“दोनों विश्व युद्धों के बीच लोकतंत्रीय राज्य प्रणाली के लिए एक गंभीर चुनौती उत्पन्न हुई।” इस कथन का मूल्यांकन कीजिए। (250 words) [UPSC 2021]
प्रथम विश्व युद्ध के उपरांत नरसंघ (League of Nations) का गठन 1920 में किया गया था, जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय शांति बनाए रखना और संघर्षों को सुलझाना था। इसके कार्यों और प्रभावों का समालोचनात्मक मूल्यांकन इस प्रकार किया जा सकता है: सफलताएँ: सहयोग और वार्ता: राष्ट्र संघ ने विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय विRead more
प्रथम विश्व युद्ध के उपरांत नरसंघ (League of Nations) का गठन 1920 में किया गया था, जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय शांति बनाए रखना और संघर्षों को सुलझाना था। इसके कार्यों और प्रभावों का समालोचनात्मक मूल्यांकन इस प्रकार किया जा सकता है:
- सफलताएँ:
- सहयोग और वार्ता: राष्ट्र संघ ने विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय विवादों के समाधान के लिए संवाद और बातचीत का मंच प्रदान किया। जैसे, अल्बानिया और ग्रीस के बीच सीमा विवाद का समाधान।
- मानवता के प्रयास: इसने शरणार्थियों, युद्ध के पीड़ितों, और स्वास्थ्य सेवाओं के सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- विफलताएँ:
- सदस्यता और प्रभाव: प्रमुख विश्व शक्तियों, जैसे कि अमेरिका, ने संघ की सदस्यता नहीं ली या जल्दी बाहर हो गए, जिससे संघ की प्रभावशीलता कम हुई।
- अधिकार की कमी: राष्ट्र संघ के पास युद्धों को रोकने और अपने निर्णयों को लागू करने के लिए पर्याप्त अधिकार और संसाधन नहीं थे। इसका उदाहरण मंझील और इटली के आक्रमण से देखा जा सकता है।
- द्वितीय विश्व युद्ध: राष्ट्र संघ संघर्षों की रोकथाम में विफल रहा, और द्वितीय विश्व युद्ध के प्रकोप को रोकने में असमर्थ रहा, जिससे इसकी अक्षमता की पुष्टि हुई।
संक्षेप में, राष्ट्र संघ ने कुछ सकारात्मक कदम उठाए, लेकिन इसके संरचनात्मक और कार्यान्वयन में कमियों के कारण यह अंतर्राष्ट्रीय शांति बनाए रखने में पूरी तरह सफल नहीं हो सका। इसके अनुभवों से सीख लेकर बाद में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की गई, जो अधिक प्रभावी और संरचनात्मक रूप से सशक्त संगठन साबित हुआ।
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दोनों विश्व युद्धों के बीच लोकतंत्रीय राज्य प्रणाली के लिए एक गंभीर चुनौती आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता: महामंदी (Great Depression): 1929 में शुरू हुई महामंदी ने वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को गहरा झटका दिया, जिससे लोकतांत्रिक देशों की आर्थिक स्थिति कमजोर हुई। अमेरिका और यूरोप में बेरोजगारी और सामाजिRead more
दोनों विश्व युद्धों के बीच लोकतंत्रीय राज्य प्रणाली के लिए एक गंभीर चुनौती
आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता:
तानाशाही और फासीवाद का उदय:
लोकतंत्र के प्रति अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ:
निष्कर्ष:
दोनों विश्व युद्धों के बीच, लोकतंत्र की प्रणाली ने कई गंभीर चुनौतियाँ झेलीं, जैसे कि आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता, और तानाशाही का उदय। इन चुनौतियों के बावजूद, युद्ध के बाद के वर्षों में लोकतांत्रिक देशों ने लोकतंत्र को पुनर्निर्मित और मजबूत करने के लिए वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर कदम उठाए। इन प्रयासों ने लोकतांत्रिक प्रणाली को स्थिर और व्यापक रूप से स्वीकार्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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