वर्तमान में लौह एवं इस्पात उद्योगों की कच्चे माल के स्रोत से दूर स्थिति का उदाहरणों सहित कारण बताइए । (150 words)[UPSC 2020]
उत्तर-पश्चिमी भारत के कृषि-आधारित खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के स्थानीयकरण के कारक 1. कच्चे माल की उपलब्धता: उत्तर-पश्चिमी भारत, विशेषकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश, ‘भारत का अनाज कोठा’ के रूप में जाना जाता है। यहाँ गेहूँ, चावल और गन्ने की व्यापक खेती होती है, जो खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के लRead more
उत्तर-पश्चिमी भारत के कृषि-आधारित खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के स्थानीयकरण के कारक
1. कच्चे माल की उपलब्धता:
उत्तर-पश्चिमी भारत, विशेषकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश, ‘भारत का अनाज कोठा’ के रूप में जाना जाता है। यहाँ गेहूँ, चावल और गन्ने की व्यापक खेती होती है, जो खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के लिए निरंतर कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करती है। उदाहरणस्वरूप, पंजाब के चावल मिलें देश के बासमती चावल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा प्रोसेस करती हैं।
2. अनुकूल जलवायु परिस्थितियाँ:
इस क्षेत्र की जलवायु परिस्थितियाँ विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती के लिए अनुकूल हैं। इंडो-गैंगेटिक मैदानी क्षेत्रों की उर्वर भूमि गेहूँ, मक्का, और सरसों जैसी फसलों की प्रचुरता को बढ़ावा देती है, जो खाद्य प्रक्रमण उद्योगों की स्थापना में सहायक है।
3. पानी और सिंचाई की पहुंच:
उत्तर-पश्चिमी भारत विस्तृत नहर सिंचाई प्रणालियों जैसे भाखड़ा नांगल और पश्चिमी यमुना नहर से लाभान्वित होता है, जो कृषि के लिए साल भर पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करती है। इस भरोसेमंद सिंचाई नेटवर्क से खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के लिए आवश्यक कच्चे माल की निरंतर आपूर्ति होती है।
4. बाजारों और निर्यात केंद्रों की निकटता:
क्षेत्र की निकटता बड़े उपभोक्ता बाजारों जैसे दिल्ली और निर्यात केंद्रों जैसे कांडला पोर्ट और मुंद्रा पोर्ट से, प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के वितरण को सरल बनाती है। यह खाद्य प्रक्रमण उद्योगों की व्यवहार्यता को बढ़ाता है, क्योंकि परिवहन लागत कम होती है।
5. सरकारी नीतियाँ और अवसंरचना:
प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना जैसे विभिन्न सरकारी योजनाएँ और खाद्य प्रक्रमण इकाइयों के लिए राज्य सरकारों द्वारा प्रदान की गई प्रोत्साहन ने इन उद्योगों के विकास में सहायक भूमिका निभाई है। इस क्षेत्र में विकसित अवसंरचना, जैसे सड़कें, रेलमार्ग, और कोल्ड स्टोरेज सुविधाएँ, खाद्य प्रक्रमण उद्योगों के सुचारू संचालन को समर्थन देती हैं।
6. कुशल श्रम और तकनीकी प्रगति:
कृषि विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों जैसे पंजाब कृषि विश्वविद्यालय और हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की उपस्थिति से कुशल श्रमिक और खाद्य प्रक्रमण तकनीक में नवाचार प्रदान किए जाते हैं। इससे उत्पादकता और दक्षता में सुधार होता है।
निष्कर्ष:
उत्तर-पश्चिमी भारत में कृषि-आधारित खाद्य प्रक्रमण उद्योगों का स्थानीयकरण कच्चे माल की उपलब्धता, अनुकूल जलवायु, पानी की पहुंच, बाजारों की निकटता, सरकारी समर्थन, और कुशल श्रम के कारण संभव हुआ है। ये कारक इस क्षेत्र को भारत के खाद्य प्रक्रमण क्षेत्र में प्रमुख बनाते हैं, स्थानीय किसानों और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था दोनों को लाभ पहुँचाते हैं।
वर्तमान में लौह और इस्पात उद्योगों की कच्चे माल के स्रोत से दूर स्थिति के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं: अधिशेषता और आधुनिकता: उद्योगों की बढ़ती मांग और बढ़ती तकनीकी आवश्यकताओं ने कच्चे माल के स्रोत से दूर स्थानांतरित होने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया है। उदाहरण के लिए, भारत में बड़े इस्पात संयंत्र जैसेRead more
वर्तमान में लौह और इस्पात उद्योगों की कच्चे माल के स्रोत से दूर स्थिति के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
अधिशेषता और आधुनिकता:
उद्योगों की बढ़ती मांग और बढ़ती तकनीकी आवश्यकताओं ने कच्चे माल के स्रोत से दूर स्थानांतरित होने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया है। उदाहरण के लिए, भारत में बड़े इस्पात संयंत्र जैसे टाटा स्टील और सेल, जिनके लिए कच्चा माल के स्रोत दूर स्थित क्षेत्रों से आता है, जैसे झारखंड और ओडिशा।
आर्थिक और भौगोलिक कारण:
कच्चे माल के स्रोत की सीमित उपलब्धता और उच्च लागत के कारण संयंत्रों को उन क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जाता है जहाँ परिवहन और विपणन सुविधाएँ बेहतर होती हैं। उदाहरण के लिए, कई भारतीय इस्पात संयंत्र दक्षिण भारत में स्थित हैं, जबकि कच्चा माल मुख्यतः उत्तर और पूर्वी भारत से आता है।
पर्यावरणीय और सामाजिक कारण:
पर्यावरणीय नियमों और स्थानीय समुदायों के विरोध के कारण उद्योगों को कच्चे माल के स्रोत से दूर स्थानांतरित किया जा रहा है। यह दृष्टिकोण कच्चे माल की आपूर्ति श्रृंखला को स्थिर और कुशल बनाने के उद्देश्य से अपनाया गया है।
इन कारणों से लौह और इस्पात उद्योगों की कच्चे माल के स्रोत से दूरी बढ़ रही है, जिससे उद्योगों की परिचालन लागत और आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन में जटिलताएँ बढ़ रही हैं।
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