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"वहनीय (ऐफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय (सस्टेनबल) विकास लक्ष्यों (एस० डी० जी०) को प्राप्त करने के लिए अनिवार्य है।" भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिए। (150 words) [UPSC 2018]
भारत में ऊर्जा तक पहुँच में प्रगति 1. ग्रामीण Electrification: उज्ज्वला योजना: 2016 में शुरू की गई इस योजना के तहत 90 मिलियन से अधिक एलपीजी कनेक्शन प्रदान किए गए हैं, जिससे साफ ईंधन तक पहुँच में सुधार हुआ है। दीक्षा योजना: इस योजना ने 18,000 से अधिक गांवों को विद्युत ग्रिड से जोड़ा, जिससे ग्रामीण इलRead more
भारत में ऊर्जा तक पहुँच में प्रगति
1. ग्रामीण Electrification:
2. नवीकरणीय ऊर्जा की वृद्धि:
3. ऊर्जा दक्षता प्रयास:
4. चुनौतियाँ और सुधार की दिशा:
भारत की ऊर्जा पहुँच में प्रगति ने एसडीजी की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, हालांकि पूर्ण रूप से ऊर्जा समावेश और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए आगे भी प्रयास आवश्यक हैं।
See lessसमावेशी संवृद्धि एवं संपोषणीय विकास के परिप्रेक्ष्य में, आंतर्पीढ़ी एवं अंतर्पीढ़ी साम्या के विषयों की व्याख्या कीजिए। (150 words) [UPSC 2020]
आंतर्पीढ़ी (Intra-regional) और अंतर्पीढ़ी (Inter-regional) साम्या की व्याख्या आंतर्पीढ़ी साम्या: परिभाषा: एक ही क्षेत्र के भीतर विभिन्न सामाजिक और आर्थिक समूहों के बीच समानता। उदाहरण: आंध्र प्रदेश में अमरावती का विकास - इस परियोजना ने न केवल क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा दिया बल्कि स्थानीय जनसंख्या के लRead more
आंतर्पीढ़ी (Intra-regional) और अंतर्पीढ़ी (Inter-regional) साम्या की व्याख्या
आंतर्पीढ़ी साम्या:
अंतर्पीढ़ी साम्या:
समावेशी संवृद्धि एवं संपोषणीय विकास के परिप्रेक्ष्य में:
इन उपायों के माध्यम से समावेशी संवृद्धि और संपोषणीय विकास को सुनिश्चित किया जा सकता है, जो सामाजिक और आर्थिक न्याय को बढ़ावा देते हैं।
See lessएक समावेशी, निम्न-उत्सर्जन वाली और जलवायु अनुकूल विकास एजेंडा को अपनाने से भारत के घरेलू सार्वजनिक व्यय की प्रभावशीलता में काफी वृद्धि होगी। भारत में जलवायु परिवर्तन अनुकूल बजटिंग के संदर्भ में चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
भारत में जलवायु परिवर्तन अनुकूल बजटिंग (Climate-Responsive Budgeting) के माध्यम से घरेलू सार्वजनिक व्यय की प्रभावशीलता में महत्वपूर्ण सुधार संभव है। जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों को देखते हुए, एक समावेशी और निम्न-उत्सर्जन वाली विकास रणनीति अपनाना आवश्यक है। इस संदर्भ में, जलवायु परिवर्तन अनुकूल बजRead more
भारत में जलवायु परिवर्तन अनुकूल बजटिंग (Climate-Responsive Budgeting) के माध्यम से घरेलू सार्वजनिक व्यय की प्रभावशीलता में महत्वपूर्ण सुधार संभव है। जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों को देखते हुए, एक समावेशी और निम्न-उत्सर्जन वाली विकास रणनीति अपनाना आवश्यक है। इस संदर्भ में, जलवायु परिवर्तन अनुकूल बजटिंग के लाभ निम्नलिखित हैं:
**1. प्रभावी संसाधन आवंटन:** जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में बजट तैयार करते समय, संसाधनों का आवंटन ऐसे क्षेत्रों में किया जा सकता है जो जलवायु लचीलापन और स्थिरता को बढ़ावा दें। इससे बुनियादी ढांचे, कृषि, और ऊर्जा क्षेत्र में टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा मिल सकता है, जैसे कि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश और जलवायु अनुकूल कृषि तकनीकों का समर्थन।
**2. जोखिम प्रबंधन:** जलवायु परिवर्तन के जोखिमों, जैसे कि बाढ़ और सूखा, को ध्यान में रखते हुए बजट तैयार करना, सार्वजनिक निवेश को उन क्षेत्रों में केंद्रित करता है जो इन जोखिमों को कम कर सकते हैं। इससे आपदा प्रबंधन और पुनर्निर्माण कार्यों की लागत में कमी आ सकती है।
**3. समावेशिता:** जलवायु अनुकूल बजटिंग नीति को सभी सामाजिक और आर्थिक समूहों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जा सकता है, जिससे समाज के कमजोर वर्गों को विशेष लाभ मिलेगा और उनकी जलवायु संबंधी चुनौतियों का सामना करने में सहायता होगी।
**4. दीर्घकालिक लाभ:** जलवायु अनुकूल बजटिंग दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों को साधने में मदद करती है, जैसे कि सतत विकास लक्ष्य (SDGs) को प्राप्त करने में योगदान देना। इससे न केवल जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम किया जा सकता है, बल्कि आर्थिक और सामाजिक स्थिरता भी प्राप्त की जा सकती है।
**5. पारदर्शिता और उत्तरदायित्व:** जलवायु बजटिंग से संबंधित डेटा और रिपोर्टिंग के माध्यम से पारदर्शिता बढ़ती है, जो नीति निर्माताओं और नागरिकों को बजट की प्रभावशीलता की निगरानी करने में सक्षम बनाती है।
**चुनौतियाँ और समाधान:**
हालांकि, जलवायु परिवर्तन अनुकूल बजटिंग के लाभ स्पष्ट हैं, इसके कार्यान्वयन में चुनौतियाँ भी हैं, जैसे कि डेटा की कमी, तकनीकी और संस्थागत क्षमताओं की कमी, और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी। इन समस्याओं का समाधान करने के लिए, भारत को मजबूत नीतिगत ढाँचा, बेहतर डेटा संग्रहण और विश्लेषण क्षमताएँ, और सभी स्तरों पर समन्वय की आवश्यकता है।
इस प्रकार, जलवायु परिवर्तन अनुकूल बजटिंग भारत के घरेलू सार्वजनिक व्यय की प्रभावशीलता को बढ़ाने और दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
See lessभारतीय कृषि पर जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभाव की विवेचना कीजिए। इस संबंध में सरकार द्वारा क्या कदम उठाए गए हैं?(उत्तर 200 शब्दों में दें)
जलवायु परिवर्तन भारतीय कृषि पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। अत्यधिक तापमान, असामान्य मौसमी पैटर्न, और अप्रत्याशित वर्षा की घटनाएँ फसलों की पैदावार को प्रभावित कर सकती हैं। उच्च तापमान से फसलों की वृद्धि में कमी हो सकती है और सूखा, फसल क्षति का मुख्य कारण बन सकता है। अत्यधिक वर्षा और बाढ़ से भी खेतों कीRead more
जलवायु परिवर्तन भारतीय कृषि पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। अत्यधिक तापमान, असामान्य मौसमी पैटर्न, और अप्रत्याशित वर्षा की घटनाएँ फसलों की पैदावार को प्रभावित कर सकती हैं। उच्च तापमान से फसलों की वृद्धि में कमी हो सकती है और सूखा, फसल क्षति का मुख्य कारण बन सकता है। अत्यधिक वर्षा और बाढ़ से भी खेतों की मिट्टी और फसलें प्रभावित हो सकती हैं।
सरकार ने इन प्रभावों से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं।
जलवायु कृषि: फसल विविधीकरण, पानी की बचत तकनीकें (जैसे ड्रिप इरिगेशन) और मिट्टी सुधार जैसी विधियाँ अपनाई जा रही हैं।
राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना: इसमें कृषि क्षेत्र के लिए विशेष योजनाएं शामिल हैं, जैसे कि जलवायु-टिकाऊ कृषि प्रौद्योगिकियों का विकास।
सिंचाई परियोजनाएँ: “प्रति वर्षा क्षेत्र” जैसी योजनाओं के तहत, सिंचाई की सुविधा बढ़ाई जा रही है।
कृषि बीमा योजनाएँ: फसलों की क्षति को लेकर वित्तीय सुरक्षा देने के लिए कृषि बीमा योजनाओं को लागू किया गया है।
इन पहलों से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और कृषि क्षेत्र को स्थिर बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
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