सिन्धु जल संधि का एक विवरण प्रस्तुत कीजिए तथा बदलते हुए द्विपक्षीय संबंधों के संदर्भ में उसके पारिस्थितिक, आर्थिक एवं राजनीतिक निहितार्थों का परीक्षण कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link and will create a new password via email.
Please briefly explain why you feel this question should be reported.
Please briefly explain why you feel this answer should be reported.
Please briefly explain why you feel this user should be reported.
सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुई एक महत्वपूर्ण समझौता है, जिसे विश्व बैंक की मध्यस्थता में संपन्न किया गया था। इस संधि के तहत, सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों को भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित किया गया। पूर्वी नदियाँ—सतलज, ब्यास, और रावी—भारत को दी गईं, जबकि पश्चिमी नदियाँ—सिंधु, झेलम, और चिनाब—पाकिस्तान को दी गईं। भारत को पूर्वी नदियों का पूरा उपयोग करने की अनुमति दी गई, जबकि पश्चिमी नदियों का सीमित उपयोग (जैसे कि सिंचाई, पनबिजली, और घरेलू उपयोग के लिए) किया जा सकता है।
पारिस्थितिक निहितार्थ:
संधि के कारण पश्चिमी नदियों के जल का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में प्रवाहित होता है, जिससे पाकिस्तान के पारिस्थितिकी तंत्र और कृषि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हालाँकि, जलवायु परिवर्तन और बढ़ती जल आवश्यकताओं के कारण पश्चिमी नदियों पर बढ़ता दबाव पारिस्थितिकीय संकट का कारण बन सकता है।
आर्थिक निहितार्थ:
सिंधु जल संधि ने भारत और पाकिस्तान दोनों की कृषि अर्थव्यवस्थाओं को स्थिर बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि, भारत की सीमित अधिकारिता के कारण पश्चिमी नदियों के जल से जुड़ी पनबिजली परियोजनाएँ आर्थिक विकास में पूरी तरह से योगदान नहीं कर पा रही हैं। दूसरी ओर, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से पंजाब और सिंध प्रांतों की कृषि, सिंधु प्रणाली पर अत्यधिक निर्भर है।
राजनीतिक निहितार्थ:
सिंधु जल संधि को दोनों देशों के बीच जल विवादों को शांतिपूर्वक सुलझाने का एक स्थायी समाधान माना गया है। हालाँकि, बदलते द्विपक्षीय संबंधों और बढ़ते तनाव के बीच, इस संधि को एक राजनीतिक हथियार के रूप में भी देखा जा सकता है। भारत में कई बार इस संधि की समीक्षा की मांग की गई है, विशेषकर तब जब भारत-पाकिस्तान संबंधों में तनाव बढ़ता है।
हालांकि संधि ने अब तक स्थायित्व बनाए रखा है, लेकिन दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी और राजनीतिक अस्थिरता इसे खतरे में डाल सकती है। बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में संधि की पुनः समीक्षा और जल प्रबंधन में सहयोग की आवश्यकता हो सकती है, ताकि दोनों देशों के लिए दीर्घकालिक लाभ सुनिश्चित किया जा सके।