स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिए, राज्य द्वारा की गई दो मुख्य विधिक पहलें क्या हैं? (150 words) [UPSC 2017]
धार्मिकता और साम्प्रदायिकता के बीच विभेदन महत्वपूर्ण है, विशेषकर स्वतंत्र भारत में धार्मिकता के साम्प्रदायिकता में रूपांतरित होने की प्रक्रिया को समझने में। धार्मिकता बनाम साम्प्रदायिकता: स्वभाव और ध्यान केंद्रित: धार्मिकता: व्यक्तिगत या सामूहिक आध्यात्मिक आस्था, धार्मिक अनुष्ठान, और नैतिक मूल्यों पRead more
धार्मिकता और साम्प्रदायिकता के बीच विभेदन महत्वपूर्ण है, विशेषकर स्वतंत्र भारत में धार्मिकता के साम्प्रदायिकता में रूपांतरित होने की प्रक्रिया को समझने में।
धार्मिकता बनाम साम्प्रदायिकता:
- स्वभाव और ध्यान केंद्रित:
- धार्मिकता: व्यक्तिगत या सामूहिक आध्यात्मिक आस्था, धार्मिक अनुष्ठान, और नैतिक मूल्यों पर आधारित होती है। इसका उद्देश्य व्यक्तिगत शांति, आत्म-संवर्धन, और समुदाय की एकता को बढ़ावा देना होता है।
- साम्प्रदायिकता: यह एक राजनीतिक या सामाजिक विचारधारा होती है जो एक विशेष धार्मिक समुदाय के हितों को दूसरों पर प्राथमिकता देती है, जिससे सामाजिक विभाजन और संघर्ष पैदा होते हैं।
- प्रभाव:
- धार्मिकता: यह व्यक्तिगत विश्वास और आस्था को बढ़ावा देती है, जिससे सामाजिक संबंध और पारस्परिक समझ विकसित होती है।
- साम्प्रदायिकता: यह सामाजिक असहमति और संघर्ष को जन्म देती है, और समाज में धार्मिक आधार पर विभाजन को बढ़ावा देती है।
उदाहरण:
गुजरात दंगों (2002) इसका एक प्रमुख उदाहरण है, जिसमें धार्मिकता के साम्प्रदायिकता में रूपांतरित होने को देखा जा सकता है। इस घटना के मूल में, एक ट्रेन में आग लगने की दुर्घटना थी, जिसमें कई हिंदू तीर्थयात्री मारे गए थे। इस घटना ने धार्मिक उन्माद और भावनाओं को भड़काया, जिसे कुछ राजनीतिक समूहों ने साम्प्रदायिक माहौल उत्पन्न करने के लिए भुनाया।
धार्मिक भावनाओं को राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग किया गया, जिससे मुसलमानों के खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न का वातावरण बना। धार्मिकता, जो कि पहले व्यक्तिगत और आध्यात्मिक विश्वासों पर आधारित थी, साम्प्रदायिकता में बदल गई, जहां धार्मिक पहचान और झगड़े सामाजिक और राजनीतिक एजेंडों के लिए उपयोग किए गए।
इस प्रकार, धार्मिकता से साम्प्रदायिकता का रूपांतरण व्यक्तिगत आस्था को राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष में बदल देता है, जो व्यापक सामाजिक विभाजन और हिंसा का कारण बनता है।
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स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिए विधिक पहलें 1. अनुसूचित जनजाति (अनुसूचित क्षेत्रों) अधिनियम, 1952: यह अधिनियम अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों और सुरक्षा की रक्षा के लिए विशेष प्रावधान करता है। "अनुसूचित क्षेत्रों" में स्वशासन को प्रोत्साहित किया जाता हRead more
स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिए विधिक पहलें
1. अनुसूचित जनजाति (अनुसूचित क्षेत्रों) अधिनियम, 1952:
2. अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989:
निष्कर्ष: इन विधिक पहलों के माध्यम से राज्य ने अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों की रक्षा और उनके प्रति भेदभाव को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
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