विजयनगर नरेश कृष्णदेव राय न केवल स्वयं एक कुशल विद्वान थे अपितु विद्या एवं साहित्य के महान संरक्षक भी थे। विवेचना कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
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विजयनगर साम्राज्य के नरेश कृष्णदेव राय (1509-1529 CE) एक प्रतिष्ठित विद्वान और साहित्य के महान संरक्षक थे। उनकी विद्या और साहित्य के प्रति गहरी रुचि ने उनके शासनकाल को सांस्कृतिक समृद्धि का युग बना दिया।
स्वयं विद्वान:
कृष्णदेव राय स्वयं एक कुशल विद्वान थे और अनेक भाषाओं जैसे तेलुगु, संस्कृत और कन्नड़ में पारंगत थे। उन्होंने तेलुगु भाषा में “अमुक्तमाल्यदा” नामक महाकाव्य लिखा, जो बौद्धिक और धार्मिक विचारों से समृद्ध है और आज भी तेलुगु साहित्य का महत्वपूर्ण अंग है।
साहित्य का संरक्षण:
उनके दरबार में साहित्यिक और बौद्धिक गतिविधियों को अत्यधिक प्रोत्साहन मिला। उनका दरबार “अष्टादिग्गज” के नाम से प्रसिद्ध था, जिसमें आठ प्रमुख विद्वान शामिल थे, जैसे अल्लसानी पेड्दना। इन विद्वानों ने तेलुगु काव्य और साहित्य को नई ऊँचाइयाँ प्रदान की। कृष्णदेव राय ने विद्वानों और कलाकारों को अपने दरबार में आमंत्रित किया और साहित्यिक कार्यों को संरक्षित और प्रचारित किया।
साहित्यिक प्रोत्साहन:
उनके संरक्षण में तेलुगु साहित्य का सुवर्णकाल आया, और कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना हुई। उनके शासनकाल में साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ चरम पर थीं, जो दक्षिण भारतीय सांस्कृतिक परंपरा को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस प्रकार, कृष्णदेव राय का विद्या और साहित्य के प्रति समर्पण और संरक्षण उनके शासनकाल को सांस्कृतिक और बौद्धिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बना देता है।