आज के शिक्षित भारतीयों में विद्यमान ऐसे अवांछनीय मूल्यों की विवेचना कीजिए ।
प्रौद्योगिकी आधुनिक समाज की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, लेकिन इसके प्रभाव को समालोचनात्मक रूप से समझना आवश्यक है। सकारात्मक दृष्टिकोण: प्रौद्योगिकी सामाजिक संपर्क और शिक्षा को सुलभ बनाकर मूल्यों को प्रसारित कर सकती है। उदाहरण के लिए, डिजिटल प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया विभिन्न सामाजिक मRead more
प्रौद्योगिकी आधुनिक समाज की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, लेकिन इसके प्रभाव को समालोचनात्मक रूप से समझना आवश्यक है।
सकारात्मक दृष्टिकोण:
प्रौद्योगिकी सामाजिक संपर्क और शिक्षा को सुलभ बनाकर मूल्यों को प्रसारित कर सकती है। उदाहरण के लिए, डिजिटल प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने में सहायक होते हैं। ये प्लेटफॉर्म वैश्विक स्तर पर विचारों और विचारधाराओं का आदान-प्रदान संभव बनाते हैं, जिससे समानता और मानवाधिकार जैसे मूल्यों को बढ़ावा मिलता है।
नकारात्मक दृष्टिकोण:
हालांकि, प्रौद्योगिकी का अत्यधिक उपयोग समाज में वैमनस्य और असमानता को भी जन्म दे सकता है। डिजिटल विभाजन और सोशल मीडिया के माध्यम से फैलने वाली गलत सूचनाएं समाज में ध्रुवीकरण और विभाजन को बढ़ावा दे सकती हैं। इसके अलावा, प्रौद्योगिकी की अत्यधिक निर्भरता से पारंपरिक मानवीय संबंध और सामाजिक मूल्य प्रभावित हो सकते हैं।
इस प्रकार, प्रौद्योगिकी का मूल्य-केंद्रित समाज निर्माण में योगदान सकारात्मक हो सकता है, लेकिन इसके संभावित दुष्प्रभावों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है।
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आज के शिक्षित भारतीयों में विद्यमान अवांछनीय मूल्य शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति के बावजूद, आज के शिक्षित भारतीय समाज में कुछ अवांछनीय मूल्य और विचारधाराएँ बनी हुई हैं। इन मूल्यों का समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और ये आधुनिक समाज की समता और समानता की अवधारणाओं के खिलाफ होते हैं। निम्नलिखित बिंदुRead more
आज के शिक्षित भारतीयों में विद्यमान अवांछनीय मूल्य
शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति के बावजूद, आज के शिक्षित भारतीय समाज में कुछ अवांछनीय मूल्य और विचारधाराएँ बनी हुई हैं। इन मूल्यों का समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और ये आधुनिक समाज की समता और समानता की अवधारणाओं के खिलाफ होते हैं। निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से इन अवांछनीय मूल्यों की विवेचना की जा रही है:
1. लिंग भेदभाव और पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण
प्रोफेशनल सेटिंग्स में लिंग भेदभाव: शिक्षा के बावजूद, कई शिक्षित भारतीय पेशेवर माहौल में लिंग भेदभाव का सामना करते हैं। हाल ही में, महिलाओं को समान अनुभव और योग्यता होने के बावजूद पदोन्नति और वेतन में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, कुछ कंपनियों में महिलाओं के नेतृत्व वाले पदों पर चयन की संख्या में कमी देखी गई है।
परिवारिक संदर्भ में पारंपरिक भूमिकाएँ: शिक्षित परिवारों में भी महिलाओं को पारंपरिक भूमिकाओं की अपेक्षाएँ की जाती हैं, जैसे घर की जिम्मेदारियाँ निभाना। यह धारणा कई बार महिलाओं के करियर विकास में बाधा बनती है, जैसे हाल ही के मीडिया रिपोर्ट्स में इस तरह की घटनाओं का उल्लेख किया गया है।
2. जाति आधारित भेदभाव
सामाजिक संपर्कों में सूक्ष्म जातिवाद: जाति आधारित भेदभाव आज भी शिक्षित व्यक्तियों के बीच विद्यमान है, हालांकि यह खुलकर नहीं प्रकट होता। हाल ही में किए गए अध्ययनों में यह पाया गया है कि नौकरी के दौरान जाति आधारित नाम वाले उम्मीदवारों को भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
शादी के लिए जाति आधारित प्राथमिकताएँ: शिक्षित परिवारों में भी जाति आधारित विवाह की प्राथमिकताएँ कायम हैं। यह देखा गया है कि शादी के लिए जाति को एक महत्वपूर्ण मानदंड माना जाता है, जो सामाजिक और पारिवारिक विज्ञापन में स्पष्ट रूप से प्रकट होता है।
3. अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति पूर्वाग्रह
धार्मिक असहिष्णुता: शिक्षित व्यक्तियों में धार्मिक असहिष्णुता अब भी एक समस्या है। नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) के विवादों ने यह दर्शाया है कि शिक्षित वर्ग में भी अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति पूर्वाग्रह विद्यमान हैं।
एलजीबीटीक्यू+ व्यक्तियों के प्रति भेदभाव: शिक्षित वर्ग में भी एलजीबीटीक्यू+ व्यक्तियों के प्रति रूढ़िवादी दृष्टिकोण जारी है। हाल ही में, समाज और कानूनी चुनौतियों का सामना करने वाले एलजीबीटीक्यू+ व्यक्तियों की समस्याओं ने इस पूर्वाग्रह को उजागर किया है।
4. भौतिकवाद और उपभोक्तावाद
धन और स्थिति पर जोर: शिक्षित भारतीयों में भौतिक सफलता और स्थिति के प्रतीक पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित किया जाता है। यह भौतिकवाद सामाजिक स्तर पर भेदभाव और असमानता को बढ़ावा देता है। सोशल मीडिया पर लग्जरी जीवनशैली को दिखाना इस प्रवृत्ति को और मजबूत करता है।
उपभोक्तावाद और पर्यावरणीय प्रभाव: शिक्षित वर्ग में बढ़ते उपभोक्तावाद के कारण पर्यावरणीय समस्याएँ बढ़ रही हैं। हालांकि सततता के मुद्दों के प्रति जागरूकता है, फिर भी विलासिता की वस्तुओं और अत्यधिक उपभोग की प्रवृत्ति जारी है, जो पर्यावरणीय जिम्मेदारी के साथ असंगत है।
निष्कर्ष
शिक्षा के बावजूद, भारतीय समाज में कई अवांछनीय मूल्य कायम हैं, जैसे लिंग भेदभाव, जातिवाद, धार्मिक असहिष्णुता और भौतिकवाद। इन समस्याओं का समाधान केवल शिक्षा के माध्यम से नहीं बल्कि सामाजिक सुधार, जागरूकता और सक्रिय प्रयासों से संभव है। इन मुद्दों पर विचार करना और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में काम करना महत्वपूर्ण है।
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