क्या आप सहमत हैं कि भारत में क्षेत्रीयता बढ़ती हुई सांस्कृतिक मुखरता का परिणाम प्रतीत होती है ? तर्क कीजिए । (150 words)[UPSC 2020]
प्रादेशिकता (regionalism) का आधार विभिन्न कारकों से जुड़ा होता है, जिनमें सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, और राजनीतिक भिन्नताएँ शामिल हैं। यह उस भावना या विचारधारा को दर्शाता है, जिसमें किसी विशिष्ट क्षेत्र के लोग अपने क्षेत्र की पहचान, स्वायत्तता, और विकास के लिए संघर्ष करते हैं। प्रादेशिकता का उभरनाRead more
प्रादेशिकता (regionalism) का आधार विभिन्न कारकों से जुड़ा होता है, जिनमें सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, और राजनीतिक भिन्नताएँ शामिल हैं। यह उस भावना या विचारधारा को दर्शाता है, जिसमें किसी विशिष्ट क्षेत्र के लोग अपने क्षेत्र की पहचान, स्वायत्तता, और विकास के लिए संघर्ष करते हैं। प्रादेशिकता का उभरना अक्सर तब होता है जब किसी क्षेत्र के लोग यह महसूस करते हैं कि उनके क्षेत्र को राष्ट्रीय विकास प्रक्रिया में उचित प्रतिनिधित्व या लाभ नहीं मिला है।
प्रादेशिक स्तर पर विकास के लाभों के असमान वितरण ने प्रादेशिकता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जब किसी क्षेत्र के लोग देखते हैं कि उनके क्षेत्र का विकास अन्य क्षेत्रों की तुलना में कम हुआ है, तो असंतोष उत्पन्न होता है। यह असमानता आर्थिक अवसरों, बुनियादी ढांचे, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, और संसाधनों के वितरण में हो सकती है। उदाहरण के लिए, भारत में पूर्वोत्तर राज्यों, विदर्भ, तेलंगाना, और झारखंड जैसे क्षेत्रों में प्रादेशिकता के आंदोलन इस असमान विकास का परिणाम रहे हैं।
ऐसे क्षेत्र जिनके पास प्राकृतिक संसाधन अधिक होते हैं, लेकिन वे केंद्र या अन्य क्षेत्रों से अपेक्षित लाभ नहीं प्राप्त करते, वे अक्सर प्रादेशिकता की ओर उन्मुख होते हैं। यह भावना तब और मजबूत होती है जब क्षेत्रीय भाषाओं, सांस्कृतिक पहचान, और परंपराओं को भी खतरा महसूस होता है।
इस प्रकार, प्रादेशिकता का आधार मुख्यतः आर्थिक असमानता, सांस्कृतिक पहचान, और राजनीतिक उपेक्षा में निहित होता है, और यह तब और प्रबल होती है जब क्षेत्रीय विकास के लाभ असमान रूप से वितरित होते हैं।
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भारत में क्षेत्रीयता और सांस्कृतिक मुखरता: एक विश्लेषण सहमत होने के तर्क: सांस्कृतिक विविधता का सम्मान: भारत में क्षेत्रीयता के बढ़ते प्रभाव ने विभिन्न सांस्कृतिक पहचान और परंपराओं को प्रोत्साहित किया है। उदाहरण के लिए, तेलुगू फिल्म उद्योग और मराठी थिएटर ने अपनी सांस्कृतिक पहचान को बल दिया है और स्थRead more
भारत में क्षेत्रीयता और सांस्कृतिक मुखरता: एक विश्लेषण
सहमत होने के तर्क:
निष्कर्ष:
भारतीय समाज में क्षेत्रीयता की बढ़ती हुई सांस्कृतिक मुखरता का परिणाम है कि क्षेत्रीय पहचान, परंपराएँ और स्थानीय मुद्दे अब अधिक प्रमुखता से सामने आ रहे हैं। यह प्रक्रिया सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक साक्षात्कार को प्रोत्साहित करती है, लेकिन साथ ही इसमें सामाजिक एकता और राष्ट्रीय एकता को भी चुनौती मिलती है।
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