भारत में विविधता के किन्हीं चार सांस्कृतिक तत्वों का वर्णन कीजिये और एक राष्ट्रीय पहचान के निर्माण में उनके आपेक्षिक महत्व का मूल्य निर्धारण कीजिये।(200 words) [UPSC 2015]
भारत की विविधता में सांस्कृतिक इकाइयाँ अक्सर राज्यों की सीमाओं से परे होती हैं और विशिष्ट प्रदेशीय पहचान को दर्शाती हैं। भाषाई विविधता: उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में अवध और बुंदेलखंड क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान अलग-अलग है, जो केवल राज्य की सीमा तक सीमित नहीं है। इसी तरह, महाराष्ट्र में कोकण और पुणRead more
भारत की विविधता में सांस्कृतिक इकाइयाँ अक्सर राज्यों की सीमाओं से परे होती हैं और विशिष्ट प्रदेशीय पहचान को दर्शाती हैं।
- भाषाई विविधता: उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में अवध और बुंदेलखंड क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान अलग-अलग है, जो केवल राज्य की सीमा तक सीमित नहीं है। इसी तरह, महाराष्ट्र में कोकण और पुणे के क्षेत्रीय सांस्कृतिक तत्व भी अलग हैं।
- ऐतिहासिक प्रभाव: पंजाब, हिमाचल प्रदेश, और जम्मू-कश्मीर के सांस्कृतिक तत्व और परंपराएँ ऐतिहासिक कारणों से विशिष्ट हैं, जो राज्य की सीमाओं से बाहर की पहचान को दर्शाती हैं।
- त्योहार और परंपराएँ: बंगाल में दुर्गा पूजा और तमिलनाडु में पोंगल जैसे त्योहार क्षेत्रीय सांस्कृतिक इकाइयों को दर्शाते हैं, जो राज्य की सीमा से परे उनके विशिष्ट सांस्कृतिक दृष्टिकोण को उजागर करते हैं।
इस प्रकार, भारत की सांस्कृतिक विविधता प्रदेशीय सांस्कृतिक इकाइयों के माध्यम से अधिक स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।
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भारत में सांस्कृतिक विविधता और राष्ट्रीय पहचान के निर्माण में उनका महत्व 1. भाषा विविधता: भारत में भाषा की विविधता एक प्रमुख सांस्कृतिक तत्व है। यहाँ 22 अनुसूचित भाषाएँ और 1,600 से अधिक बोलियाँ हैं। हिंदी और अंग्रेज़ी को मानक भाषाएँ माना जाता है, लेकिन क्षेत्रीय भाषाएँ जैसे तमिल, बंगाली, और मराठी भीRead more
भारत में सांस्कृतिक विविधता और राष्ट्रीय पहचान के निर्माण में उनका महत्व
1. भाषा विविधता:
भारत में भाषा की विविधता एक प्रमुख सांस्कृतिक तत्व है। यहाँ 22 अनुसूचित भाषाएँ और 1,600 से अधिक बोलियाँ हैं। हिंदी और अंग्रेज़ी को मानक भाषाएँ माना जाता है, लेकिन क्षेत्रीय भाषाएँ जैसे तमिल, बंगाली, और मराठी भी सांस्कृतिक पहचान को प्रकट करती हैं। यह विविधता राष्ट्रीय एकता को सांस्कृतिक विविधता में समेटने का काम करती है, जिससे एक मजबूत राष्ट्रीय पहचान बनती है।
2. धर्म और धार्मिक परंपराएँ:
भारत में धार्मिक विविधता देश की सांस्कृतिक संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहाँ हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और अन्य धर्मों के अनुयायी एक साथ रहते हैं। विभिन्न धर्मों की त्योहारों और अनुष्ठानों के माध्यम से सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सह-अस्तित्व की भावना को बढ़ावा मिलता है, जो राष्ट्रीय एकता में योगदान करता है।
3. पारंपरिक कला और संगीत:
पारंपरिक कला और संगीत भारत की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हैं। कथक, भरतनाट्यम जैसी नृत्य शैलियाँ और गज़ल, भजन जैसे संगीत रूप एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में संजोए गए हैं। ये सांस्कृतिक तत्व विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक विशिष्टताओं को दर्शाते हुए, एक साझा सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करते हैं।
4. भोजन संस्कृति:
भारत की भोजन संस्कृति भी विविधता का एक महत्वपूर्ण पहलू है। विभिन्न राज्यों के खान-पान की अपनी विशेषताएँ हैं, जैसे पंजाबी और साउथ इंडियन व्यंजन। यह विविधता भारतीय खाद्य संस्कृति की गहरी जड़ों को दर्शाती है और विभिन्न सांस्कृतिक परंपराओं के मेल से राष्ट्रीय पहचान को नया आयाम प्रदान करती है।
निष्कर्ष:
See lessभारत की सांस्कृतिक विविधता के ये चार प्रमुख तत्व – भाषा, धर्म, कला-संगीत, और भोजन – न केवल देश की सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाते हैं, बल्कि एक मजबूत राष्ट्रीय पहचान के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन तत्वों के माध्यम से एक समन्वित और सह-अस्तित्व की भावना विकसित होती है, जो भारतीय समाज की एकता और विविधता का प्रतीक है।