Home/upsc: sheet yudha
- Recent Questions
- Most Answered
- Answers
- No Answers
- Most Visited
- Most Voted
- Random
- Bump Question
- New Questions
- Sticky Questions
- Polls
- Followed Questions
- Favorite Questions
- Recent Questions With Time
- Most Answered With Time
- Answers With Time
- No Answers With Time
- Most Visited With Time
- Most Voted With Time
- Random With Time
- Bump Question With Time
- New Questions With Time
- Sticky Questions With Time
- Polls With Time
- Followed Questions With Time
- Favorite Questions With Time
शीत युद्ध के अंत के बाद वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य में क्या परिवर्तन आए? इसके कारणों और प्रभावों का विश्लेषण करें।
शीत युद्ध के अंत के बाद वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य में परिवर्तन: कारण और प्रभाव 1. शीत युद्ध के अंत के बाद परिवर्तन: शीत युद्ध का अंत 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ हुआ, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन आए। इस समय के बाद वैश्विक राजनीति में एक नई संरचना औरRead more
शीत युद्ध के अंत के बाद वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य में परिवर्तन: कारण और प्रभाव
1. शीत युद्ध के अंत के बाद परिवर्तन:
शीत युद्ध का अंत 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ हुआ, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन आए। इस समय के बाद वैश्विक राजनीति में एक नई संरचना और नए ट्रेंड्स उभरकर सामने आए।
2. प्रमुख परिवर्तन:
3. कारण:
4. प्रभाव:
5. निष्कर्ष:
शीत युद्ध के अंत के बाद वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन आया, जिसमें अमेरिका का एकल सुपरपावर के रूप में उभार, सोवियत संघ का विघटन, और नवउदारवादी नीतियों का प्रसार शामिल है। इन परिवर्तनों ने वैश्विक सुरक्षा, आर्थिक नीतियों, और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर गहरा प्रभाव डाला है। वैश्विक राजनीति की इस नई संरचना में नए संघर्ष, सुरक्षा चुनौतियाँ, और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता ने स्पष्ट रूप से सामने आई है।
See lessशीत युद्ध में गुटनिरपेक्षता का क्या महत्व था? यह किस प्रकार छोटे देशों की राजनीति को प्रभावित करता है?
शीत युद्ध में गुटनिरपेक्षता का महत्व और छोटे देशों की राजनीति पर इसका प्रभाव 1. गुटनिरपेक्षता का परिचय: गुटनिरपेक्षता (Non-Alignment) एक अंतरराष्ट्रीय नीति थी जिसका उद्देश्य शीत युद्ध के दो प्रमुख गुटों – अमेरिका और सोवियत संघ – से स्वतंत्र रहना था। इसका मुख्य उद्देश्य छोटे और नव-स्वतंत्र देशों की सRead more
शीत युद्ध में गुटनिरपेक्षता का महत्व और छोटे देशों की राजनीति पर इसका प्रभाव
1. गुटनिरपेक्षता का परिचय:
गुटनिरपेक्षता (Non-Alignment) एक अंतरराष्ट्रीय नीति थी जिसका उद्देश्य शीत युद्ध के दो प्रमुख गुटों – अमेरिका और सोवियत संघ – से स्वतंत्र रहना था। इसका मुख्य उद्देश्य छोटे और नव-स्वतंत्र देशों की संप्रभुता को बनाए रखना और किसी एक महाशक्ति के प्रभाव से बचना था।
2. गुटनिरपेक्षता का महत्व:
3. छोटे देशों की राजनीति पर प्रभाव:
4. हाल के उदाहरण:
5. निष्कर्ष:
शीत युद्ध के दौरान गुटनिरपेक्षता ने छोटे देशों को वैश्विक राजनीति में अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता बनाए रखने का अवसर प्रदान किया। इस नीति ने उन्हें दोनों महाशक्तियों के प्रभाव से बचाने में मदद की और विकास के लिए स्वतंत्र नीतियाँ अपनाने की सुविधा दी। गुटनिरपेक्षता आज भी कई छोटे देशों के लिए महत्वपूर्ण है, जो वैश्विक चुनौतियों का सामना करने में स्वतंत्र दृष्टिकोण अपनाते हैं।
See lessशीत युद्ध के दौरान प्रतिस्पर्धात्मक हथियारों की दौड़ ने किस प्रकार वैश्विक सुरक्षा को प्रभावित किया? इसके दीर्घकालिक परिणामों पर चर्चा करें।
शीत युद्ध के दौरान प्रतिस्पर्धात्मक हथियारों की दौड़ और वैश्विक सुरक्षा पर इसका प्रभाव 1. हथियारों की दौड़ का संदर्भ: शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ के बीच प्रतिस्पर्धात्मक हथियारों की दौड़ ने वैश्विक सुरक्षा पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। यह दौड़ मुख्यतः परमाणु हथियारों और रणनीतिक मिसाइलों कीRead more
शीत युद्ध के दौरान प्रतिस्पर्धात्मक हथियारों की दौड़ और वैश्विक सुरक्षा पर इसका प्रभाव
1. हथियारों की दौड़ का संदर्भ:
शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ के बीच प्रतिस्पर्धात्मक हथियारों की दौड़ ने वैश्विक सुरक्षा पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। यह दौड़ मुख्यतः परमाणु हथियारों और रणनीतिक मिसाइलों की होड़ पर केंद्रित थी। दोनों देशों ने एक दूसरे को रणनीतिक और टैक्टिकल हथियारों में हराने के लिए अनगिनत संसाधन खर्च किए।
2. वैश्विक सुरक्षा में अस्थिरता:
परमाणु हथियारों की होड़ ने वैश्विक सुरक्षा स्थिति में गंभीर अस्थिरता उत्पन्न की। 1959 में क्यूबा मिसाइल संकट इसका प्रमुख उदाहरण है, जिसमें सोवियत संघ ने क्यूबा में मिसाइल तैनात किए, जिससे अमेरिका और सोवियत संघ के बीच एक परमाणु युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई। यह संकट वैश्विक सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा था और इसके परिणामस्वरूप हॉटलाइन स्थापित की गई ताकि संकट के समय त्वरित संवाद किया जा सके।
3. हथियारों की दौड़ और क्षेत्रीय संघर्ष:
हथियारों की दौड़ ने क्षेत्रीय संघर्षों को भी बढ़ावा दिया। अमेरिका और सोवियत संघ ने स्थानीय युद्धों में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए विभिन्न गुटों को समर्थन दिया। वियतनाम युद्ध और अंगोला संघर्ष जैसे संघर्षों में दोनों महाशक्तियों ने अपने हथियारों और सैन्य सहायता का उपयोग किया, जिससे संघर्षों की तीव्रता और अवधि बढ़ी।
4. दीर्घकालिक परिणाम:
5. समापन:
हथियारों की दौड़ ने वैश्विक सुरक्षा पर गहरा प्रभाव डाला, जिससे अस्थिरता और संघर्षों में वृद्धि हुई। इसके दीर्घकालिक परिणाम आज भी वैश्विक राजनीति में महसूस किए जा रहे हैं, जिसमें परमाणु प्रसार और अंतर्राष्ट्रीय संधियों के कार्यान्वयन की चुनौतियाँ शामिल हैं। इस संदर्भ में, विस्तृत और प्रभावी वैश्विक नीति की आवश्यकता है जो मौजूदा चुनौतियों से निपट सके और वैश्विक सुरक्षा को सुनिश्चित कर सके।
See lessशीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ के बीच संबंधों का क्या महत्व था? इनके प्रभावों का वैश्विक संदर्भ में विश्लेषण करें।
शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ के बीच संबंधों का महत्व और वैश्विक प्रभाव 1. शीत युद्ध की पृष्ठभूमि: शीत युद्ध (1947-1991) अमेरिका और सोवियत संघ के बीच एक राजनीतिक और वैचारिक संघर्ष था। यह द्विध्रुवीय शक्ति संतुलन का परिणाम था जिसमें दोनों महाशक्तियों ने अपनी विचारधाराओं – पूंजीवाद और समाजवRead more
शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ के बीच संबंधों का महत्व और वैश्विक प्रभाव
1. शीत युद्ध की पृष्ठभूमि:
शीत युद्ध (1947-1991) अमेरिका और सोवियत संघ के बीच एक राजनीतिक और वैचारिक संघर्ष था। यह द्विध्रुवीय शक्ति संतुलन का परिणाम था जिसमें दोनों महाशक्तियों ने अपनी विचारधाराओं – पूंजीवाद और समाजवाद – की प्रतिस्पर्धा की।
2. वैश्विक शक्ति संतुलन:
शीत युद्ध ने वैश्विक शक्ति संतुलन को दो प्रमुख ध्रुवों में विभाजित कर दिया। अमेरिका और सोवियत संघ ने अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने के लिए स्थानीय संघर्षों और युद्धों में हस्तक्षेप किया। उदाहरणस्वरूप, कोरिया युद्ध (1950-1953) और वियतनाम युद्ध (1955-1975) ने इस संघर्ष की प्रमुखता को दर्शाया।
3. परमाणु हथियारों की होड़:
इस अवधि में, दोनों महाशक्तियों ने परमाणु हथियारों की होड़ को प्रोत्साहित किया, जिससे वैश्विक सुरक्षा स्थिति में अस्थिरता आ गई। 1959 में क्यूबा मिसाइल संकट इसका प्रमुख उदाहरण है, जिसमें सोवियत संघ ने क्यूबा में मिसाइल तैनात किए थे, जिससे अमेरिका और सोवियत संघ के बीच युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई।
4. नये वैश्विक गठबंधनों का निर्माण:
अमेरिका और सोवियत संघ ने नई वैश्विक गठबंधनों का निर्माण किया, जैसे कि अमेरिका का नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) और सोवियत संघ का वारसा संधि संगठन। इन गठबंधनों ने वैश्विक राजनीति में एक स्पष्ट ध्रुवीय संरचना प्रदान की और छोटे देशों पर प्रभाव डाला।
5. विकासशील देशों पर प्रभाव:
शीत युद्ध का प्रभाव विकासशील देशों में भी स्पष्ट था। आफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में अमेरिका और सोवियत संघ ने अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए स्थानीय संघर्षों और क्रांतियों का समर्थन किया। उदाहरण के लिए, अंगोला संघर्ष (1975-2002) में दोनों महाशक्तियों ने अपनी वफादार गुटों को समर्थन दिया।
6. शीत युद्ध का समापन और इसका वैश्विक प्रभाव:
1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ शीत युद्ध का अंत हुआ। इसके परिणामस्वरूप, अमेरिका एकमात्र सुपरपावर के रूप में उभरा और वैश्विक राजनीति में नए आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य का निर्माण हुआ। सोवियत संघ के विघटन ने वास्तविक बहुपरकारीकरण और पूंजीवादी लोकतंत्र के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त किया।
निष्कर्ष:
अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध ने वैश्विक राजनीति, शक्ति संतुलन, और विकासशील देशों की स्थिति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। यह अवधि वैश्विक संघर्षों, हथियारों की होड़, और अंतर्राष्ट्रीय गठबंधनों के निर्माण की दृष्टि से महत्वपूर्ण थी, जिसका प्रभाव आज भी वैश्विक राजनीति में महसूस किया जाता है।
See less