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सूफ़ी और मध्यकालीन रहस्यवादी सिद्ध पुरुष (संत) हिन्दू / मुसलमान समाजों के धार्मिक विचारों और रीतियों को या उनकी बाह्य संरचना को पर्याप्त सीमा तक रूपांतरित करने में विफल रहे। टिप्पणी कीजिए । (150 words) [UPSC 2014]
सूफ़ी और मध्यकालीन रहस्यवादी संतों का धार्मिक और सामाजिक प्रभाव **1. धार्मिक विचारों और रीतियों पर प्रभाव सूफ़ी संत और मध्यकालीन रहस्यवादी सिद्ध पुरुष, जैसे कबीर और चैतन्य महाप्रभु, ने धार्मिक एकता और व्यक्तिगत ईश्वर भक्ति पर बल दिया। उन्होंने पारंपरिक धार्मिक रीतियों और कर्मकांड की आलोचना की और भगवRead more
सूफ़ी और मध्यकालीन रहस्यवादी संतों का धार्मिक और सामाजिक प्रभाव
**1. धार्मिक विचारों और रीतियों पर प्रभाव
सूफ़ी संत और मध्यकालीन रहस्यवादी सिद्ध पुरुष, जैसे कबीर और चैतन्य महाप्रभु, ने धार्मिक एकता और व्यक्तिगत ईश्वर भक्ति पर बल दिया। उन्होंने पारंपरिक धार्मिक रीतियों और कर्मकांड की आलोचना की और भगवान के प्रति व्यक्तिगत भक्ति की अवधारणा को बढ़ावा दिया। हालांकि, उनके प्रयासों के बावजूद, हिंदू और मुस्लिम धार्मिक विचारों और रीतियों में कोई मौलिक परिवर्तन नहीं आया। उदाहरण के लिए, कबीर के धार्मिक दृष्टिकोण ने व्यापक अनुयायियों को प्रेरित किया लेकिन परंपरागत हिंदू और मुस्लिम प्रथाएँ जैसी की तैसी बनी रहीं।
**2. सामाजिक संरचना पर प्रभाव
सूफ़ी और रहस्यवादी संतों ने समाज में समानता और एकता की अवधारणा को बढ़ावा दिया, लेकिन वे पारंपरिक जाति व्यवस्था और सामाजिक पदानुक्रम को चुनौती देने में असफल रहे। उदाहरण के लिए, सूफ़ी आदेश और संत अक्सर मौजूदा सामाजिक संरचनाओं के भीतर काम करते रहे, बिना उन्हें मौलिक रूप से बदलने का प्रयास किए।
**3. हालिया ऐतिहासिक मूल्यांकन
हालिया अनुसंधान और ऐतिहासिक अध्ययन बताते हैं कि सूफ़ियों और रहस्यवादी संतों ने व्यक्तिगत आत्मा और सांप्रदायिक संवाद को प्रोत्साहित किया, लेकिन उनके द्वारा किए गए प्रयासों के बावजूद धार्मिक प्रथाओं और सामाजिक संरचनाओं में कोई गहरा परिवर्तन नहीं आया। भक्ति आंदोलन ने भक्ति और साधना को बढ़ावा दिया, लेकिन जाति व्यवस्था जैसी पारंपरिक सामाजिक संरचनाओं में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं आया।
**4. संस्कृतिक प्रभाव
इन संतों द्वारा निर्मित रहस्यवादी और भक्ति साहित्य ने मध्यकालीन भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता को समृद्ध किया, लेकिन इस सांस्कृतिक समृद्धि ने समाज की संरचनात्मक परंपराओं को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित नहीं किया।
संक्षेप में, सूफ़ी और मध्यकालीन रहस्यवादी संतों ने धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोणों को समृद्ध किया, लेकिन वे सामाजिक और धार्मिक संरचनाओं में किसी महत्वपूर्ण परिवर्तन को लागू करने में असफल रहे।
See lessआदि शंकराचार्य ने अपनी महान क्षमता से हिंदू धर्म को पुनः स्थापित किया और उत्कृष्ट स्पष्टीकरण प्रस्तुत करते हुए वैदिक परंपरा को फिर से प्रतिष्ठित किया। चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
आदि शंकराचार्य (788-820 ई.) ने हिंदू धर्म को पुनः स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अद्वैत वेदांत के सिद्धांत को स्पष्ट किया, जो तात्त्विक एकता और मोक्ष की दिशा में मार्गदर्शन करता है। उनके विचारों ने हिंदू धर्म की विविधता को एकसूत्र में पिरोते हुए वैदिक परंपरा को फिर से प्रतिष्ठितRead more
आदि शंकराचार्य (788-820 ई.) ने हिंदू धर्म को पुनः स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अद्वैत वेदांत के सिद्धांत को स्पष्ट किया, जो तात्त्विक एकता और मोक्ष की दिशा में मार्गदर्शन करता है। उनके विचारों ने हिंदू धर्म की विविधता को एकसूत्र में पिरोते हुए वैदिक परंपरा को फिर से प्रतिष्ठित किया।
शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की—श्रीशैला, द्वारका, जगन्नाथपुरी, और बदरीनाथ—जो वेदांत के विभिन्न पहलुओं को प्रसारित करने में सहायक सिद्ध हुए। उन्होंने भारतीय समाज में धार्मिक और दार्शनिक अनुशासन को पुनर्जीवित किया, और विभिन्न दार्शनिक तर्कों के माध्यम से अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को प्रमाणित किया।
उनकी कार्यशैली और लेखन—जैसे कि ब्रह्मसूत्र भाष्यम, उपनिषद भाष्यम, और भगवद गीता भाष्यम—ने वैदिक ज्ञान को संजोने और समझाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस प्रकार, शंकराचार्य ने हिंदू धर्म को एक नई दिशा और स्थायित्व
See lessभारतीय दर्शन के संप्रदायों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
भारतीय दर्शन का विवरण देने के लिए, प्रमुख धार्मिक संप्रदायों को उल्लेख किया जा सकता है। हिंदू धर्म: हिंदू धर्म भारत का प्रमुख धर्म है जिसमें विश्वास किया जाता है कि ईश्वर अनन्त है और सभी जीवों में वही परमात्मा विद्यमान है। इस्लाम: भारतीय मुस्लिम समुदाय इस्लाम के अनुयायी हैं जो एक मानने वाले हैं कि अRead more
भारतीय दर्शन का विवरण देने के लिए, प्रमुख धार्मिक संप्रदायों को उल्लेख किया जा सकता है।
छठी शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास भारत में बौद्ध धर्म और जैन धर्म के उद्भव और प्रसार के लिए उत्तरदायी कारकों को सूचीबद्ध कीजिए।(उत्तर 200 शब्दों में दें)
छठी शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास भारत में बौद्ध धर्म और जैन धर्म के उद्भव और प्रसार के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी थे: सामाजिक असंतोष: उस समय की जाति व्यवस्था और ब्राह्मणों की प्रधानता से उत्पन्न सामाजिक असंतोष ने नए धार्मिक और दार्शनिक आंदोलनों को प्रेरित किया। बौद्ध और जैन धर्म ने जाति व्यवस्था औRead more
छठी शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास भारत में बौद्ध धर्म और जैन धर्म के उद्भव और प्रसार के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी थे:
इन कारकों ने बौद्ध और जैन धर्म को महत्वपूर्ण धार्मिक आंदोलनों के रूप में स्थापित किया और भारतीय धार्मिक और दार्शनिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव डाला।
See lessभारतीय दर्शन एवं परम्परा ने भारतीय स्मारकों की कल्पना और आकार देने एवं उनकी कला में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विवेचना कीजिए। (250 words) [UPSC 2020]
भारतीय दर्शन और परंपरा का भारतीय स्मारकों पर प्रभाव दर्शन और परंपरा का प्रभाव: धार्मिक और आध्यात्मिक प्रेरणा: भारतीय दर्शन और परंपरा ने भारतीय स्मारकों की कल्पना और आकार को गहराई से प्रभावित किया। हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, और इस्लाम की धार्मिक और आध्यात्मिक धारणाएँ स्मारकों के निर्माण में महRead more
भारतीय दर्शन और परंपरा का भारतीय स्मारकों पर प्रभाव
दर्शन और परंपरा का प्रभाव:
हाल के उदाहरण:
निष्कर्ष:
भारतीय दर्शन और परंपरा ने भारतीय स्मारकों की कल्पना, आकार, और कला में गहराई से प्रभाव डाला है। धार्मिक विचार, वास्तुकला के सिद्धांत, और कला की सजावट ने भारतीय स्मारकों को न केवल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व प्रदान किया है, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की भी अमूल्य पहचान दी है। ये स्मारक भारतीय दर्शन की अमीर परंपराओं और कला के उन्नत रूप को दर्शाते हैं।
See lessभारत में बौद्ध धर्म के इतिहास में पाल काल अति महत्त्वपूर्ण चरण है। विश्लेषण कीजिए । (150 words)[UPSC 2020]
भारत में बौद्ध धर्म के इतिहास में पाल काल का महत्व पाल काल का कालखंड और महत्व: पाल काल, जो लगभग 8वीं से 12वीं सदी तक फैला हुआ था, बौद्ध धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण चरण है। यह काल पाल साम्राज्य (750-1174 ईस्वी) के शासनकाल के दौरान बौद्ध धर्म के विकास और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। धाRead more
भारत में बौद्ध धर्म के इतिहास में पाल काल का महत्व
पाल काल का कालखंड और महत्व: पाल काल, जो लगभग 8वीं से 12वीं सदी तक फैला हुआ था, बौद्ध धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण चरण है। यह काल पाल साम्राज्य (750-1174 ईस्वी) के शासनकाल के दौरान बौद्ध धर्म के विकास और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक योगदान:
समकालीन उदाहरण:
निष्कर्ष:
पाल काल ने बौद्ध धर्म के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस काल में बौद्ध धर्म का शैक्षिक, सांस्कृतिक, और धार्मिक उन्नति देखने को मिली, जिसने बौद्ध धर्म के वैश्विक प्रभाव को मजबूत किया।
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