भारतीय समाज में जाति, क्षेत्र तथा धर्म के समानांतर ‘पंथ’ की विशेषता की विवेचना कीजिए । (250 words) [UPSC 2022]
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भारतीय समाज में जाति, क्षेत्र, और धर्म के समानांतर ‘पंथ’ की विशेषता एक महत्वपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक तत्व है। पंथ, धार्मिक और आध्यात्मिक विचारधाराओं का एक समूह है, जो विशिष्ट आस्थाएँ, रीतियाँ, और अनुशासन निर्धारित करता है। यह भारतीय समाज में जाति और धर्म से जुड़े विभिन्न पहलुओं के साथ अंतर्क्रियात्मक तरीके से जुड़ा हुआ है।
जाति और पंथ: जाति व्यवस्था भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, और पंथ इसके साथ जुड़ी हुई है। विभिन्न जातियों में पंथों की विविधता देखने को मिलती है। उदाहरण के लिए, सिख पंथ विशेष रूप से पंजाब क्षेत्र की जाति व्यवस्था से जुड़ा हुआ है और इसने जाति आधारित भेदभाव को कम करने का प्रयास किया। इसके विपरीत, कुछ पंथ जाति व्यवस्था की परवाह किए बिना समता और एकता की बात करते हैं।
क्षेत्र और पंथ: पंथों का क्षेत्रीय विस्तार भी भारतीय समाज की विविधता को दर्शाता है। उदाहरण के लिए, दक्षिण भारत में ‘शैव’ और ‘वैष्णव’ पंथों का प्रभाव है, जबकि उत्तर भारत में ‘सिख’ और ‘भक्ति’ पंथ प्रमुख हैं। इन पंथों ने क्षेत्रीय संस्कृति और परंपराओं को अपनाया और अपने-अपने क्षेत्रों में प्रभावशाली रहे।
धर्म और पंथ: धर्म और पंथ के बीच भी एक गहरा संबंध है। कई पंथ धार्मिक विचारधाराओं से उत्पन्न हुए हैं, जैसे कि सिख धर्म का पंथ, जो हिंदू धर्म और इस्लाम के तत्वों को समेटे हुए है। इसके अलावा, भक्ति आंदोलन ने विभिन्न पंथों को जन्म दिया, जो हिंदू धर्म के भीतर विभिन्न धार्मिक विचारों और आस्थाओं को एकत्रित करते हैं।
पंथ की विशेषता: पंथ समाज में धार्मिक विविधता और सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाता है। यह विभिन्न धार्मिक प्रथाओं और विश्वासों को संजोए हुए है, और यह जाति, क्षेत्र और धर्म के समानांतर एक समानांतर धार्मिक पहचान बनाता है। पंथ एक ऐसी शक्ति है जो विभिन्न धार्मिक और सामाजिक समूहों को जोड़ने और सांस्कृतिक एकता को बनाए रखने में मदद करती है।
इन पहलुओं के माध्यम से, पंथ भारतीय समाज की जटिलता और विविधता को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।