गाँधीवादी प्रावस्था के दौरान विभिन्न स्वरों ने राष्ट्रवादी आन्दोलन को सुदृढ़ एवं समृद्ध बनाया था । विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिए। (250 words) [UPSC 2019]
Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link and will create a new password via email.
Please briefly explain why you feel this question should be reported.
Please briefly explain why you feel this answer should be reported.
Please briefly explain why you feel this user should be reported.
गाँधीवादी प्रावस्था (1917-1947) के दौरान राष्ट्रवादी आंदोलन में विभिन्न स्वरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के संघर्ष को और मजबूत एवं समृद्ध बनाया। इन स्वरों में प्रमुख हैं:
महिलाओं की भागीदारी:
सरोजिनी नायडू, कस्तूरबा गांधी, अरुणा आसफ अली और विजयलक्ष्मी पंडित जैसी प्रमुख महिला नेताओं ने नागरिक अवज्ञा, असहयोग और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
महिलाओं की इस भागीदारी ने न केवल राष्ट्रवादी संघर्ष में लिंग समानता लाई, बल्कि महिला अधिकारों और सशक्तिकरण के मुद्दों को भी प्रमुखता दी।
रैडिकल क्रांतिकारी:
भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं ने अंग्रेजों के खिलाफ अधिक आक्रामक, सशस्त्र संघर्ष का समर्थन किया।
उनके क्रांतिकारी कार्यकलापों और शहादत ने युवाओं को प्रेरित किया और राष्ट्रवादी आंदोलन में तीव्रता का संचार किया।
समाजवादी और कम्युनिस्ट स्वर:
जवाहरलाल नेहरू, जयप्रकाश नारायण और राममनोहर लोहिया जैसे नेताओं ने समाजवादी और मार्क्सवादी विचारधारा को राष्ट्रवादी वार्ता में शामिल किया।
उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त आर्थिक और सामाजिक असमानताओं को संबोधित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
दलित दावे:
बी.आर. आंबेडकर दलितों और समाज के वंचित वर्गों के अधिकारों के लिए एक शक्तिशाली आवाज़ बने।
जाति-आधारित भेदभाव के खिलाफ उनका संघर्ष और दलितों के लिए अलग निर्वाचन मण्डल की मांग ने राष्ट्रवादी आंदोलन की समावेशी प्रकृति को मज़बूत किया।
क्षेत्रीय आंदोलन:
तमिलनाडु में ई.वी. रामास्वामी (पेरियार), केरल में कोकिलामेडु विद्रोह और बंगाल में तेभागा आंदोलन जैसे नेताओं ने क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं और स्थानीय पहचानों के दावों को प्रतिनिधित्व दिया।
ये आंदोलन राष्ट्रवादी दृष्टिकोण को क्षेत्रीय विविधताओं को समायोजित करने की आवश्यकता पर जोर देकर समृद्ध बनाते हैं।
गाँधीवादी प्रावस्था के दौरान, इन विभिन्न स्वरों का संगम जो एक विशिष्ट दृष्टिकोण और アDृष्टीकरण प्रस्तुत करते थे, ने राष्ट्रवादी आंदोलन को और मज़बूत और समावेशी बनाया। यह आंदोलन भारतीय जनता की विविध चिंताओं को संबोधित करने वाले एक व्यापक संघर्ष में विकसित हुआ, जिसका अंततः स्वतंत्रता प्राप्ति में परिणाम हुआ।