अर्ध-न्यायिक (न्यायिकवत्) निकाय से क्या तात्पर्य है? ठोस उदाहरणों की सहायता से स्पष्ट कीजिए । (200 words) [UPSC 2016]
सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI Act, 2005) के तहत नागरिकों को सरकारी जानकारी प्राप्त करने का अधिकार मिलता है, जो शासन में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करता है। हाल ही में किए गए संशोधनों में सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और वेतन निर्धारण का अधिकार केंद्र सरकार को सौंपा गया है। इन संशोधनों से सूचनाRead more
सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI Act, 2005) के तहत नागरिकों को सरकारी जानकारी प्राप्त करने का अधिकार मिलता है, जो शासन में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करता है। हाल ही में किए गए संशोधनों में सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और वेतन निर्धारण का अधिकार केंद्र सरकार को सौंपा गया है।
इन संशोधनों से सूचना आयोग की स्वायत्तता और स्वतंत्रता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। पहले, मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति, कार्यकाल और वेतन की शर्तें निर्धारित थीं, जिससे उनकी स्वतंत्रता सुनिश्चित होती थी। लेकिन अब केंद्र सरकार को इन मामलों में निर्णय लेने का अधिकार मिल गया है, जिससे आयोग पर सरकार के अप्रत्यक्ष दबाव की आशंका बढ़ जाती है।
यह संशोधन सूचना आयोग की निष्पक्षता और प्रभावशीलता को कमजोर कर सकता है, क्योंकि सरकार के प्रति उत्तरदायी होने के बजाय आयोग सरकार के दबाव में आ सकता है। इससे आरटीआई अधिनियम के मूल उद्देश्यों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
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अर्ध-न्यायिक (क्वासी-जुडिशियल) निकाय ऐसे संगठन या एजेंसियाँ होती हैं जिन्हें न्यायालय की तरह निर्णय लेने, विवाद सुलझाने, और नियमों का पालन सुनिश्चित करने की शक्तियाँ प्राप्त होती हैं, लेकिन ये पारंपरिक न्यायालय नहीं होतीं। ये निकाय विशेष क्षेत्रों में विशेषज्ञता के साथ कार्य करते हैं और उनके निर्णयRead more
अर्ध-न्यायिक (क्वासी-जुडिशियल) निकाय ऐसे संगठन या एजेंसियाँ होती हैं जिन्हें न्यायालय की तरह निर्णय लेने, विवाद सुलझाने, और नियमों का पालन सुनिश्चित करने की शक्तियाँ प्राप्त होती हैं, लेकिन ये पारंपरिक न्यायालय नहीं होतीं। ये निकाय विशेष क्षेत्रों में विशेषज्ञता के साथ कार्य करते हैं और उनके निर्णय कानूनी प्रभाव डालते हैं, जिनकी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।
विशेषताएँ:
निर्णय लेने की शक्ति: इन निकायों को विवादों का समाधान और नियमों का प्रवर्तन करने का अधिकार होता है।
प्रक्रियात्मक लचीलापन: इनके कामकाज की प्रक्रिया पारंपरिक अदालतों की तुलना में कम औपचारिक होती है, लेकिन निष्पक्षता बनाए रखती है।
न्यायिक कार्य: ये कानूनों की व्याख्या कर सकती हैं, विशेष मुद्दों पर निर्णय ले सकती हैं, और दंड या दंडादेश भी दे सकती हैं।
ठोस उदाहरण:
निर्वाचन आयोग: भारत में यह आयोग चुनावों का आयोजन और निगरानी करता है। चुनावी नियमों का उल्लंघन करने पर वह उम्मीदवारों को अयोग्य ठहरा सकता है और चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकता है।
सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI): SEBI भारतीय वित्तीय बाजारों का नियमन करता है। यह बाजार नियमों के उल्लंघन पर दंडित कर सकता है और निवेशक-सेवा प्रदाता विवादों का समाधान कर सकता है।
केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT): CAT केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों के सेवा मामलों से संबंधित विवादों का समाधान करता है, जैसे कि पदोन्नति, स्थानांतरण, और अनुशासनात्मक कार्रवाई।
उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग: ये निकाय उपभोक्ताओं और सेवा प्रदाताओं के बीच विवादों का समाधान करते हैं और उपभोक्ता संरक्षण कानूनों को लागू करते हैं।
निष्कर्ष:
See lessअर्ध-न्यायिक निकाय प्रशासनिक और न्यायिक कार्यों के बीच एक पुल का काम करते हैं, विशेष क्षेत्रों में विशेषज्ञता के साथ विवाद सुलझाने और नियमों का पालन सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।