क्या कारण है कि भारत में जनजातियों को ‘अनुसूचित जनजातियाँ’ कहा जाता है? भारत के संविधान में प्रतिष्ठापित उनके उत्थापन के लिए प्रमुख प्रावधानों को सूचित कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
जाति व्यवस्था और नई पहचानों का प्रभाव परिचय: जाति व्यवस्था भारत की सामाजिक संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो नई पहचानों और सहकारी रूपों के साथ विकसित हो रही है। यह व्यवस्था सामाजिक और सांस्कृतिक विविधताओं को दर्शाती है, लेकिन इसके उन्मूलन की संभावना पर विचार करते समय यह आवश्यक है कि इसे समग्र दृRead more
जाति व्यवस्था और नई पहचानों का प्रभाव
परिचय: जाति व्यवस्था भारत की सामाजिक संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो नई पहचानों और सहकारी रूपों के साथ विकसित हो रही है। यह व्यवस्था सामाजिक और सांस्कृतिक विविधताओं को दर्शाती है, लेकिन इसके उन्मूलन की संभावना पर विचार करते समय यह आवश्यक है कि इसे समग्र दृष्टिकोण से समझा जाए।
जाति व्यवस्था में नई पहचानों का समावेश:
- आधुनिक सामाजिक गतिशीलता:
- जाति व्यवस्था में नई पहचान और सहकारी स्वरूप जैसे कि “जाति आधारित जाति संघ” और “आत्म-सहायता समूह” ने जाति व्यवस्था को एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया है। उदाहरण के लिए, “स्वर्ण आयोग” और “शहरी अनुसूचित जाति” जैसे प्रयास जाति के पारंपरिक स्वरूप को चुनौती देते हैं और नए सामाजिक ढांचे को बढ़ावा देते हैं।
- आर्थिक और शैक्षिक परिवर्तन:
- आर्थिक प्रगति और शैक्षिक सुधार ने जाति आधारित भेदभाव को कम करने में योगदान दिया है। हाल ही में, “उच्च शिक्षा में अनुसूचित जाति और जनजाति छात्रों की संख्या में वृद्धि” ने जाति की परिभाषा को बदलने में मदद की है।
जाति व्यवस्था का उन्मूलन:
- संविधान और कानूनी सुधार:
- भारतीय संविधान और विभिन्न कानूनी सुधार जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में प्रयासरत हैं। हालांकि, जाति व्यवस्था के कुछ पहलू सामाजिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में गहराई से जुड़े हुए हैं।
- सामाजिक समरसता की दिशा:
- जाति व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त करने के बजाय, सामाजिक समरसता और समाज में समानता को बढ़ावा देना अधिक व्यावहारिक दृष्टिकोण हो सकता है। “आत्म-सहायता समूहों” और “कला और सांस्कृतिक आदान-प्रदान” के माध्यम से जाति आधारित भेदभाव को कम किया जा सकता है।
निष्कर्ष: जाति व्यवस्था नई पहचानों और सहकारी रूपों के साथ बदल रही है, लेकिन इसका पूर्ण उन्मूलन एक जटिल प्रक्रिया है। जाति व्यवस्था को समझने और प्रासंगिक सुधार लागू करने की दिशा में सतत प्रयास महत्वपूर्ण हैं। सामाजिक समरसता और समानता को बढ़ावा देने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है।
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भारत में जनजातियों को 'अनुसूचित जनजातियाँ' क्यों कहा जाता है? अनुसूचित जनजातियाँ की परिभाषा भारत में जनजातियों को 'अनुसूचित जनजातियाँ' कहा जाता है क्योंकि वे भारतीय संविधान की अनुसूचित जनजातियों की सूची में विशेष रूप से उल्लिखित हैं। इस सूची में शामिल करना यह दर्शाता है कि ये समुदाय सामाजिक और आर्थिRead more
भारत में जनजातियों को ‘अनुसूचित जनजातियाँ’ क्यों कहा जाता है?
अनुसूचित जनजातियाँ की परिभाषा
भारत में जनजातियों को ‘अनुसूचित जनजातियाँ’ कहा जाता है क्योंकि वे भारतीय संविधान की अनुसूचित जनजातियों की सूची में विशेष रूप से उल्लिखित हैं। इस सूची में शामिल करना यह दर्शाता है कि ये समुदाय सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए हैं और इनकी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान है। ‘अनुसूचित’ शब्द यह संकेत करता है कि ये समुदाय संविधान द्वारा निर्धारित विशेष प्रावधानों के तहत आते हैं।
संविधान में प्रमुख प्रावधान
हालिया उदाहरण
वन अधिकार अधिनियम (2006) ने जनजातीय समुदायों को वन भूमि और संसाधनों पर अधिकार प्रदान किया है, जिससे उनके पारंपरिक अधिकारों को मान्यता मिली और ऐतिहासिक अन्याय को ठीक किया गया।
ये संवैधानिक प्रावधान और कानून सुनिश्चित करते हैं कि अनुसूचित जनजातियाँ उचित प्रतिनिधित्व, सुरक्षा और विकास के अवसर प्राप्त कर सकें, जिससे उनका समग्र उत्थान संभव हो सके।
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