अपसारी उपागमों और रणनीतियों के होने के बावजूद, महात्मा गांधी और डॉ. बी.आर. अम्बेडकर का दलितों की बेहतरी का एक समान लक्ष्य था। स्पष्ट कीजिये । (200 words) [UPSC 2015]
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महात्मा गांधी और डॉ. बी.आर. अम्बेडकर दोनों का दलितों की बेहतरी के प्रति एक समान लक्ष्य था, हालांकि उनके उपागम और रणनीतियाँ भिन्न थीं। उनका मुख्य उद्देश्य दलितों की सामाजिक स्थिति में सुधार और उनके अधिकारों की रक्षा करना था, लेकिन उनके दृष्टिकोण और समाधान की विधियाँ अलग-अलग थीं।
महात्मा गांधी का दृष्टिकोण:
गांधी जी ने दलितों को “हरिजन” (भगवान के लोग) कहा और उनका उद्देश्य था कि दलितों को समाज में सम्मानजनक स्थान मिले। उन्होंने जातिवाद और अस्पृश्यता के खिलाफ अभियान चलाया और सामाजिक सुधार की दिशा में काम किया। उनका दृष्टिकोण अधिक सुधारात्मक था और वे जाति व्यवस्था को समाप्त करने के बजाय सुधारित करना चाहते थे। उन्होंने “सत्याग्रह” और सामाजिक बहिष्कार का उपयोग करके दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
डॉ. बी.आर. अम्बेडकर का दृष्टिकोण:
डॉ. अम्बेडकर ने दलितों की स्थिति को संविधानिक और संरचनात्मक दृष्टिकोण से सुधारने पर जोर दिया। वे जातिवाद को पूरी तरह से समाप्त करने और समान अधिकारों की मांग में विश्वास करते थे। अम्बेडकर ने संविधान में दलितों के लिए विशेष अधिकार और आरक्षण की व्यवस्था की। उनका दृष्टिकोण अधिक संस्थागत था और उन्होंने सामाजिक सुधार के साथ-साथ कानूनी और राजनीतिक उपायों को प्राथमिकता दी।
समान लक्ष्य:
समाज में सुधार: दोनों नेताओं का समान लक्ष्य था कि दलितों की सामाजिक स्थिति में सुधार हो और उन्हें समाज में बराबरी का स्थान मिले।
अस्पृश्यता का उन्मूलन: गांधी और अम्बेडकर ने अस्पृश्यता के खिलाफ संघर्ष किया और दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम किया।
शिक्षा और सामाजिक अधिकार: दोनों ने दलितों को शिक्षा और सामाजिक अधिकार प्रदान करने के महत्व को समझा और इस दिशा में कार्य किए।
हालांकि उनके उपागम और रणनीतियाँ भिन्न थीं—गांधी का अधिक सामाजिक सुधारात्मक दृष्टिकोण और अम्बेडकर का कानूनी और संविधानिक दृष्टिकोण—उनका लक्ष्य समान था: दलितों की सामाजिक स्थिति और अधिकारों में सुधार।