भारत के सूखा-प्रवण एवं अर्द्धशुष्क प्रदेशों में लघु जलसंभर विकास परियोजनाएँ किस प्रकार जल संरक्षण में सहायक हैं? (200 words) [UPSC 2016]
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भारत के सूखा-प्रवण और अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में लघु जलसंभर विकास परियोजनाएँ (Small Water Harvesting Projects) जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इन परियोजनाओं का उद्देश्य सीमित जल संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग और प्रबंधन करना है।
1. जल संग्रहण और पुनर्भरण:
लघु जलसंभर परियोजनाएँ जैसे कि खेत तालाब, चेक डैम, और नाला बंधन छोटे जलाशयों का निर्माण करती हैं, जो वर्षा के पानी को संचित करते हैं। इससे भूजल स्तर में वृद्धि होती है और सूखा प्रवण क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता बेहतर होती है।
2. कृषि में सुधार:
इन परियोजनाओं के माध्यम से सिंचाई के लिए स्थिर जल स्रोत उपलब्ध होते हैं, जो कृषि उत्पादन में सुधार करते हैं। सूखा प्रवण क्षेत्रों में इस प्रकार की सिंचाई प्रणाली फसलों की उर्वरता बढ़ाने में मदद करती है, जिससे खाद्य सुरक्षा में योगदान होता है।
3. भूमि संरक्षण:
लघु जलसंभर परियोजनाएँ भूमि के कटाव को रोकने और मृदा की गुणवत्ता को बनाए रखने में सहायक होती हैं। ये परियोजनाएँ जल प्रवाह को नियंत्रित करती हैं, जिससे भूमि की क्षति और कटाव कम होता है।
4. ग्रामीण आजीविका में सुधार:
इन परियोजनाओं के माध्यम से पानी की उपलब्धता बढ़ने से ग्रामीण इलाकों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है। यह पानी की कमी के कारण रोजगार और अन्य सामाजिक समस्याओं को कम करता है।
5. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करना:
जल संग्रहण और पुनर्भरण की प्रणाली जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती असामान्यता को संतुलित करने में मदद करती है। सूखा प्रवण क्षेत्रों में यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में सहायक होती है।
इन परियोजनाओं के सफल कार्यान्वयन से सूखा-प्रवण और अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में जल संकट को कम किया जा सकता है और दीर्घकालिक जल सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।