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विश्व के विभिन्न देशों में रेलवे के आगमन से होने वाले सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को उजागर कीजिए। ( 150 Words) [UPSC 2023]
रेलवे के आगमन से विश्व के विभिन्न देशों में सामाजिक-आर्थिक प्रभाव आर्थिक प्रभाव: रेलवे के आगमन ने औद्योगिक क्रांति के दौरान और उसके बाद वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत किया। यह सामान्य माल और कच्चे माल की त्वरित और किफायती ढुलाई को संभव बनाता है, जिससे व्यापार और औद्योगिकीकरण में वृद्धि हुई। उदाहरणसRead more
रेलवे के आगमन से विश्व के विभिन्न देशों में सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
आर्थिक प्रभाव: रेलवे के आगमन ने औद्योगिक क्रांति के दौरान और उसके बाद वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत किया। यह सामान्य माल और कच्चे माल की त्वरित और किफायती ढुलाई को संभव बनाता है, जिससे व्यापार और औद्योगिकीकरण में वृद्धि हुई। उदाहरणस्वरूप, ब्रिटेन में 19वीं सदी में रेलवे नेटवर्क के विस्तार ने औद्योगिक क्षेत्रों को प्रमुख बंदरगाहों से जोड़ा, जिससे उत्पादन में तेजी आई और निर्यात में बढ़ोतरी हुई। आज के समय में चीन का बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत रेलवे नेटवर्क का विस्तार वैश्विक व्यापार कनेक्टिविटी को बढ़ा रहा है, जिससे विकासशील देशों में रोजगार और निवेश के अवसर बढ़ रहे हैं।
सामाजिक प्रभाव: रेलवे ने शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच संपर्क को मजबूत किया। भारत में, 19वीं शताब्दी में रेलवे के आगमन ने सामाजिक गतिशीलता और संचार में सुधार किया, जिससे विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों के बीच संबंध स्थापित हुए। आज, बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट जैसे योजनाओं से ग्रामीण और शहरी भारत के बीच कनेक्टिविटी बढ़ रही है, जिसका प्रभाव आर्थिक विकास और सामाजिक समृद्धि पर पड़ रहा है।
रेलवे ने वैश्विक स्तर पर शहरीकरण, रोजगार और सांस्कृतिक संपर्क को बढ़ावा दिया है, जो लंबे समय तक आर्थिक और सामाजिक प्रगति का आधार बना।
See less1956 में स्वेज़ संकट को पैदा करने वाली घटनाएँ क्या थीं? उसने एक विश्व शक्ति के रूप में ब्रिटेन की आत्म-छवि पर किस प्रकार अंतिम प्रहार किया ? (150 words) [UPSC 2014]
1956 का स्वेज़ संकट एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय घटना थी जो ब्रिटेन की विश्व शक्ति के रूप में आत्म-छवि को गहरा प्रभावित किया। स्वेज़ संकट को पैदा करने वाली घटनाएँ: स्वेज़ नहर का राष्ट्रीयकरण: मिस्र के राष्ट्रपति गामल अब्देल नासर ने स्वेज़ नहर को राष्ट्रीयकरण कर लिया, जो ब्रिटेन और फ्रांस के लिए एक महRead more
1956 का स्वेज़ संकट एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय घटना थी जो ब्रिटेन की विश्व शक्ति के रूप में आत्म-छवि को गहरा प्रभावित किया।
स्वेज़ संकट को पैदा करने वाली घटनाएँ:
See lessस्वेज़ नहर का राष्ट्रीयकरण: मिस्र के राष्ट्रपति गामल अब्देल नासर ने स्वेज़ नहर को राष्ट्रीयकरण कर लिया, जो ब्रिटेन और फ्रांस के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक मार्ग था।
सुएज़ संकट योजना: ब्रिटेन, फ्रांस और इज़राइल ने मिलकर मिस्र के खिलाफ सैन्य अभियान की योजना बनाई, जिसे “सुएज़ संकट” के नाम से जाना जाता है।
ब्रिटेन की आत्म-छवि पर प्रभाव:
अंतरराष्ट्रीय असफलता: संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका के विरोध के चलते ब्रिटेन को सैन्य और कूटनीतिक असफलता का सामना करना पड़ा, जिससे उसकी विश्व शक्ति की छवि को धक्का लगा।
अमेरिका और सोवियत संघ की बढ़ती भूमिका: अमेरिका की धमकियों और सोवियत संघ की धमकी ने ब्रिटेन की वैश्विक प्रभावशीलता को कम किया, दिखाते हुए कि ब्रिटेन अब एक प्रमुख विश्व शक्ति नहीं रह गया।
इस प्रकार, स्वेज़ संकट ने ब्रिटेन की विश्व शक्ति की आत्म-छवि पर महत्वपूर्ण और स्थायी प्रभाव डाला।
पश्चिमी अफ्रीका में उपनिवेश-विरोधी संघर्षों को पाश्चात्य-शिक्षित अफ्रीकियों के नव संभ्रांत वर्ग के द्वारा नेतृत्व प्रदान किया गया था। परीक्षण कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
पश्चिमी अफ्रीका में उपनिवेश-विरोधी संघर्षों का नेतृत्व पाश्चात्य-शिक्षित अफ्रीकियों के नव संभ्रांत वर्ग ने किया, जिन्होंने औपनिवेशिक शासनों के खिलाफ स्वतंत्रता और स्वशासन की मांग उठाई। इस नव संभ्रांत वर्ग का उदय 20वीं सदी के प्रारंभ में हुआ, जब कुछ अफ्रीकी युवाओं को यूरोपीय शिक्षा प्राप्त करने का अवRead more
पश्चिमी अफ्रीका में उपनिवेश-विरोधी संघर्षों का नेतृत्व पाश्चात्य-शिक्षित अफ्रीकियों के नव संभ्रांत वर्ग ने किया, जिन्होंने औपनिवेशिक शासनों के खिलाफ स्वतंत्रता और स्वशासन की मांग उठाई। इस नव संभ्रांत वर्ग का उदय 20वीं सदी के प्रारंभ में हुआ, जब कुछ अफ्रीकी युवाओं को यूरोपीय शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला। इन शिक्षित अफ्रीकियों ने यूरोपीय विचारों, जैसे लोकतंत्र, स्वतंत्रता और मानवाधिकारों से प्रेरणा ली, और उन्होंने अपने देशों के लिए समान अधिकार और स्वतंत्रता की मांग की।
इन नेताओं में क्वीमे नक्रूमा (घाना), सेको टुरे (गिनी), और फेलिक्स हौफुएट-बोइगनी (कोटे डी’आईवोआर) प्रमुख थे, जिन्होंने अपने-अपने देशों में स्वतंत्रता आंदोलनों का नेतृत्व किया। ये नेता औपनिवेशिक शासनों के दमनकारी नीतियों के खिलाफ संगठित हो गए और जनता को जागरूक किया। उन्होंने अपने देशों की राजनीतिक, आर्थिक, और सामाजिक स्थितियों को सुधारने के लिए विचारधारात्मक और व्यावहारिक मार्गदर्शन प्रदान किया।
हालांकि, इन नव संभ्रांत वर्ग के नेताओं ने उपनिवेश-विरोधी संघर्षों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन जनता के व्यापक समर्थन के बिना यह संघर्ष सफल नहीं हो सकता था। इन नेताओं ने जनता की आकांक्षाओं और पारंपरिक नेताओं के साथ मिलकर उपनिवेश-विरोधी आंदोलन को व्यापक जनाधार प्रदान किया। इस प्रकार, पाश्चात्य-शिक्षित अफ्रीकियों के नव संभ्रांत वर्ग ने पश्चिमी अफ्रीका में स्वतंत्रता संग्राम को नेतृत्व और दिशा दी।
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