क्या प्रादेशिक संसाधन-आधारित विनिर्माण की रणनीति भारत में रोज़गार की प्रोन्नति करने में सहायक हो सकती है ? (250 words) [UPSC 2019]
भारत में संधारणीय पर्यटन (Sustainable Tourism) की वृद्धि के बावजूद, विभिन्न क्षेत्रों में इसे अपनाने में कई बाधाएँ सामने आती हैं। इन बाधाओं का क्षेत्र-विशिष्ट विवरण निम्नलिखित है: 1. हिमालयी क्षेत्र: अत्यधिक पर्यटकों की भीड़: ऊँचाई पर स्थित पर्यटन स्थल जैसे मनाली, शिमला, और दार्जिलिंग में अत्यधिक परRead more
भारत में संधारणीय पर्यटन (Sustainable Tourism) की वृद्धि के बावजूद, विभिन्न क्षेत्रों में इसे अपनाने में कई बाधाएँ सामने आती हैं। इन बाधाओं का क्षेत्र-विशिष्ट विवरण निम्नलिखित है:
1. हिमालयी क्षेत्र:
- अत्यधिक पर्यटकों की भीड़: ऊँचाई पर स्थित पर्यटन स्थल जैसे मनाली, शिमला, और दार्जिलिंग में अत्यधिक पर्यटकों की भीड़ से पर्यावरणीय दबाव बढ़ता है, जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान होता है।
- अवसंरचना की कमी: इन क्षेत्रों में ठोस कचरा प्रबंधन, जल और ऊर्जा संसाधनों की कमी है, जिससे संधारणीय प्रथाओं को लागू करना कठिन हो जाता है।
2. तटीय क्षेत्र:
- तटीय क्षति: गोवा और केरला जैसे तटीय क्षेत्रों में समुद्री किनारे के विकास, प्लास्टिक प्रदूषण और समुद्री जीवन के शिकार से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो रहा है।
- भूमि उपयोग परिवर्तन: तटीय इलाकों में होटल और रिसॉर्ट्स के निर्माण से भूमि उपयोग में परिवर्तन होता है, जिससे स्थानीय पर्यावरण और बायोडायवर्सिटी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
3. रेगिस्तानी क्षेत्र:
- जल संसाधन की कमी: राजस्थान जैसे रेगिस्तानी क्षेत्रों में जल की कमी और जलवायु परिवर्तन के कारण पर्यावरणीय प्रबंधन मुश्किल होता है।
- स्थानीय समुदायों का तनाव: पर्यटकों के आगमन से स्थानीय संसाधनों पर दबाव बढ़ता है, जिससे स्थानीय समुदायों और उनके पारंपरिक जीवनशैली पर तनाव उत्पन्न होता है।
4. जंगल और वन क्षेत्र:
- वन्य जीवों की सुरक्षा: उत्तराखंड और मध्य प्रदेश जैसे वन क्षेत्रों में पर्यटकों के आगमन से वन्य जीवों और उनके आवासों को खतरा होता है।
- अवैध गतिविधियाँ: जंगली इलाकों में अवैध शिकार और वन कटाई की समस्याएँ हैं, जो संधारणीय पर्यटन के प्रयासों को बाधित करती हैं।
5. ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल:
- संग्रहालय और धरोहर संरक्षण: आगरा और दिल्ली जैसे ऐतिहासिक स्थलों पर पर्यटकों की बढ़ती संख्या से धरोहर संरक्षण और रखरखाव की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
- संस्कृति का विकृत होना: अत्यधिक पर्यटन से स्थानीय सांस्कृतिक परंपराओं का विकृत होना और वाणिज्यिकरण की समस्याएँ बढ़ जाती हैं।
इन बाधाओं को दूर करने के लिए, सभी स्तरों पर एकीकृत प्रयास, नीति निर्माण, और स्थानीय समुदायों के साथ सहयोग की आवश्यकता है, ताकि पर्यटन को पर्यावरणीय और सामाजिक दृष्टिकोण से टिकाऊ बनाया जा सके।
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प्रादेशिक संसाधन-आधारित विनिर्माण की रणनीति और रोज़गार की प्रोन्नति 1. स्थानीय संसाधनों के माध्यम से रोज़गार सृजन: प्रादेशिक संसाधन-आधारित विनिर्माण की रणनीति का उद्देश्य स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर उद्योगों की स्थापना करना है, जिससे ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर बढ़ सकते हैं। उदाRead more
प्रादेशिक संसाधन-आधारित विनिर्माण की रणनीति और रोज़गार की प्रोन्नति
1. स्थानीय संसाधनों के माध्यम से रोज़गार सृजन:
प्रादेशिक संसाधन-आधारित विनिर्माण की रणनीति का उद्देश्य स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर उद्योगों की स्थापना करना है, जिससे ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर बढ़ सकते हैं। उदाहरणस्वरूप, गुजरात का वस्त्र उद्योग, जो स्थानीय कपास पर आधारित है, ने कृषि और विनिर्माण दोनों क्षेत्रों में व्यापक रोज़गार उत्पन्न किया है।
2. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को बढ़ावा:
यह रणनीति सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को प्रोत्साहित कर सकती है, जो भारत में रोज़गार का एक प्रमुख स्रोत हैं। भारत के छत्तीसगढ़ में बांस आधारित उद्योग का उदाहरण लिया जा सकता है, जिसने स्थानीय कारीगरों और छोटे उद्यमों को सशक्त किया है, जिससे रोज़गार के अवसर बढ़े हैं।
3. समावेशी आर्थिक विकास:
स्थानीय संसाधनों पर आधारित उद्योगों से समावेशी विकास को बढ़ावा मिलेगा, जिससे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच आर्थिक असमानता कम होगी। उदाहरण के लिए, ओडिशा का इस्पात और एल्यूमीनियम उद्योग, जो स्थानीय खनिज संसाधनों पर आधारित है, ने न केवल रोज़गार सृजन किया है बल्कि क्षेत्रीय विकास में भी योगदान दिया है।
4. पर्यावरणीय स्थिरता और लागत में कमी:
स्थानीय संसाधनों पर आधारित विनिर्माण पर्यावरणीय स्थिरता को भी बढ़ावा देता है क्योंकि इससे परिवहन लागत और ऊर्जा खपत में कमी आती है। उदाहरण के तौर पर, केरल का नारियल उद्योग स्थानीय नारियल की भूसी का उपयोग करता है, जिससे कार्बन उत्सर्जन कम होता है और स्थानीय लोगों को रोज़गार मिलता है।
5. चुनौतियाँ और समाधान:
इस रणनीति में संभावनाएँ हैं, परंतु कौशल विकास और अवसंरचना की चुनौतियाँ सामने हैं। कौशल विकास योजनाएँ जैसे प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) स्थानीय श्रमिकों को औद्योगिक आवश्यकताओं के अनुसार प्रशिक्षित करने में मदद कर सकती हैं।
निष्कर्ष:
See lessप्रादेशिक संसाधन-आधारित विनिर्माण की रणनीति भारत में रोज़गार सृजन के लिए एक प्रभावी तरीका हो सकता है, विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में। गुजरात और ओडिशा जैसे राज्यों में इस रणनीति की सफलता यह दर्शाती है कि स्थानीय संसाधनों और औद्योगिक विकास के संयोजन से आर्थिक विकास और रोज़गार में वृद्धि संभव है।