पर्यावरण आंदोलनों के उद्भव के लिए निहित कारणों और स्वातंत्र्योत्तर भारत में उनके महत्व पर चर्चा कीजिए।(250 शब्दों में उत्तर दें)
स्वतंत्रता के बाद भारत में आर्थिक विकास की दिशा में चुनौतियाँ और उनके समाधान स्वतंत्रता के बाद भारत ने आर्थिक विकास की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए, लेकिन इस यात्रा में कई चुनौतियाँ भी आईं। इन चुनौतियों को समझने और उनका समाधान करने के लिए विभिन्न उपाय किए गए। इस उत्तर में, हम इन चुनौतियों और उनकेRead more
स्वतंत्रता के बाद भारत में आर्थिक विकास की दिशा में चुनौतियाँ और उनके समाधान
स्वतंत्रता के बाद भारत ने आर्थिक विकास की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए, लेकिन इस यात्रा में कई चुनौतियाँ भी आईं। इन चुनौतियों को समझने और उनका समाधान करने के लिए विभिन्न उपाय किए गए। इस उत्तर में, हम इन चुनौतियों और उनके समाधान का विश्लेषण करेंगे।
1. आर्थिक विकास की दिशा में प्रमुख चुनौतियाँ
a. गरीबी और बेरोजगारी
- गरीबी: स्वतंत्रता के समय भारत की विशाल जनसंख्या और कम संसाधनों के कारण गरीबी एक गंभीर चुनौती थी। 1950-60 के दशक में 60% से अधिक जनसंख्या गरीबी की रेखा के नीचे थी।
- बेरोजगारी: औद्योगिकीकरण और शहरीकरण की कमी के कारण बेरोजगारी भी एक प्रमुख समस्या थी। शहरी क्षेत्रों में रोजगार की कमी और कृषि क्षेत्र में उत्पादकता की कमी ने बेरोजगारी को बढ़ावा दिया।
b. अवसंरचनात्मक कमी
- अवसंरचनात्मक विकास: स्वतंत्रता के बाद भारत में अवसंरचनात्मक विकास की कमी थी। सड़क, बिजली, और जल आपूर्ति की आधारभूत सुविधाएँ अपर्याप्त थीं, जो आर्थिक विकास की गति को प्रभावित करती थीं।
- उद्योगों की कमी: प्रारंभिक वर्षों में औद्योगिकीकरण की कमी और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था ने आर्थिक विकास की दिशा में बाधाएँ उत्पन्न कीं।
c. शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी
- शिक्षा: स्वतंत्रता के समय साक्षरता दर अत्यंत कम थी और शिक्षा की सुविधाएँ भी सीमित थीं, जो मानव संसाधनों के विकास को प्रभावित करती थीं।
- स्वास्थ्य सेवाएँ: स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की उपलब्धता की कमी ने जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित किया।
2. चुनौतियों के समाधान के लिए उपाय
a. आर्थिक योजनाएँ और नीतियाँ
- नेहरू की योजना आयोग की स्थापना: 1950 में स्थापित योजना आयोग ने पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से आर्थिक विकास की दिशा निर्धारित की। पहली पंचवर्षीय योजना (1951-56) ने प्राथमिक क्षेत्र में निवेश पर जोर दिया।
- आर्थिक सुधार: 1991 में आर्थिक सुधार और उदारीकरण ने भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाजार से जोड़ा और बाजार आधारित सुधार किए, जिससे आर्थिक विकास की गति तेज हुई।
b. अवसंरचनात्मक विकास
- राष्ट्रीय अवसंरचना योजनाएँ: राष्ट्रीय राजमार्ग कार्यक्रम और विद्युत विकास योजनाएँ ने सड़क, बिजली, और जल आपूर्ति जैसी अवसंरचनाओं को विकसित किया। भारतमाला प्रोजेक्ट और सागरमाला योजना जैसी योजनाओं ने परिवहन अवसंरचना को मजबूत किया।
- औद्योगिक विकास: औद्योगिक नीति और मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों ने औद्योगिकीकरण को बढ़ावा दिया और वेतन आधारित क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया।
c. शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार
- सर्व शिक्षा अभियान: 2000 में सर्व शिक्षा अभियान ने शिक्षा की पहुंच को बढ़ाया और साक्षरता दर में वृद्धि की।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और आयुष्मान भारत योजना ने स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए कार्य किया। प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना ने लाखों गरीब परिवारों को स्वास्थ्य बीमा प्रदान किया।
d. गरीबी और बेरोजगारी में सुधार
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA): 2005 में लागू किए गए MGNREGA ने ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी को कम किया और स्थायी रोजगार के अवसर प्रदान किए।
- प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना: प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना ने छोटे और मझोले उद्योगों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की, जिससे रोजगार के अवसर बढ़े।
उदाहरण:
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ पहल: इस पहल ने भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण स्थान पर लाने का प्रयास किया और औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित किया।
- आरबीआई की मौद्रिक नीतियाँ: भारतीय रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीतियों के माध्यम से मुद्रा स्फीति और वेतन वृद्धि पर नियंत्रण रखने के लिए उपाय किए, जिससे आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा मिला।
निष्कर्ष:
स्वतंत्रता के बाद भारत को कई आर्थिक विकास की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इन चुनौतियों के समाधान के लिए विभिन्न नीतियाँ और योजनाएँ लागू की गईं, जैसे कि पंचवर्षीय योजनाएँ, आर्थिक सुधार, अवसंरचनात्मक विकास, और शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार। इन उपायों ने भारत की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ किया और विकास की दिशा को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया, हालांकि चुनौतियों का सामना अभी भी जारी है।
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पर्यावरण आंदोलनों का उद्भव विभिन्न कारणों से हुआ है, जैसे जलवायु परिवर्तन, वन्यजीव संरक्षण, प्रदूषण नियंत्रण, और जल संरक्षण। ये आंदोलन लोगों के जागरूक होने से उत्पन्न होते हैं जो अपने पर्यावरण के लिए जिम्मेदारी लेने के लिए सक्षम हो रहे हैं। स्वातंत्र्योत्तर भारत में पर्यावरण आंदोलनों का महत्व विशेषRead more
पर्यावरण आंदोलनों का उद्भव विभिन्न कारणों से हुआ है, जैसे जलवायु परिवर्तन, वन्यजीव संरक्षण, प्रदूषण नियंत्रण, और जल संरक्षण। ये आंदोलन लोगों के जागरूक होने से उत्पन्न होते हैं जो अपने पर्यावरण के लिए जिम्मेदारी लेने के लिए सक्षम हो रहे हैं।
स्वातंत्र्योत्तर भारत में पर्यावरण आंदोलनों का महत्व विशेष है। ये आंदोलन लोगों को पर्यावरण संरक्षण और उसकी महत्वता के प्रति जागरूक करते हैं और सरकारों को जागरूक और कार्रवाई के लिए प्रेरित करते हैं। इन आंदोलनों के माध्यम से लोग अपने पर्यावरण की रक्षा में सक्रिय भागीदार बनते हैं।
स्वतंत्रता के बाद भारत में पर्यावरण आंदोलनों का महत्व और व्यापक हो गया है। लोग अपने सशक्तिकरण के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं। ये आंदोलन सामाजिक परिवर्तन और सुधार के लिए महत्वपूर्ण हैं और साथ ही सामाजिक सद्भावना और सहयोग को बढ़ावा देते हैं।
इस प्रकार, पर्यावरण आंदोलनों का महत्व व्यापक है और इन्हें स्वातंत्र्योत्तर भारत में बढ़ावा देना जरूरी है ताकि हम सुस्त पर्यावरण के खिलाफ लड़ाई में सक्षम हो सकें।
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