“गाँवों में सहकारी समिति को छोड़कर, ऋण संगठन का कोई भी अन्य ढाँचा उपयुक्त नहीं होगा।”- अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण। भारत में कृषि वित्त की पृष्ठभूमि में, इस कथन पर चर्चा कीजिए। कृषि वित्त प्रदान करने वाली वित्तीय संस्थाओं ...
प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डी.बी.टी.) द्वारा कीमत सहायिकी का प्रतिस्थापन: भारत में सहायिकियों के परिदृश्य में परिवर्तन परिचय भारत में कीमत सहायिकी के प्रतिस्थापन के रूप में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डी.बी.टी.) की पहल, सब्सिडी वितरण तंत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव दर्शाती है। इसका उद्देश्य दक्षता बढ़ाना, लीकेज कोRead more
प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डी.बी.टी.) द्वारा कीमत सहायिकी का प्रतिस्थापन: भारत में सहायिकियों के परिदृश्य में परिवर्तन
परिचय
भारत में कीमत सहायिकी के प्रतिस्थापन के रूप में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डी.बी.टी.) की पहल, सब्सिडी वितरण तंत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव दर्शाती है। इसका उद्देश्य दक्षता बढ़ाना, लीकेज को कम करना और लक्षित लाभार्थियों को बेहतर सेवाएं प्रदान करना है।
लक्ष्यीकरण और दक्षता में सुधार
1. लीकेज में कमी: डी.बी.टी. लाभों को सीधा लाभार्थियों के बैंक खातों में स्थानांतरित करता है, जिससे मध्यस्थों द्वारा होने वाली गड़बड़ी और लीकेज कम होती है। उदाहरण के लिए, एलपीजी सब्सिडी योजना में डी.बी.टी. ने भ्रष्टाचार को काफी हद तक कम किया है और सब्सिडी सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचाई है।
2. पारदर्शिता में वृद्धि: डी.बी.टी. प्रणाली की लेन-देन इलेक्ट्रॉनिक रूप से रिकॉर्ड होती है, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार होता है। प्रधानमंत्री जन धन योजना (पी.एम.जेडी.वाई.) ने डी.बी.टी. को एकीकृत कर सब्सिडी वितरण और वित्तीय समावेशन को सरल बनाया है।
व्यय की बचत और राजकोषीय प्रभाव
3. प्रशासनिक लागत में कमी: डी.बी.टी. मध्यस्थों को हटाकर और सीधे लाभार्थियों को संसाधन पहुंचाकर प्रशासनिक लागत को कम करता है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एन.एस.ए.पी.) के तहत डी.बी.टी. के माध्यम से लाभार्थियों को लाभ पहुंचाने में प्रशासनिक लागत कम हुई है।
4. राजकोषीय जिम्मेदारी: सब्सिडी का बेहतर लक्ष्यीकरण डी.बी.टी. के माध्यम से सरकारी खर्च को नियंत्रित करने में मदद करता है। जैसे कि उर्वरक सब्सिडी के स्थान पर डी.बी.टी. ने सब्सिडी खर्च को बेहतर तरीके से प्रबंधित किया है।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, भारत में कीमत सहायिकी के स्थान पर डी.बी.टी. की ओर बदलाव से दक्षता, पारदर्शिता, और राजकोषीय जिम्मेदारी में सुधार होने की उम्मीद है। हाल के उदाहरण बताते हैं कि डी.बी.टी. पारंपरिक सब्सिडी तंत्र से जुड़ी समस्याओं का प्रभावी समाधान प्रदान कर सकता है।
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गाँवों में सहकारी समितियों की उपयुक्तता और कृषि वित्त में बाधाएँ: 1. सहकारी समितियों की उपयुक्तता: सहकारी समितियाँ और ग्रामीण वित्त: अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण ने यह बताया कि सहकारी समितियाँ गाँवों में ऋण संगठनों के रूप में सबसे उपयुक्त हैं। इनका स्थानीय प्रबंधन और समुदाय पर आधारित ढाँचा ग्रामRead more
गाँवों में सहकारी समितियों की उपयुक्तता और कृषि वित्त में बाधाएँ:
1. सहकारी समितियों की उपयुक्तता:
2. कृषि वित्त में बाधाएँ:
3. प्रौद्योगिकी का उपयोग:
निष्कर्ष: सहकारी समितियाँ गाँवों में ऋण संगठनों के रूप में अत्यंत उपयुक्त हैं क्योंकि वे स्थानीय जरूरतों और प्रबंधन को बेहतर ढंग से समझती हैं। कृषि वित्त की प्रभावशीलता को सुधारने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग महत्वपूर्ण है, जिसमें डिजिटल बैंकिंग, फिनटेक समाधान, और स्मार्ट एग्रीकल्चर तकनीकों के माध्यम से बेहतर पहुँच और सेवा सुनिश्चित की जा सकती है।
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