का योगदान था, जैसा कि अकबर द्वारा मुगल साम्राज्य में धार्मिक बहुलता को बढ़ावा दिया गया था।
इस प्रकार, गुप्त काल को उसकी राजनीतिक स्थिरता, आर्थिक समृद्धि, सांस्कृतिक पुनर्जागरण, वैज्ञानिक प्रगति और धार्मिक सद्भाव के कारण प्राचीन भारतीय इतिहास का ‘स्वर्ण युग’ माना जाता है, जो कि अन्य साम्राज्यों के उपलब्धियों के समकक्ष है।
गुप्तकाल (लगभग 320-550 ईस्वी) को प्राचीन भारतीय इतिहास का ‘स्वर्ण युग’ कहा जाता है क्योंकि इस अवधि में भारतीय सांस्कृतिक, कला, विज्ञान, और प्रशासनिक क्षेत्रों में अत्यधिक उन्नति और समृद्धि देखी गई। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
1. **सांस्कृतिक उन्नति**: गुप्तकाल में भारतीय कला और वास्तुकला ने उत्कर्ष प्राप्त किया। अजंता-एलोरा की गुफाएँ और खजुराहो के मंदिर इस काल की अद्भुत स्थापत्य कला के उदाहरण हैं। गुप्तकाल में धार्मिक और साहित्यिक रचनाएँ भी महत्वपूर्ण थीं, जैसे कि कालिदास की महाकाव्य रचनाएँ (शकुन्तला, मेघदूत) और भवभूति की काव्य रचनाएँ।
2. **वैज्ञानिक और गणितीय प्रगति**: गणित और खगोलशास्त्र में महत्वपूर्ण उन्नति हुई। आर्यभट्ट और वराहमिहिर जैसे वैज्ञानिकों ने खगोलशास्त्र और गणित में योगदान दिया, और ‘शून्य’ और दशमलव प्रणाली का विकास इस काल की प्रमुख उपलब्धियों में से एक था।
3. **अर्थशास्त्र और प्रशासन**: गुप्तकाल में व्यापार और अर्थव्यवस्था ने प्रगति की। प्रशासनिक व्यवस्था मजबूत थी, और शांति और स्थिरता ने आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया।
4. **धार्मिक सहिष्णुता**: यह काल हिन्दू धर्म के विकास और बौद्ध धर्म के संरक्षण के लिए जाना जाता है। धार्मिक सहिष्णुता और विभिन्न धार्मिक विचारों का समर्थन किया गया।
इन कारणों से गुप्तकाल को ‘स्वर्ण युग’ की संज्ञा दी गई, जो भारतीय इतिहास का एक अत्यंत समृद्ध और प्रभावशाली काल था।
गुप्तकाल (लगभग 320-550 ईस्वी) को प्राचीन भारतीय इतिहास का ‘स्वर्ण युग’ कहा जाता है क्योंकि इस अवधि में भारतीय सांस्कृतिक, कला, विज्ञान, और प्रशासनिक क्षेत्रों में अत्यधिक उन्नति और समृद्धि देखी गई। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
1. **सांस्कृतिक उन्नति**: गुप्तकाल में भारतीय कला और वास्तुकला ने उत्कर्ष प्राप्त किया। अजंता-एलोरा की गुफाएँ और खजुराहो के मंदिर इस काल की अद्भुत स्थापत्य कला के उदाहरण हैं। गुप्तकाल में धार्मिक और साहित्यिक रचनाएँ भी महत्वपूर्ण थीं, जैसे कि कालिदास की महाकाव्य रचनाएँ (शकुन्तला, मेघदूत) और भवभूति की काव्य रचनाएँ।
2. **वैज्ञानिक और गणितीय प्रगति**: गणित और खगोलशास्त्र में महत्वपूर्ण उन्नति हुई। आर्यभट्ट और वराहमिहिर जैसे वैज्ञानिकों ने खगोलशास्त्र और गणित में योगदान दिया, और ‘शून्य’ और दशमलव प्रणाली का विकास इस काल की प्रमुख उपलब्धियों में से एक था।
3. **अर्थशास्त्र और प्रशासन**: गुप्तकाल में व्यापार और अर्थव्यवस्था ने प्रगति की। प्रशासनिक व्यवस्था मजबूत थी, और शांति और स्थिरता ने आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया।
4. **धार्मिक सहिष्णुता**: यह काल हिन्दू धर्म के विकास और बौद्ध धर्म के संरक्षण के लिए जाना जाता है। धार्मिक सहिष्णुता और विभिन्न धार्मिक विचारों का समर्थन किया गया।
इन कारणों से गुप्तकाल को ‘स्वर्ण युग’ की संज्ञा दी गई, जो भारतीय इतिहास का एक अत्यंत समृद्ध और प्रभावशाली काल था।